वह दूसरी औरत ( रखैल ) लुटा देती है अपनी सारी उम्मीद,भरोसा संवेदना और प्यार अपने प्रेमी पर। बावजूद कि छुपा दी जाती है उसकी पहचान बेइज्जती के डर से। हकदार है उसका प्रेमी सेक्स व शरीर का बावजूद कि शून्य है वह प्रेमी की जिन्दगी में। नहीं देखा किसी ने उसे घूमते,शाॉपिग करते या प्रेमी के कंधे पर सिर रख घंटों बतियाते किसी पार्क के कोने में। नहीं चाहती वह प्रेमी से समय नहीं रखती इच्छा कि जोड दे अपने नाम के साथ प्रेमी का नाम। ढुलका देती है वह अपना अपमान और गुस्सा अपनी कविता में क्योंकि नहीं खोलती वह भावों की गाँठे प्रेमी के आगे। फाडती है वह डायरी के पन्ने जिसपर लिखा होता है प्रेमी का नाम बना होता है दिल का चित्र। उसके कमरे में बिखरी मिलती है खूब सारी चबायी रिफील, फैली स्याही व कागज के टुकडे जिनके बीच उसकी पनियाली आँखे ढूँढती मिलती है प्रेमी की मजबूत,कठोर छाती जिसमें मुँह गडा वह फफक सके और कह सके कि अब बन भी जाओ तुम मेरी डायरी,मेरी कविता मेरी भाषा,भाव व शब्द ताकि इन्हें जीने की चाह में तुम्हें जीना जारी रखूँ।
Comments