कीर्ति राणा, इंदौर।
अंग्रेजों के जमाने में तो लाट साब के नाम से मशहूर थे, पर अब तो हर जिले में कलेक्टर कहे जाते हैं।
प्रदेश के 52 जिलों में इंदौर के कलेक्टर की ऐसी ही सक्रियता जारी रही तो बहुत संभव है सफाई में देश में नंबर वन रहने वाले शहर को जनसुनवाई के मामले में प्रदेश के पहले जिले का खिताब मिल जाए।
हर कलेक्टर की अपनी खासियत होती है। पहले वाले अपने सख्त मिजाज और तोड़फोड़ से सबक सिखाने में माहिर थे। इनकी छवि पीपल्स डीएम वाली होती जा रही है तो इसलिए कि जिस जनसुनवाई कक्ष में पहले सन्नाटा छाया रहता था... पिछले चार महीनों से यह कक्ष आबाद है।
दिव्यांगों को वाहन मिलना, फीस का इंतजाम होने से बढ़कर यह अब संभव हुआ है कि जरूरतमंदों को घर का इंतजाम भी होने लगा है।
जनता का, जनता के लिए जिलाधीश वाला फंडा न सिर्फ यहां कारगर साबित हो रहा है, बल्कि स्कूली किताबों की खरीदी के दबाव पर सख्ती वाला आदेश अन्य जिलों के लिए भी रोल मॉडल बन गया है।
बड़े साहब से सेटिंग या राजनीतिक रसूख के बल पर मनचाहे काम करवाने वाले यदि अब तक कोई तोड़ नहीं ढूंढ़ पाए हैं तो वजह यही कि वीवीआईपी का आगमन हो या क्रिकेट मैच... बड़े साहब यदि जनसुनवाई में बैठे हैं तो बाकी सब गौण है।
मातहत अधिकारियों को भी अब अपनी कार्यपद्धति में बदलाव करना पड़ा है, जो पहले जनसुनवाई से बचते रहते थे... अब पूरे समय नजर आने लगे हैं। सुभान अल्लाह...।
यह ठीक है कि पटेल नगर बावड़ी हादसे के एक माह होने के बाद भी पीड़ित परिवार न्याय का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन हादसे के वक्त चले बचाव कार्य में लोगों ने कलेक्टर को एक सामान्य व्यक्ति की तरह बचाव दल के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर सहयोग करते भी देखा है।
वो दृश्य इसलिए भी वॉयरल हुआ था, क्योंकि इससे पहले छोटी ग्वालटोली क्षेत्र में होटल हादसा हुआ या रानीपुरा में पटाखा दुकानों वाला अग्निकांड... तब के लाट साब को दूर हाथ बांधे निर्देश देते हुए ही देखा था।
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