मल्हार मीडिया ब्यूरो।
ज्ञानवापी मस्जिद मामले में की वाराणसी की जिला अदालत ने आज शुक्रवार 14 अक्टूबर को अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने कहा कि शिवलिंग जैसी लगने वाले ढांचे की कार्बन डेटिंग जांच नहीं होगी।
इस फैसले से हिंदू पक्ष को झटका लगा है। जिला अदालत के इस फैसले पर हिंदू पक्ष के वकील विष्णुशंकर जैन ने कहा है कि हम इस फैसले के खिलाफ उच्च अदालत का रुख करेंगे।
गौरतलब है कि इससे पहले 11 अक्टूबर को दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मौजूद ढांचे को हिंदू पक्ष शिवलिंग बता रहा है। अपना दावा पुख्ता कराने के मकमसद से इस पक्ष ने कोर्ट से कार्बन डेंटिंग जांच कराने की इजाजत मांगी थी।
लेकिन वाराणसी कोर्ट ने मस्जिद परिसर में कार्बन डेटिंग और ‘शिवलिंग’ की वैज्ञानिक जांच की मांग वाली हिंदू पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया।
वाराणसी कोर्ट ने कहा कि तथ्यों के साथ कोई छेड़छाड़ न हो और आम जनमानस की भावनाएं आहत न हों।
हिंदू पक्ष की मांग को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि कार्बन डेटिंग जांच से ढांचे को नुकसान का खतरा है।
ऐसा हुआ तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा। न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का हवाला दिया जिसमें कथित शिवलिंग पाए जाने वाले स्थान को सील करने का निर्देश दिया गया था।
ज्ञानवापी के वजूखाने में मिली आकृति को हिंदू पक्ष शिवलिंग कह रहा है तो वहीं मुस्लिम पक्ष इसे एक फव्वारा बता रहा है।
इसकी जांच के लिए हिंदू पक्ष वजूखाने में मिली आकृति की कार्बन डेटिंग कराने की मांग की गयी थी।
अदालत के फैसले पर आरएसएस नेता कुमार इंद्रेश ने कहा कि अभी कई रास्ते खुले हैं। उन्होंने कहा कि अयोध्या मामले में भी ऐसा ही हुआ था। पहले रास्ते बंद हुए, लेकिन बाद में खुलते चले गए।
इससे पहले 12 अक्तूबर को सुनवाई के दौरान अंजुमन इंतजामिया ने अपना पक्ष रखा था। जिसके बाद वादिनी संख्या 2 से 5 तक के अधिवक्ता विष्णुशंकर जैन ने प्रति उत्तर में हिंदू पक्ष की दलीलें पेश की थी।
वहीं, वादिनी संख्या एक के अधिवक्ता मान बहादुर सिंह ने कोई भी दलील देने से इनकार कर दिया था जिसके बाद अदालत ने आदेश के लिए 14 अक्तूबर की तारीख निर्धारित की थी।
कार्बन डेटिंग तकनीक का उपयोग कार्बनिक पदार्थों की आयु को पता लगाने के लिए किया जाता है।
कार्बन डेटिंग सभी प्रकार के कार्बनिक पदार्थों पर काम करता है। इस तकनीक से प्राप्त उम्र अनुमानित होती है।
इसकी सटीकता को लेकर आज भी विवाद है। अगर पत्थर और धातु पर कोई कार्बनिक पदार्थ नहीं मिलता, तो कार्बन डेटिंग से उनकी उम्र का पता नहीं लगाया जा सकता है।
कार्बन डेटिंग के जरिए 40,000-50,000 वर्ष से अधिक की आयु का पता नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि तब तक कार्बन-14 की मात्रा लगभग खत्म हो जाती है।
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