लक्ष्मण रेखा का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा नोटबंदी के फैसले की जांच करनी होगी

राष्ट्रीय            Oct 12, 2022


मल्हार मीडिया ब्यूरो।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा पर लक्ष्मण रेखा से अवगत है।

लेकिन यह तय करने के लिए 2016 के विमुद्रीकरण के फैसले की जांच करनी होगी कि क्या यह मुद्दा केवल अकादमिक अभ्यास बन गया है?

पांच जजों की एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जब संविधान पीठ के समक्ष कोई मुद्दा उठता है, तो जवाब देना उसका कर्तव्य है।

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि  जब तक विमुद्रीकरण अधिनियम को उचित परिप्रेक्ष्य में चुनौती नहीं दी जाती है, तब तक यह मुद्दा अनिवार्य रूप से अकादमिक रहेगा।

नोटबंदी  की संवैधानिक वैधता को लेकर दाखिल की गई याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार और आरबीआई से विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा।

दोनों ने कोर्ट हलफनामे के लिए समय मांगा। मामले में अगली सुनवाई नौ नवंबर को होगी।

उच्च मूल्य बैंक नोट (विमुद्रीकरण) अधिनियम 1978 जनहित में कुछ उच्च मूल्य के बैंक नोटों के विमुद्रीकरण के लिए पारित किया गया था।

ताकि अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक धन के अवैध हस्तांतरण की जांच की जा सके, जो इस तरह के नोटों की सुविधा प्रदान करते हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह घोषित करने के लिए कि अभ्यास अकादमिक है या निष्फल है, मामले की जांच करनी होगी क्योंकि दोनों पक्ष सहमत नहीं हैं।

अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर जवाब देने के लिए हमें इसे सुनना होगा और जवाब देना होगा कि क्या यह अकादमिक है, अकादमिक नहीं है या न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है?  

इस मामले में सरकार की नीति और उसकी सोच है जो इस मामले का एक पहलू है।

 लक्ष्मण रेखा कहां है, यह हम हमेशा से जानते हैं, लेकिन जिस तरह से यह किया गया, उसकी जांच होनी चाहिए। हमें यह तय करने के लिए वकील को सुनना होगा।

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अकादमिक मुद्दों पर अदालत का समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।

मेहता की दलील पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता विवेक नारायण शर्मा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि वह संवैधानिक पीठ के समय की बर्बादी जैसे शब्दों से हैरान हैं।

क्योंकि पिछली पीठ ने कहा था कि इन मामलों को एक संविधान पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए।

एक पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने कहा कि यह मुद्दा अकादमिक नहीं है और इसका फैसला शीर्ष अदालत को करना है।

उन्होंने कहा कि इस तरह के विमुद्रीकरण के लिए संसद के एक अलग अधिनियम की आवश्यकता है।

 सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच का जवाब देने के लिए केंद्र को दो और सप्ताह का समय दिया।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा समय मांगे जाने के बाद मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति रवींद्र एस भट की पीठ ने केंद्र को याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया।

 

मेहता ने पीठ से कहा, जवाब देना है या नहीं, विचाराधीन है।

सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि जब केंद्रीय कानून को चुनौती दी जाती है, तो हम इस मामले में केंद्र सरकार के रुख से निर्देशित होंगे और इस मुद्दे पर सरकार के रुख के बारे में पूछा।

सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह और मांगे। शीर्ष अदालत ने केंद्र से 31 अक्टूबर तक हलफनामा दाखिल करने को कहा।

शीर्ष अदालत ने इसी तरह की अन्य याचिकाओं पर भी औपचारिक नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई 14 नवंबर की तारीख तय की।

 



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