अनंत नाथ।
एक समय पाठकों की बड़ी संख्या से गुलजार रहने वाली देश की मैगजीन इंडस्ट्री कोरोना महामारी के बाद से डिस्ट्रीब्यूशन से जुड़ी समस्याओं के साथ-साथ पाठकों की प्राथमिकताओं में बदलाव समेत कई चुनौतियों से जूझ रही है। इस नए परिदृश्य में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने और आगे बढ़ने के लिए मैगजीन इंडस्ट्री अपनी रणनीतियों को फिर से परिभाषित करने में जुटी हुई है।
‘इंडियन मैगजीन कांग्रेस‘ से पहले ‘दिल्ली प्रेस’ के एग्जिक्यूटिव पब्लिशर, 'द कारवां' मैगजीन के संपादक और ‘द एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ के प्रेजिडेंट अनंत नाथ ने मैगजीन इंडस्ट्री की इन्हीं तमाम चुनौतियों और इससे निपटने के लिए किए जा रहे उपायों को लेकर अपनी बात रखी है।
अनंत नाथ का मानना है कि मैगजींस पर कोरोना महामारी का प्रभाव बाकी पब्लिकेशन इंडस्ट्री के समान ही रहा है, जहां बड़ी संख्या में पाठक वर्ग प्रिंट से डिजिटल की ओर शिफ्ट हो गया है। उनका मानना है कि हालांकि अधिकांश न्यूजपेपर पब्लिशर्स की तरह अधिकांश मैगजीन पब्लिशर्स के पास भी अपनी वेबसाइट्स हैं, फिर भी हर किसी को उस दर्शक वर्ग से रेवेन्यू जुटाने के लिए अपने-अपने तरीके से संघर्ष करना पड़ा।
यह सही है कि डिजिटल ऑडियंस की संख्या प्रिंट के पाठकों से अधिक है, क्योंकि डिजिटल मीडिया कहीं अधिक सुलभ और अधिक आसानी से उपभोग योग्य है। लेकिन उस पाठक वर्ग का मुद्रीकरण करना, विशेष रूप से विज्ञापन के दृष्टिकोण से कहीं अधिक कठिन रहा है।
वैकल्पिक रेवेन्यू स्ट्रीम्स मैगजींस के लिए स्थिति पूरी तरह बदल देंगी: दरअसल, इंडस्ट्री के लिए एक बड़ी चुनौती यह पता लगाना है कि फिजीकल डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को कैसे ठीक किया जाए। कोविड से काफी पहले ही फिजीकल न्यूजस्टैंड डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा था।
अनंत नाथ के अनुसार, ‘मैगजीन पब्लिशर्स के लिए यूरोप और अमेरिका की तुलना में भारत में सबस्क्रिप्शन से रेवेन्यू पहले ही काफी कम है। वे सबस्क्रिप्शन की दिशा में काफी आगे हैं, जबकि भारतीय पब्लिशर्स न्यूजस्टैंड की दिशा में ज्यादा आगे हैं। लेकिन पिछले चार साल की बात करें तो हमने सबस्क्रिप्शन बनाने पर ज्यादा जोर दिया है, जिसका अर्थ है कि हम सबस्क्रिप्शन कॉपियों के लिए अच्छा डिलीवरी सिस्टम बना रहे हैं।
‘द एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ ने ‘मैगजीन पोस्ट’ (Magazine Post) नामक एक नई सदस्यता वितरण सेवा (subscription delivery service) शुरू की है। यह बेहद प्रभावी, विश्वसनीय और निजी कोरियर की तुलना में काफी सस्ती है। इसके साथ ही, अधिकांश पब्लिशर्स ऑनलाइन सबस्क्रिप्शन मार्केटिंग कैंपेन, डेटाबेस संवर्धन और तमाम अन्य तरीकों से मार्केटिंग सबस्क्रिप्शंस में जुटे हुए हैं।’ ऐसे में अनंत नाथ का मानना है कि अधिकांश पब्लिशर्स को डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम की दक्षता में सुधार के साथ-साथ कुछ ई-कॉमर्स प्लेयर्स के साथ साझेदारी करके सबस्क्रिप्शंस को बढ़ाते हुए आगे का रास्ता तैयार करना है।
इसके साथ ही अनंत नाथ का यह भी कहना है, ‘मैगजींस को फिर चाहे वह मैगजीन का करेंट इश्यू ही क्यों न हो, पाठकों तक पहुंचाने के लिए हम देश में ऐसा डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क तैयार करने की कोशिश में लगे हुए हैं, जिसमें डिजिटली ऑर्डर दिया जा सके और जल्द से जल्द उसकी डिलीवरी सुनिश्चित हो सके। हमने ‘ब्लिंकिट’ के साथ मिलकर इस तरह का प्रयास शुरू किया है, जिसमें आप वहां से मैगजीन ऑर्डर कर सकते हैं। फिलहाल दिल्ली से इसकी शुरुआत हुई है और इस सेवा को दिल्ली, पुणे व बेंगलुरु और कोलकाता समेत देश के तमाम हिस्सों से शुरू किया जा रहा है।
एमेजॉन से भी हमारी बातचीत चल रही है, ताकि वहां पर मैगजींस की एक कैटेगरी दोबारा से बनाई जाए। इसके अलावा पेटीएम और मीशो जैसे जाने-माने ऐप्स पर भी पाठकों को मैगजींस मिल सके, इस दिशा में भी हम काम कर रहे हैं। एसोसिएशन अब इंडिया पोस्ट के साथ फिर से काम कर रही है ताकि यह देखा जा सके कि वे इंडिया पोस्ट के नेटवर्क के माध्यम से सबस्क्रिप्शन बेचने के नए अवसर कैसे तैयार कर सकते हैं।’
हालांकि ये तरीके सर्कुलेशन और सबस्क्रिप्शन रेवेन्यू में मदद कर सकते हैं लेकिन मैगजींस को वैकल्पिक रेवेन्यू स्ट्रीम्स को खोजने की काफी आवश्यकता है। परंपरागत रूप से वे विज्ञापन और सर्कुलेशन सबस्क्रिप्शन के माध्यम से इसका मुद्रीकरण करते रहे हैं, लेकिन अब इवेंट्स को भी इसमें जोड़ा गया है। अनंत नाथ का यह भी कहना है, ‘नए रेवेन्यू स्ट्रीम्स की संभावनाओं की बात करें तो नई कंटेंट आईपी (IPs) बनाकर ई-कॉमर्स, मार्केटिंग, ऑडियो स्ट्रीमिंग और वीडियो स्ट्रीमिंग सेवाओं के साथ साझेदारी के माध्यम से रेवेन्यू जुटाने की संभावनाएं हैं। अब ऐसे मॉडलों के साथ मेंबरशिप प्रोग्राम भी हैं, जहां पाठक मैगजीन की एडिटोरियल टीमों के साथ निकटता से जुड़ते हैं।’
मार्केटर्स के दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है: जब विज्ञापन राजस्व को ‘पुनर्जीवित’ (reviving) अथवा नए सिरे से परिभाषित करने की बात आती है तो इंडस्ट्री को मैगजींस में विज्ञापन के बारे में धारणा बदलने की जरूरत है। अनंत नाथ के अनुसार, ‘हमें अपने प्रयासों को अपने मार्केटर्स के लिए एक बिक्री योग्य कहानी में बदलने की आवश्यकता है, जिनके साथ हमें यह समझाने के लिए बहुत करीब से काम करने की आवश्यकता है कि मैगजीन इंडस्ट्री अपने पाठकों और इसकी प्रसार संख्या को कैसे वापस लेकर आई है।’
तकनीकी रूप से कहें तो विज्ञापनदाताओं को यह समझने की जरूरत है कि पत्रिकाएं कंटेंट के लिए भुगतान करने को तैयार एक बड़े पाठक वर्ग को आकर्षित कर रही हैं और उन लोगों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं जो बिना किसी निवेश, प्रतिबद्धता या कनेक्शन के, डिजिटल दर्शकों या यहां तक कि बिना किसी लागत के कंटेंट प्राप्त कर रहे हैं। चूंकि अखबार काफी सस्ते होते हैं इसलिए अखबार के पाठकों की संख्या में वृद्धि होती है।
इस मुद्दे पर और विस्तार से बात करते हुए अनंत नाथ का कहना है, ‘भारत में एक अखबार की कीमत चार या पांच रुपये है, लेकिन एक मैगजीन की कीमत 60 से 100 रुपये है। इसलिए, मैगजीन का पाठक कहीं अधिक प्रतिबद्ध है। हमें यह कहने के लिए विज्ञापनदाताओं के साथ काम करने की ज़रूरत है कि यह पाठक जिसके पास अधिक क्रय शक्ति है, वह मैगजीन पर ज्यादा भरोसा करता है, ऐसे में वह उनके लिए बेहतर उपभोक्ता है। विज्ञापनदाताओं को मैगजीन पाठकों की इस ‘ताकत’ को समझना होगा।’
मैगजींस का कंटेंट ज्यादा विशिष्ट और ज्यादा बेहतर: सामान्य रुचि वाला कंटेंट ऑनलाइन खूब दिया जा रहा है। हालांकि, मैगजींस में पाठकों को विशिष्ट कंटेंट मिलता है। यही दोनों में बड़ा फर्क है। दरअसल, जब एक एडिटोरियल टीम किसी कंटेंट पर काम करती है और उसमें तमाम तथ्य अथवा अन्य चीजें शामिल करती है तो उससे पाठक अधिक जुड़ते हैं, क्योंकि कंटेंट उनकी रुचि के करीब होता है और इस बात को ध्यान में रखकर ही तैयार किया जाता है।
अनंत नाथ के अनुसार, ‘यहीं पर डिजिटल कंटेंट पीछे रह जाएगा, क्योंकि अंततः संपादकों, पत्रकारों और लेखकों का एक बहुत ही प्रतिबद्ध समूह बेहद गहन कंटेंट तैयार कर रहा है और यह बहुत ही सतही और तेज गति से तैयार किए गए कंटेंट की तुलना में अलग दिखाई देगा।’ इसके साथ ही अनंत नाथ का यह भी मानना है कि एक अवधारणा के रूप में मैगजींस का भविष्य बहुत उज्जवल होगा। अनंत नाथ के अनुसार, ‘आपके दर्शक जितने अधिक विशिष्ट, अधिक मजबूती से परिभाषित होंगे, पाठक संख्या उतनी ही अधिक होगी। निःसंदेह, आपको दर्शकों के एक निश्चित बुनियादी आकार की आवश्यकता है।’
साभार समाचार4मीडिया से
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