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तालिबानी तुम हो, हम नहीं!

वामा            Oct 11, 2025


डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।

तालिबान के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी भारत आये.

ठीक है.

नई दिल्ली में शुक्रवार को दूतावास में प्रेस कॉन्फ़्रेंस की.

कोई शिकवा नहीं.

दूतावास आपका है. वहां की आप जानो!

लेकिन आपने उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक भी महिला पत्रकार को नहीं बुलाया.

मुद्दा यह नहीं कि किसी को क्यों बुलाया  और क्यों नहीं बुलाया गया? दूतावास आपका, प्रेस कॉन्फ्रेंस आप बुला रहे हो. जिसे चाहो बुलाओ, मत बुलाओ. तुम्हारा काम तुम जानो.

मुद्दा यह है कि तालिबानों ने महिला पत्रकारों को बुलाया ही नहीं.

तालिबानी तुम हो,  हम नहीं.

तुम महिलाओं को दोयम दर्जे का समझते हो, हम नहीं समझते. हमारी तो राष्ट्रपति भी महिला हैं और इस कारण हम उनको कम सम्मान देने की बात सोच भी नहीं सकते. अगर वे राष्ट्रपति नहीं होती तो भी हमारे लिए सम्मान और बराबरी की पात्र थी,  हैं और रहेंगी.

तुम तालिबानी लोग अपने देश में गलत काम करते हो. महिलाओं को दोयम दर्जे का मानते हो.  हम यह घटिया हरकत अपने देश में नहीं होने देना चाहते. यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है.

तालिबानी विदेश मंत्री ने भारत के विदेश मंत्री के साथ उनकी द्विपक्षीय बैठक की है.

अगर भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज  जैसी कोई महिला होतीं तो तुम क्या करते?

दूतावास तुम्हारा है, लेकिन सरजमीन हमारे बाप की है. हमारी है. भारत की है. यहां भारत का संविधान और कानून ही चलेगा. मैं ये कोई इमोशनल बात नहीं कर रहा हूं.

1961 के वियना कन्वेंशन ऑन डिप्लोमैटिक रिलेशंस (जिस पर भारत और अफगानिस्तान दोनों ने हस्ताक्षर किए हैं) के अनुच्छेद 22 के तहत, दूतावास की इमारत मेजबान देश  (भारत) की संप्रभुता के अधीन रहती है। दूतावास को 'अपने देश का टुकड़ा' जैसी पूर्ण संप्रभुता प्राप्त नहीं होती, बल्कि केवल सीमित छूट (जैसे मेजबान देश के अधिकारियों का प्रवेश बिना अनुमति न होना, और राजनयिकों को अभियोजन से छूट) मिलती है.

गंभीर अपराधों (जैसे हत्या) में मेजबान देश का कानून लागू होता है, और दूतावास के अंदर होने वाले अपराधों की जांच मेजबान देश ही कर सकता है. यह सिद्धांत सभी दूतावासों पर लागू होता है, जिसमें नई दिल्ली में अफगान दूतावास (जो वर्तमान में पूर्व अफगान गणराज्य द्वारा संचालित है) भी शामिल है.

वियना कन्वेंशन कहता है कि जो कानून काबुल में चलेगा, वह दिल्ली में नहीं चल सकता. भारत संविधान से चलता है जिसमें सभी बराबर है. तालिबानी हुकूमत की महिला पत्रकारों को नहीं बुलाने की यह घटना उनकी घटिया मानसिकता की प्रतीक है. भारत किसी के बाप का गुलाम नहीं है.

आप दिल्ली में आए हो,  भारत के विदेश मंत्री के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हो और आपको यह नहीं पता कि भारत में विदेश मंत्रालय कवर करने वाले दिग्गज पत्रकारों में कई महिलाएं हैं.  इनमें से कम से कम 6 को तो मैं ही जानता हूं.

क्या देवीरूपा मित्रा (IANS), रीमा पाराशर ( DD),पारुल गुप्ता (AFP), एलिजाबेथ रोश  (Agence France Press) जैसी महिला पत्रकारों के बिना विदेश मंत्रालय बीट की कोई प्रमुख प्रेस कॉन्फ्रेंस हो भी सकती है?

 


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