मुकेश प्रसाद बहुगुणा।
सन अस्सी नब्बे के दशक में दिल्ली के आसपास दर्जनों अखाड़े बने, जिनका उद्देश्य था कुश्ती को बढ़ावा देना।
सैकड़ों की संख्या में युवा पहलवान इन अखाड़ों में प्रशिक्षण लेने लगे कुछ को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय खेलों में पदक मिले लेकिन अन्य सफल न हो सके।
खेल प्रतियोगिताओं में असफल इन युवा पहलवानों के सामने अब रोजगार की समस्या मुंह बाए खड़ी थी। एक उम्र के बाद अखाड़ा छोड़ना भी मजबूरी थी।
इस स्थिति का लाभ उठाया अपराध जगत के माफियाओं ने, दिल्ली और उसके आस—पास के क्षेत्रों में प्रापर्टी डीलिंग का काम तेजी पर था।
अवैध कब्जे, जबरन मकान खाली करवाने के लिए स्वस्थ तगड़े युवाओं की जरूरत हर माफिया को थी।
बेरोजगार पहलवानों को बढ़िया धंधा मिल गया।
दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्रापर्टी से जुड़े अपराधों में अभूतपूर्व तेजी आ गयी,जो आज भी जारी है।
अब बाउंसर के रूप में एक नया रोजगार भी मिल गया है ऐसे पहलवानों को।
अमेरिका सहित कुछ यूरोपीय देशों में सेना के लिए रेगुलर सैनिकों के साथ अस्थायी सैनिकों को भी लिया जाता है, इन्हें प्राइवेट कहा जाता है।
अस्थायी सैनिकों को सेवा के बाद वे लाभ( सोशियल सिक्युरिटी )नहीं मिलते हैं जो रेगुलर सैनिकों को दिए जाते हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध, कोरिया युद्ध, वियतनाम युद्ध, खाड़ी युद्ध सहित अन्य युद्दों में ऐसे अनेकों प्राइवेट सैनिकों को सेना में लिया गया, जहाँ उन्होंने अच्छा प्रदर्शन भी किया।
लेकिन कांट्रेक्ट खत्म होने के बाद ये प्राइवेट बेरोजगार हो गए।
कुछ को स्थायी रोजगार मिला, शेष ऐसे ही रह गए।
इनके पास युवा उम्र थी, अनुभव था, अनुशासन था और हथियार चलाने एक्स्प्लोसिव का प्रयोग करने का तजुर्बा।
और सबसे बड़ी योग्यता यह कि टीम के रूप में योजना बनाने,क्रियान्वयन करने, जोखिम उठाने नेतृत्व करने की क्षमता।
तो इन्हें प्रयोग किया गया भाड़े के सैनिकों के रूप में, माफिया के निजी दस्ते के रूप में , आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने के लिए।
यह कोई छुपा तथ्य नहीं है कि संसार के सभी प्रमुख आतंकवादी गुटों को ऐसे प्राइवेट सैनिकों ने ही प्रशिक्षित किया है।
सेना में जोखिम तो है ,पर साथ ही सामाजिक आर्थिक पारिवारिक सुरक्षा भी है। चार वर्ष ऐसे माहौल में रहने के बाद अगर सामाजिक –आर्थिक –पारिवारिक सुरक्षा का संकट सामने खड़ा हो जाय तो गड़बड़ होने की पूरी सम्भावना बनी रहेगी।
सुरक्षा देश की हो या समाज की , एक स्थायी विषय है संविदा पर सुरक्षा का ख्याल सिर्फ उन्हें ही आ सकता है, जिन्हें सुरक्षा का तमीज ही नहीं।
Comments