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भारतीय संविधान के मूल में ही है लोक कल्याण का भाव

राष्ट्रीय            Apr 14, 2022


मल्हार मीडिया भोपाल।
भारतीय संविधान के मूल में ही ‘लोक’ है। यह नागरिकों को अधिकार देता है और उनके अधिकारों की रक्षा भी करता है। लेकिन यह नागरिकों से अधिकारों के साथ दायित्वों की अपेक्षा भी करता है। तभी हम उसकी मूल भावना को समझ सकते हैं। यह कहना है विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम का। वे आज संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर सप्रे संग्रहालय में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।

कार्यक्रम में ‘भारतीय संविधान’ से जुड़े पक्षों पर विद्वान वक्ताओं के वक्तव्य हुए। अपने उद्बोधन में मुख्य अतिथि ने आगे कहा कि भारतीय संविधान कोई कठोर किताब नहीं बल्कि बेहद ‘लचीला’ भी है, यही इसकी खूबी भी है। यदि ऐसा नहीं होता तो इतने सालों में इसमें इतने संशोधन नहीं होते।

इसके अलावा ‘भारतीय संविधान और न्यायपालिका’ पर लोकसेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक कुमार पांडेय ने ‘भारतीय संविधान और न्यायपालिका’ पर बड़े विस्तार से सरल शब्दों में अपनी बात कही।

उन्होंने कहा कि भारतीय संविधन में इकहरी न्यायपालिका है। यहां न्यायपालिका संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करती है। नागरिकों के अधिकार की रक्षा करती है। भारतीय संविधान में न्यायपालिका स्वतंत्र जरूर है लेकिन कार्यपालिका और विधायिका से श्रेष्ठ नहीं है।

यह संविधान की विशेषता जो किसी को श्रेष्ठ साबित नहीं करती है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को संविधान ज्यूडिशियल रिव्यू का अधिकार देती है इसका अर्थ यह नहीं कि वह उसके क्षेत्र में हस्तक्षेप करती है बल्कि जो कानून बना है वह तर्कसंगत है कि नहीं इसकी समीक्षा करती है। उन्होंने यह भी माना कि इसके चलते कई बार द्वंद्व की स्थितियां भी बनीं हैं।

उन्होंने अपने तर्कों के संबंध में बकायदा कुछ मुकदमों और कुछ धाराओं का उल्लेख भी किया। श्री पांडेय ने ‘जनहित याचिकाओं’ को केंद्रित करते हुए कहा कि कुछ मामलों में भले ही यह जरूरी नहीं लगती लेकिन सामान्य आदमी को उसके हक दिलवाने में इनकी बड़ी भूमिका रही है। यह आम आदमी के लिए बड़ी उपयोगी हैं।

अगले वक्ता के रूप में पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा ने ‘भारतीय संविधान और विधायिका’ पर अपने विचार रखे। उन्होंने संविधान सभा के बनने के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसका गठन इसलिए हुआ हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के पराक्रम और तमाम तरह की स्थितियों के बाद अंग्रेजों ने मान लिया था कि ज्यादा समय तक यहां टिक पाना मुश्किल होगा।

इसलिए भारत छोडऩा चाहते थे, लेकिन इसके पहले वे इस बात को भी परखना चाहते थे कि भारत देश चलाने के लिए तैयार है कि नहीं। इसके परिणाम स्वरूप ही भारत में संविधान सभा का गठन हुआ और 200 सदस्यों की इस सभा ने विश्व के इस महान संविधान को तैयार किया।

उन्होंने कहा कि कार्यपालिका और विधायिका दोनों ही संविधान के महत्वपूर्ण अंग के रूप में कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि विधायिका कानून तय करती है लेकिन उस कानून को अमल में लाने का काम कार्यपालिका करती है।

पूर्व मुख्य आयकर आयुक्त डा. राकेश कुमार पालीवाल ने ‘भारतीय संविधान और कार्यपालिका’ पर अपने विचार रखे। उन्होंने संविधान की व्याख्याओं और एक अधिकारी के रूप में कार्य करते हुए मिले अनुभवों को बड़ी बेबाकी से व्यक्त किया।

उन्होंने कहा कि कार्यपालिका के दो पक्ष हैं एक स्थायी और एक अस्थायी। स्थायी पक्ष सरकारी अधिकारी और कर्मचारी हैं, जबकि अस्थायी पक्ष एक सीमित समय के लिए चुनी हुई सरकार है।

चूंकि संविधान में लोक को ही सर्वोपरि माना गया इसलिए अस्थायी पक्ष स्थायी पक्ष से ज्यादा शक्तिशाली है। यहीं से एक ही अंग के दो पक्षों के बीच टकराव की स्थिति निर्मित होती है जो कभी-कभी संविधान की मूल भावना यानि कि ‘जन’ के अधिकारों और जरूरतों को ठेस पहुंचाती है।

‘भारतीय संविधान और नागरिक’ विषय पर सामाजिक कार्यकर्ता सचिन कुमार जैन ने भी कहा कि संविधान के केंद्र में ‘नागरिक’ ही है। इस तथ्य को स्पष्ट करते उन्होंने संविधान निर्माण के दौर की स्थितियों का भी जिक्र किया।

उन्होंने बताया कि जिस समय संविधान लिखा जा रहा था वो दूसरे विश्वयुद्ध के बाद का दौर था तब क्या स्थितियां रहीं होगी ताजा रूस-यूक्रेन युद्ध से अंदाजा लगा सकते हैं। इसके साथ ही प्राकृतिक आपदा, साम्प्रदायिकता, विभाजन की त्रासदी जैसे हालात थे।

लेकिन इसके बाद भी संविधान निर्माताओं ने ‘जन’ को ही महत्व दिया। यह उनकी परिपक्वता का ही प्रमाण है। उन्होंने इस बात पर दुख जताया कि हम उस भावना को समझ नहीं रहे हैं।

हमें संवैधानिक नैतिकता को समझना होगा। इसके पूर्व संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने स्वागत् वक्तव्य देते हुए आयोजन के पीछे उद्येश्य को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हमारी मंशा है कि ‘संविधान’ के विभिन्न पहलुओं के बारे में आम आदमी जाने-समझे।

आमतौर पर लोगों का यह मानना है कि संविधान विशेषज्ञों के लिए है। इस जरिए इस धारणा को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि संग्रहालय आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में साल सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर चर्चा गोष्ठी, व्याख्यान या परिसंवाद के आयोजन करेगा।

यह इस आयोजन की पहली कड़ी है। इसी तारतम्य में बताया कि मई माह में भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओ. पी. रावत का वक्तव्य होगा।

आरंभ में सप्रे संग्रहालय के अध्यक्ष डॉ. शिवकुमार अवस्थी और विवेक श्रीधर ने अतिथियों का अभिनंदन किया। आभार प्रदर्शन संग्रहालय की निदेशक डॉ. मंगला अनुजा ने किया। इस अवसर पर शहर के प्रबुद्धजन बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

 



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