डॉ.रजनीश जैन।
दो घिसे पिटे शीर्षक हैं जिनका इस्तेमाल एक अच्छी खबर से भी मन उचटा देता है। एक है...अमुक 'चैनल की खबर का असर' और दूसरा है...'विधानसभा में गूँजा अमुक मामला'!
सबको मालूम है कि तकरीबन सौ फीसदी एक सी खबरें सारे चैनलों पर आती हैं। दो पाँच दस मिनट का फर्क होता है। मामले से जुड़े किसी किरदार पर कार्रवाई हुई नहीं कि आधे से चैनलों पर हेडिंग चलने लगती है...हमारी खबर का असर। वह कौश सा पैमाना है जिससे यह पता लगाया जाता है कि ढिमके चैनल की खबर ने ही जुलाब की तरह काम किया है, बाकी तो मामले में कब्ज पैदा कर रहे थे। दर्शक को मूर्ख बना रहे हो या अपनी आत्मा को...!
संसद और विधानसभाओं के भवन गुंबदाकार होने से क्या यह धारणा पत्रकारों में बैठ गई है कि वहाँ जितनी भी आवाजें होती हैं वे अवश्य ही गूँजती होंगी।...अंग्रेजी में कहें तो इको इफेक्ट पैदा करती होंगी?...विधानसभा की विभिन्न दीर्घाओं से मैंने भी सदन को सुना है, जरा भी इको इफेक्ट नहीं आता।...भवन बनाते समय ही इसकी व्यवस्था कर दी जाती है कि गूँज न हो। लेकिन पत्रकारों के दिमाग में किसी खास खबर का ईको होता रहता है तो वह उनके शीर्षक में भी सुनाई देता है।
जबकि हो सकता है तीस सेकेंड भी मामले पर चर्चा न हुई हो लेकिन हेडिंग में उसे गुँजवाया ही जाता है। यह भी जाँच का विषय है कि शीर्षक से मामले को सदन में गुंजाने की यह प्रवृत्ति विधानसभा बीट के रिपोर्टरों में अधिक होती है या डेस्क वालों में।... भैया लोगो इतना जान लो कि इस तरह की हेडिंग बोरिंग होती है। कुछ और सोचो इसे रिप्लेस करने के लिए।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
Comments