डॉ राकेश पाठक।
आइये सबसे पहले जान लेते हैं कि पत्रकारिता से "निष्पक्षता" की उम्मीद करने वाले कौन हैं और आखिर वे चाहते क्या हैं..?
अगर आप बहुत थोड़ा सा गौर करेंगे तो आसानी से पहचान सकते हैं कि आज अचानक यानि पिछले दो तीन साल में ये जमात सामने आयी है। आप इनकी फेसबुक प्रोफाइल पर नज़र डालिये तो मालूम होगा कि ये सारे लोग एक व्यक्ति,दल या विचारधारा का झूला चौबीसों घंटे ,आठों पहर झूलते हैं...!(इसमें कुछ भी गलत नहीं है कोई भी किसी का भी समर्थक हो सकता है और ये उसका अधिकार है)
विडम्बना यह होती है कि ये सारे लोग पूरी तरह एक पक्ष में आँख,नाक, कान बंद किये लहालोट रहते हैं और दूसरे किसी पक्ष को जाने,सुने ,समझे बिना पक्षपाती होने का राग अलापने लगते हैं।
इनमें से ज्यादातर तर्क और तथ्य के बिना सोशल मीडिया के हल्ले गुल्ले की रौ में बहते रहते हैं।
इन सबकी एक साझा पीड़ा है...वो ये कि वर्तमान सत्ताशीर्ष,सरकार या संगठन के बारे में प्रतिकूल क्यों लिखा जा रहा है..। उन्हें लगता है कि इससे पहले देश में कभी किसी प्रधानमंत्री,सरकार या दल के बारे में पत्रकारिता ने एक शब्द भी नहीं लिखा...!
चूँकि उन्हें अक्षरज्ञान, दिव्य ज्ञान, ब्रह्मज्ञान अनायास 2014 के मई महीने में प्राप्त हुआ है अतः उनका ऐसा सोचना उचित ही है..इसमें बुरा मानने की क्या बात...?
वे अपने मन में माने बैठे हैं कि उनका नेता,सरकार,दल या विचार सब कुछ ठीक कर रहे हैं ,वे पुनीत, पावन और पवित्र हैं अतः उनके किसी भी गुण दोष की मीमांसा करने वाली पत्रकारिता "निष्पक्ष" नहीं है...
अगर उनके मनमाफिक पत्रकारिता सत्ता का चारणगान करे तो ही वे अति प्रसन्न होंगे और उसे निष्पक्ष मानेंगे अन्यथा उसे पक्षपाती मानेंगे।
हज़ारों उदाहरण हैं लेकिन आसानी से समझने को एक काफी है...
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश में जाकर कहा कि "2014 से पहले लोग भारत में जन्म लेने पर शर्मिंदा होते थे...लोग कहते थे न जाने किस जन्म के पापों की सजा मिली जो भारत में जन्म मिला..."
हमने इसका पुरजोर विरोध किया...और छाती थोक कर कहते हैं कि यही बात अगर किसे राजीव गांधी,सोनिया गांधी,मनमोहन सिंह ने भी कही होती तो हम इससे भी अधिक मुखर होकर विरोध में लिखते... लेकिन आपने क्या किया....?
निष्पक्षता के झंडाबरदारों...आप अपना,अपने पुरखों का और सबसे ऊपर अपने देश का अपमान आसानी से सह गए...एक शब्द न बोले न लिख सके...!ऐसे हज़ार मुद्दे थे और हैं जिन पर आपके बोल नहीं फूटे...!
उस पर बात करते हैं निष्पक्षता की...हुंह...!
सबसे ज्यादा मजेदार यह है कि जिन्हें पत्रकारिता का "प.." नहीं मालूम वे उपदेश देने आते हैं कि वो कैसी होना चाहिए...!
सोशल मीडिया पर चार आठ लाईनें लिखना और कट, पेस्ट,शेयर, फॉरवर्ड कर देना भर पत्रकारिता नहीं है..ज़िन्दगी होम करना पड़ती है भाई साब...उसूलों और हक़ के लिए लड़ना पड़ता है...नौकरियां छोड़नी पड़तीं हैं या निकाले जाते हैं...
(खाकसार ने अब तक संपादक और प्रधान संपादक जैसी अच्छी अच्छी दस नौकरियां छोड़ी हैं या निकाला गया है )
आपकी तरह कम्फर्ट जोन में बैठ कर स्मार्ट फोन पर उंगलियां थिरकाने भर से पत्रकार नहीं हो जाता कोई...!
और हाँ हम मानते हैं कि ...आज पत्रकारिता पथभ्रष्ट हुयी है...इसके तमाम माध्यम अखबार,न्यूज़ चैनल ,वेबसाइट्स आदि सत्ता के जरखरीद गुलाम बन गए हैं...
हाँ..किसी एक के पक्ष या दूसरे के विरुद्ध पेड न्यूज़ का बोलबाला है...पत्रकारिता पर भरोसा ही ख़त्म हो रहा है...तो ...
तो क्या समूची पत्रकारिता गलत हो गयी ...? नहीं बिलकुल नहीं.. जिस तरह आज नेता,वकील,जज,प्रोफेसर,शिक्षक,डॉक्टर,अफसर,कर्मचारी , इंजीनियर,ट्यूटर,आर्किटेक्ट,कलाकार आदि आदि आदि...भ्रष्ट,निकम्मे,कामचोर और पथभ्रस्ट हो गए हैं लेकिन फिर भी बहुत बड़ी संख्या में
अच्छे,सच्चे,और ईमानदार लोग आज भी इन सब पेशे में हैं ही वैसे ही पत्रकारिता में भी अभी बचे हैं....!
तब भी सच्ची पत्रकारिता जनहित की न्यासी ही थी है और हमेशा रहेगी.... पत्रकारिता का मूल धर्म और कर्तव्य हमेशा ही सत्ता से प्रश्न करना रहा है और रहेगा...
और हम जैसे सिरफिरे,जुनूनी जब तक ज़िंदा रहेंगे लोक और लोकतंत्र के हक़ में प्रश्न करते रहेंगे...!
( कल विस्तार से बताएंगे कि सत्तर साल में हर नेता और सरकार की विफलताएं हमने ही आपको बतायीं थीं....आपकी दादी नानी ने "गौदुआ" यानि गीदड़ की कहानी में नहीं सुनायीं थीं )
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