छतरपुर से धीरज चतुर्वेदी।
उत्तरप्रदेश की राजनैतिक हवा के रूख ने पृथक बुंदेलखंड राज्य की कल्पनाओं को साकार रूप में ढालने की आस बंधवा दी है। संयोग ऐसा है कि लोकसभा और मध्यप्रदेश में भाजपा को पहले से ही पूर्ण बहुमत है तो उत्तरप्रदेश ने भी दिल खोलकर भाजपा को अपना बनाया है। महत्वपूर्ण है कि दो राज्यो को मिलकर नये राज्य का स्वरूप की आशा जगाये बुंदेलखंड की मांग का समर्थन स्वयं केन्द्रीय मंत्री उमाभारती करती रही है। यहां तक लोकसभा चुनाव के साथ हाल के उत्तरप्रदेश चुनाव में भी उमाभारती का प्रमुख चुनावी मुद्दे का केन्द्र बुंदेलखंड का अलग राज्य बनना रहा है।
आजादी के बाद से ही उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में समाहित बुंदेलखंड का हिस्सा राजनैतिक दलों के लिये मात्र मोहरा रहा है। उत्तरप्रदेश के सात और मध्यप्रदेशश्के छह जिले समग्र बुंदेलखंड में समाहित है। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से बुंदेलखंड यूं तो संपन्न है लेकिन दशकों से विपन्नता की मार झेल रहा है। यहां किसान आत्महत्या करने को मजबूर है क्योकि खेती को लाभ का धंधा बनाने की कवायदे मात्र कागजो को रंगती रही। आंकडो के अनुसार बुंदेलखंड में 2001 से 2006 के बीच 1275, और 2007 से 2010 के मध्य 1351 एंव 2011 से 2014 तक करीब 1500 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। कहा तो जाता है कि यह आत्महत्याये नही बलिक सरकारी हत्यायें हैं।
बुंदेलखंड की संपन्नता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि यहां के पन्ना की खदानो से निकला हीरा विश्व में पहचाना जाता है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में भी बकस्वाहा ईलाके में ब्लेक लिस्टेड आस्टेलियन कंपनी रियो टिन्टो के हीरा निकालने का मसला विवादित हो चुका है। जिसका विरोध स्वयं उमा भाारती ने म.प्र. के चुनाव वक्त किया था। इस कंपनी ने तो अपने सर्वेक्षण के दौरान ही बेशकीमती हीरों का खनन कर दिया।
विडंबना है कि पन्ना और बकस्वाहा के जिन इलाकों से हीरा निकाला जा रहा है। यह दोनों ही क्षेत्र दरिद्रता के शिकार हैं। वन आधारित उद्योगों की बुंदेलखंड में अत्यधिक संभावना है। तेदूपत्ता, सागौन की लकडी, अचरवा,गोंद सहित आयुर्वेद जडी बूटियो से यह इलाका भरा पडा है। खनिज के मामले में बुंदेलखंड अत्यधिक समृद्ध है। काला सोना कहा जाने वाला ग्रेनाईट पत्थर यही से विदेशो में निर्यात किया जाता हैं। गोरा पत्थर सहित मकानो में निर्मित होने वाली गिट्टी पत्थर की दूर दूर तक मांग है। खनिज के मामलो में यह आलम है कि पत्थरो के उत्खनन में बाहरी लोग से मालामाल हो रहे लेकिन इस ईलाके को धूल के कणो से टीवी और सिलोकोसिस रोग मिल रहे है। प्रतिवर्ष सैकडो लोग इन बीमारियो का शिकार हो रहे है। पर्यटको के दृष्टिकोण से ऐतिहासिक, प्राकृतिक दोनो ही तरह के स्थल यहां पर्यटको के आकृषण का केन्द्र रहे है। खजुराहो, ओरछा, दतिया, झोसी, महोबा को जोडकर कारीडोर बनाया जा सकता है।
कहा जा सकता है कि समपन्न होते हुये भी बुंदेलखंड गरीब है। जिसकी उन्नति तभी संभव है जब इसे अलग राज्य का दर्जा मिले। यही सोचकर दशको पूर्व से बुंदेलखंड को पृथक करने की मांग उठना शुरू हो गई थी। भाजपा की तेज तर्राट नेता उमाभारती तो बुंदेलखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने की पक्षधर रही है। हर चुनाव में उन्होने इस पृथक बुंदेलखंड को चुनावी मुद्दा भी बनाया है। झोसी के लोकसभा चुनाव में जब वे प्रत्याशी हुई तो उनका प्रमुख चुनावी हथियार बृंदेलखंड अलग राज्य कराने का नारा था।
उमा भारती ने चुनाव में तीन साल में पृथक राज बनाने का वादा किया था। वहीं भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में भी पृथक बुंदेलखंड करने की घोषाणा की थी। ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के छह जिलो छतरपुर, टीकमगढ़, सागर, पन्ना, दमोह और दतिया जिले की 29 विधानसभा सीटो में से 23 पर भाजपा का कब्जा है। साथ ही लोकसभा के सभी 4 क्षेत्रो खजुराहो, टीकमगढ, दमोह और सागर पर भी भाजपा ही काबिज है। इसी तरह उत्तप्रदेश के बुदेंलखंड अन्र्तगत झासी, हमीरपुर, बांदा लोकसभा क्षेत्र में भी भाजपा के सांसद चुने गये थे। हाल के उत्तरप्रदेश के चुनाव में तो पूरे 20 विधायको की विजय दर्शाती है कि बुंदेलखंडियो ने अपनी मांग की टीस पर सभी सीटे प्रधानमंत्री के नाम लिख दी जिससे अलग राज्य की मांग का सपना साकार रूप ले सके।
अभी तक केन्द्र में कांग्रेस सरकार होने के कारण अलग राज्य की यह मांग दबा दी जाती थी लेकिन अब परिस्थिितयां बिल्कुल अनुकूल हैं। केन्द्र और मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश में भाजपा का शासन है। केन्द्रीय मंत्री उमाभारती पृथक बुंदेलखंड के पक्ष में भी हैं वही लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भाजपा ने वादा भी किया था। बदलते सभी राजनैतिक समीकरण उम्मीद जगाते हैं कि बहुप्रतिक्षित बुंदेलखंड राज्य की मांग पर अब मुहर लग सकती है।
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