आदि विद्रोही।
शहर से पांच तवायफों को पकड़ा गया। पांचों पर वेश्यावृत्ति के मुकदमे दर्ज़ हुए।इन पर आरोप लगाए गए कि-यह महिलाएं पैसा लेकर धन्ना सेठ लोगो के साथ सोती थी और कमसिन नयी नयी जवान हुई लड़कियों को बहकाकर धनवानों की हवेली पर सोने भेजती थी।
शहर,प्रदेश का ऐसा कोई धनवान नहीं था जिन्होंने इन तवायफ़ों को उधेड़ा न हो,इनकी चमड़ी का रसपान न किया हो,इनके होंठो की शराब न पी हो,इनके स्तनों के अंगूर न खाए हो,इनकी आहों का माधुर्य नहीं सुना हो,इनके बालो की खुशबू को फेफड़ों तक न समा दिया हो।
इन धनवानों को इन तवायफों को कच्चा खाता देख कर शहर के गरीब मर्दो के जंगल यह सोच कर ही तन तना उठते थे-काश इस अफ़ीम का मज़ा हम भी ले पाते,काश इस कमर पर हमारा भी वीर्य टपक रहा होता,काश परमेश्वर हमे इतना सक्षम बनाता की हम भी इन रसीले कूल्हों को कूट पाते।धनवान मर्दों को वह भी बूढ़े बूढ़े लटकते हुए मर्दो को इन तवायफ़ों के मज़े लूटते देख ख़ुद को वंचित महसूस करते थे और यह उनकी परमेश्वर को शिकायत थी।
यह वंचित ख़ुदा जाने कितनी दफ़ा इन तवायफ़ों का ख्याल कर हाथों को इस्तेमाल किया करते होंगे और यह भी मुमकिन है कि यह वंचित मर्द अपनी घिसी पिटी दबी पिसी नीरस पत्नियों के जिस्मों को उधेड़ते वक़्त भी इन तवायफों का ख्याल करते हो। एक बड़े अफसर के साथ इन हसीनों को देखकर चपरासी और गार्ड लार टपकाते आवारा कुत्ते की तरह सोचता होगा कि-काश ये घोड़ी हमे मिल जाती,बड़े साहब ख़ूब मज़े से उसे हांक रहे है।
इन तवायफों के यह हाल थे कि यह पहले ख़ुद समाई फिर इन अधेड़ ढीली पड़ी तवायफों का रस खत्म हो गया तो इन्होंने सत्तर साल के बूढ़े सेठ को उन्नीस साल की कमसिन कूटने को दे दी क्योंकि कमसिन को नगर निगम में नोकरी चाहिए थी।
एक रोज़ इन तवायफ़ों ने अपनी बोटी के बदले ज्यादा कीमत मांगी बस फिर शहर में बवाल हो गया।यह तवायफें चार टुकड़े ले जाए वह ठीक है पर यह तो ज़मीनें मांगने लगी।
सारे सेठों ने भेला होकर इन तवायफ़ों पर मुकदमा लगवा दिया। यह तवायफें हम भोले सेठों को ठगती थी। मुकदमा दर्ज हुआ और अदालत आया था।
जांच अधिकारी तवायफों को देख कर भाग गया वह लफड़े से बचना चाहता था,मुंसिफ भी तवायफों को देख थर्रा उठा।सेठों ने चार पैसे ज्यादा नहीं देने के कारण जान आफत में डाल दी थी।जब तवायफों पर मुकदमा चल रहा था तो एक के बाद एक जांच अधिकारी बदले जा रहे थे।तवायफों को देखकर हर अधिकारी पसीने से नहा जाता था।दो रोज़ भी नहीं ठहरता था,तवायफों ने हर एक जांच अधिकारी के कच्छे के रंग को कैमरे में कैद किया था।
अधुनिकता सारे पाखंड उजागर कर देती है। अगर पिछले युगों में आधुनिकता होती और मोबाइल नाम का अजगर होता तो शायद कोई महात्मा नहीं होता,हर एक कि रगों में दौड़ते काले कुत्ते सामने आकर बैठ जाते।
तवायफ़ों के खिलाफ सारे भोले भाले मर्द एक हो गए और इनके खिलाफ सेठों,अफसरों, मंत्रियों ने अपनी निर्णायक जंग लड़ने की ठान ली।सभी ने मिलकर इन तवायफ़ों को पीस डाला।
पहले इन तवायफ़ों के जिस्म चाटे गए सूंघे गए फिर इन जिस्मो को मैला घोषित किया गया, पहले ज़बान से सूता गया फिर इन धनवानों के कहने पर डंडों से सूता गया।
सारे शहर के किसी लेखक किसी पत्रकार की इतनी हिम्मत नहीं जो किसी एक अफसर का नाम तक लिख पाए।सारे के सारे सीधे सरल सौम्य मर्द एक राय में एक मत पर सर्वसम्मत थे।
वह राय यह थी कि तवायफें समाज के लिए ज़हर है और इस ज़हर को हम सब संत मिलकर ख़त्म कर दिए देते है क्योंकि यह तवायफें हम संतों को ठगती है अब कोई ऐसी गाय जैसी तवायफें चाहिए जैसी गाय हमारी पत्नियां होती है। हम एक टुकड़ा फैंके तो तवायफें चुपचाप दांतो में दबाकर कौने में पसर जाए।
#स्पष्टीकरण : उपरोक्त आलेख चेहरों की इस आभा सी पुस्तक के एक साथी ने लिखा और फिर मिटाया भी है ... इसी के चलते उनके नाम को उल्लेख नहीं किया जा रहा
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