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एनबीटी से बोले राज्यवर्द्धन,आॅनलाईन मीडिया को लेकर मेरे पास कोई जवाब नहीं

मीडिया            Jun 18, 2016


मल्हार मीडिया डेस्क। हिंदी दैनिक अखबार ‘नवभारत टाइम्स’ के पत्रकार शिवम भट्ट ने सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री कर्नल (रि.) राज्यवर्धन राठौर से बातचीत की, जिसे अखबार ने प्रकाशित किया है। यहां आप भी पढ़ सकते हैं बातचीत के कुछ अंश… प्रश्न: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले IIMC में हॉस्टल का नाम बदलकर आंबेडकर छात्रावास कर दिया गया, इसका कुछ समय पहले हुए जातिगत टिप्पणी वाले विवाद से कुछ संबंध है? उत्तर: यह मेरी जानकारी में नहीं है, इस बारे में मैं प्रशासन से बात करूंगा। प्रश्न: जिस तरह प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को लेकर साफ रेग्युलेशन्स हैं, क्या ऐसे रेगुलेशन्स ऑनलाइन माध्यम को लेकर हैं? उत्तर: यह मामला काफी हद तक मीडिया से जुड़ा होने के बावजूद हमारे अंतर्गत नहीं आता है, इस पर मिनिस्ट्री ऑफ आईटी ज्यादा बेहतर जवाब दे पाएगी। प्रश्न: टीवी पर आजकल शराब के जो विज्ञापन म्यूजिक सीडी और सोडा बताकर दिखाए जाते हैं, क्या लगता है आपको यह सही है? उत्तर: इस बारे में यूं तो साफ गाइडलाइन्स हैं, लेकिन अगर कभी किसी गाइडलाइन का उल्लंघन होता है तो इसके लिए ASCI है, वहां जाकर कोई भी शिकायत कर सकता है और अगर किसी तरह का कानून का उल्लंघन पाया जाता है, तो कड़ी कार्रवाई भी होगी। प्रश्न: NDA के पहले कार्यकाल में ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा दिया गया, यूपीए ने ‘भारत निर्माण’ नारे का खूब प्रचार किया, नतीजा क्या हुआ? आपकी सरकार भी ‘मेरा देश बदल रहा है’ का नारा दे रही है, क्या इन विज्ञापनों से कुछ बदलता है? उत्तर: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के नाते मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह आलोचना के साथ सरकार की अच्छी नीतियों का प्रचार करे। लेकिन ऐसा नहीं होता है। इसलिए हमें बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ,उज्जवला योजना और युवाओं को रोजगार देने जैसी नीतियों को प्रचार माध्यमों के जरिए जनता को बताना पड़ता है। प्रश्न: दिल्ली में बीजेपी केजरीवाल को विज्ञापन पर फिजूलखर्ची को लेकर निशाने पर लेती है, लेकिन केंद्र में जो रहा है वह फिजूलखर्ची नहीं है क्या? उत्तर: केजरीवाल सरकार तो दिल्ली जैसे एक बेहद छोटे से राज्य में विज्ञापन के लिए 500 करोड़ तक खर्च कर देती है, हमारा बजट तो उनसे बेहद कम है। वह तो चेन्नै, हैदराबाद तक के अखबारों में विज्ञापन दे आते हैं! प्रश्न: हाई कोर्ट ने ‘उड़ता पंजाब’ पर जो फैसला दिया, उसे क्या सेंसर बोर्ड और सरकार के लिए झटका मानते हैं? उत्तर: आप ध्यान दें तो 1 जनवरी 2016 को केंद्र ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया था और उस समय मंत्री जेटली जी ने कहा था कि हमें सेंसरशिप नहीं चाहिए, हमें सर्टिफिकेशन ही चाहिए। इसके लिए श्याम बेनेगल कमिटी बनाई गई। वह प्रक्रिया अभी चल रही है और यह कोई कॉफी नहीं है जो दो मिनट में बनकर तैयार हो जाए। सब लोगों की राय ली जाएगी, तभी कोई नीति सामने आएगी। इसलिए 4 दिन पहले हुआ कोई छोटा सा वाकया हमें झटका नहीं दे सकता। जिस तरह की आजादी की बात ये लोग कर रहे हैं उस पर हम पहले ही काम शुरू कर चुके हैं। CBFC सिर्फ कानून की व्याख्या कर रहा था, जो अभी मौजूद हैं। प्रश्न: लेकिन केजरीवाल, राहुल गांधी जैसे विपक्ष के कई बड़े नेताओं ने ‘उड़ता पंजाब’ विवाद पर सीधे-सीधे केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। उत्तर: हमने न एक भी फिल्म रोकने के लिए कहा और न ही पास करने के लिए कहा। केंद्र सरकार इसमें कहां से आ गई मुझे नहीं समझ आता। सेंसर बोर्ड पूरी तरह स्वायत्त है और वह सिर्फ नियमावली के मुताबिक काम कर रहा था। हमारा ही एक विभाग है FCAT (फिल्म सर्टिफिकेशन अपीलेट ट्राइब्यूनल),जहां CBFC से असंतुष्ट फिल्म मेकर्स जा सकते हैं। बीते दिनों पांच ऐसी फिल्में थीं, जो सेंसर बोर्ड से नाराज थीं और FCAT से खुश होकर गईं। ये दोनों स्वायत्त संस्थाएं हैं। अब अगर आप हमसे चाहते हैं कि हम हस्तक्षेप करें, तो बता दीजिए हम कमान संभाल लेंगे, फिर जिम्मेदार ठहराइएगा। जिन्होंने आरोप लगाए हैं, उनका तो अस्तित्व ही आरोपों पर टिका है। लगाने दीजिए उन्हें आरोप। प्रश्न: पहलाज निहलानी कह रहे थे कि फिल्म में आम आदमी पार्टी का भी पैसा लगा है, आप इस बात से इत्तेफाक रखते हैं क्या? उत्तर: किसी दूसरे इंसान की बात से मैं इत्तेफाक क्यों रखूं? मेरी इसमें कोई राय नहीं है। प्रश्न: क्या सेंसर बोर्ड में केंद्र का दखल होता है? उत्तर: मैंने पहले भी कहा है कि सेंसर बोर्ड एक स्वायत्त संस्था है और उसमें हमारा कोई दखल नहीं होता। हम कभी किसी फिल्म के बारे में कोई राय नहीं देते। प्रश्न: कोर्ट ने कलाकारों को रचनात्मक स्तर पर आजादी देने की बात की है, क्या सरकार इस दिशा में कोई पहल करेगी और सेंसर बोर्ड के कामकाज में बदलाव आएगा? उत्तर: हम पहले ही इस दिशा में काम कर रहे हैं और सेंसरशिप से सर्टिफिकेशन की ओर बढ़ रहे हैं। प्रश्न: आर्मी अफसर, ओलिंपियन और अब केंद्रीय मंत्री। इतनी कम उम्र में इतना लंबा सफर किस तरह तय किया और इनमें से कौन सी भूमिका आपके दिल के बेहद करीब है? उत्तर: हम जब भी कोई काम शुरू करते हैं तो यही कोशिश रहती है कि उसमें अपना 100 प्रतिशत दिया जाए, मैंने जीवन में यही किया। स्कूल हो, कॉलेज हो, आर्मी में करियर रहा हो या ओलिंपिक में जाना, मैंने सबमें अपना 100 प्रतिशत देने की कोशिश की है। लेकिन मेरे केंद्रीय मंत्री होने से कई लोगों की उम्मीदें जुड़ी हैं और यह बेहद खास अहसास होता है। प्रश्न: बतौर केंद्रीय मंत्री अभी तक का आपका अनुभव कैसा रहा है? उत्तर: यह जो जिम्मेदारी अब मेरे पास है, यह इस वजह से खास है क्योंकि इससे बहुत बड़े स्तर पर कई लोगों का भला हो पाता है। अभी तक का मेरा अनुभव बेहद अच्छा रहा और उसका श्रेय केंद्रीय नेतृत्व को जाता है, जिसने मुझे काम करने की पूरी आजादी दी। (साभार: नवभारत टाइम्स)


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