Breaking News

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला,आवास का अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा

राष्ट्रीय            Sep 13, 2025


मल्हार मीडिया ब्यूरो।

जीवनभर की गाढ़ी कमाई लगाकर फ्लैट और घर बुक कराने के बाद घर का सपना लिए भटक रहे हजारों फ्लैट खरीदारों के दुख को सुप्रीम कोर्ट ने समझा है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया है, जिससे न सिर्फ फ्लैट खरीदारों का सपना पूरा हो बल्कि रियल एस्टेट में लोगों का भरोसा भी कायम हो।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आवास का अधिकार मात्र एक अनुबंध आधारित अधिकार नहीं है, बल्कि यह संविधान के तहत मिले जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। इसलिए वह ऐसे निर्देश दे रहा है, जिससे कि भारत के नागरिकों का घर का सपना पूरा हो। उनका यह सपना जीवनभर का दु:स्वप्न न बने।

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यम वर्ग के दर्द को बयां करते हुए कहा है कि घर के लिए जीवनभर की कमाई लगाने के बाद वह दोहरा बोझ ढोता है। एक तरफ घर की ईएमआइ भरता है और दूसरी ओर किराया देता है। वह सिर्फ अपने घर का सपना पूरा करना चाहता है, जो अधबनी इमारत बन कर रह जाती है।

आगे कहा कि पैसा देने के बावजूद घर नहीं मिलने की चिंता उसकी सेहत और गरिमा पर बुरा असर डालती है। यह सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह एक ऐसा सख्त तंत्र बनाए, जिसमें किसी भी डेवलपर को घर खरीदार का शोषण करने या धोखा देने की इजाजत न हो।

जस्टिस जेबी पार्डीवाला और आर महादेवन की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि वह दिवालिया कार्यवाही से गुजर रहे संकट ग्रस्त रियल एस्टेट प्रोजेक्ट के लिए फंडिंग करने हेतु नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (एनएआरसीएल) के तहत एक रिवाइवल फंड स्थापित करने पर विचार करे। या फिर स्पेशल विंडो फॉर एफोर्डेबल एंड मिड इनकम हाउसिंग (एसडब्ल्यूएएमआइएच) फंड का विस्तार करे। इससे जिन परियोजनाओं में संभावना बची होगी, उनका समापन होना रुकेगा और घर खरीदारों के हित सुरक्षित होंगे।

हालांकि कोर्ट ने सचेत किया है कि इसमें बहुत अधिक फंड शामिल होगा, जो पब्लिक मनी है। ऐसे में हर रुपया कड़ाई से उसी उद्देश्य पर खर्च होना चाहिए। कोर्ट ने इसका दुरुपयोग रोकना सुनिश्चित करने के लिए सीएजी से इसकी समय-समय पर समग्र ऑडिट कराने और उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक किए जाने का आदेश दिया है। कहा कि यह केवल घरों या अपार्टमेंट का मामला नहीं है। इसमें बैंकिंग क्षेत्र, संबद्ध उद्योग और एक बड़ी आबादी का रोजगार भी दांव पर है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार संवैधानिक तौर पर घर खरीदारों और समग्र अर्थव्यवस्था के हितों की रक्षा करने के लिए बाध्य है। कोर्ट ने घर खरीदारों के हितों को सुरक्षित करने और उन्हें घर मिलना सुनिश्चित करने के लिए कई दिशा-निर्देश दिए हैं। साथ ही हर जिम्मेदार अथारिटी को सुदृढ़ बनाने और ढांचागत संसाधन बढ़ाने को कहा गया है।

 कोर्ट ने कहा है कि एनसीएलटी और एनसीएलएटी की रिक्तियों को युद्धस्तर पर भरा जाए। इसके लिए सेवानिवृत न्यायाधीशों की तदर्थ तौर पर सेवा ली जा सकती है। केंद्र सरकार इस संबंध में किए गए उपायों पर तीन महीने में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करेगी।

कोर्ट ने कहा है कि तीन महीने में हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की जाएगी। इस कमेटी में कानून मंत्रालय, आवास मंत्रालय, रियल एस्टेट क्षेत्र के विशेषज्ञ, वित्त और आइबीसी के प्रतिनिधि होंगे।

इसमें आइआइएम, नीति आयोग और उद्योग जगत के प्रतिनिधि भी होंगे। यह समिति रियल एस्टेट सेक्टर में सफाई सुनिश्चित करने के साथ भरोसा कायम करने के लिए संभावित सुधारों का सुझाव देगी।

कोर्ट ने आदेश दिया है कि राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि रेरा अथारिटी में पर्याप्त स्टाफ और ढांचागत संसाधन व विशेषज्ञ हों। प्रत्येक रेरा में हर हाल में एक कानूनी विशेषज्ञ या कंज्यूमर एडवोकेट होगा, जिसकी रियल एस्टेट में दक्षता हो। रेरा किसी भी प्रोजेक्ट को मंजूरी देने से पहले उसकी गहन जांच करेगा।

कोर्ट ने कहा है कि इसमें विफल रहने से अन्याय होगा। यह एक ऐसी गलती होगी जिसकी कानून में माफी नहीं होगी। चूंकि रियल एस्टेट आइबीसी कार्यवाही में दूसरे नंबर का सबसे बड़ा सेक्टर है, ऐसे में इन्साल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (आइबीबीआइ) रेरा अथॉरिटी से परामर्श करके एक परिषद गठित करे जो रियल एस्टेट में दिवालिया कार्यवाही के लिए विशेष दिशानिर्देश तय करे। आइबीबीआइ एक तंत्र बनाएगी, जिसमें किसी प्रोजेक्ट की कोई यूनिट अगर तैयार हो गई है, तो जो आवंटी कब्जा लेना चाहते हैं उन्हें कब्जा दिया जाए।

कोर्ट ने यह भी कहा है कि नियम ये सुनिश्चित करेंगे कि सीओसी में आवंटियों का सार्थक प्रतिनिधित्व हो, जिसमें हितों के टकराव से सुरक्षा भी हो। कोर्ट ने कहा है कि जब धारा सात के तहत एनसीएलटी में कोई अर्जी दाखिल होगी तो प्रथम दृष्ट्या यह रिकॉर्ड किया जाएगा कि अर्जी देने वाला वास्तविक घर खरीदार है या फिर वह विशुद्ध रूप से लाभ कमाने वाला निवेशक है।

कोर्ट ने जो सबसे महत्वपूर्ण निर्देश दिया है, उसमें कहा है कि जो भी रियल एस्टेट का नया आवासीय प्रोजेक्ट होगा उसमें लेनदेन का आवंटी या खरीदार को संपत्ति की कीमत का 20 प्रतिशत भुगतान करके स्थानीय राजस्व अथारिटी में पंजीकरण कराना होगा। इस संबंध में कोर्ट ने सीनियर सीटिजन और वास्तविक खरीदारों के हित सुरक्षित करने के लिए और भी निर्देश दिए हैं।

कोर्ट ने फैसले में वास्तविक खरीदार और विशुद्ध लाभ के उद्देश्य से निवेश करने वालों का अंतर भी बताया है। कोर्ट ने यह फैसला एनसीएलएटी के आदेशों के खिलाफ दाखिल चार अपीलों का एक साथ निपटारा करते हुए सुनाया है। कोर्ट ने दो अपीलकर्ताओं को लाभ के लिए निवेशकर्ता मानने के एनसीएलएटी के आदेश को सही ठहराया है।

 


Tags:

malhaar-media supreme-court-of-india important-decision-at-right-of-house

इस खबर को शेयर करें


Comments