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मध्यप्रदेश: बच्चियों से दुष्कर्म और न्याय की गति में अपील प्रक्रिया

वामा            Sep 20, 2018


राकेश दुबे।
सतना जिले के गाँव परसमनिया में 4 साल की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म के दोषी को नागौद कोर्ट ने 51 दिन में फांसी की सजा सुनाई है। इससे पहले मंदसौर में 8 साल की बच्ची के रेप के मामले में फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने दोनों आरोपियों को दोषी करार दिया था। अदालत ने दोनों ही आरोपियों को इस मामले में मौत की सजा सुनाई थी।

यह मामला 26 जून का था जब इरफान और आसिफ नाम के दो लोगों ने स्कूल से बच्ची का अपहरण कर उसके साथ बलात्कार किया था और उसकी हत्या की कोशिश भी की थी।

कोर्ट ने इस मामले में मात्र ५६ दिनों में ट्रायल पूरा कर आरोपियों की सजा सुनाई थी। इतने गंभीर अपराध में न्याय की इस त्वरित व्यवस्था पर “अपील” नामक प्रक्रिया बंधन सी महसूस होती है।

यह मामला भी मध्य प्रदेश के शहडोल जिले का है इसमें 4 साल की बच्ची के रेप के दोषी विनोद की फांसी की सज़ा पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है।

विनोद को शहडोल की निचली अदालत ने इसी साल 28 फ़रवरी को फांसी की सजा सुनाई थी। जिसके ख़िलाफ़ विनोद ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। जबलपुर हाईकोर्ट ने इसे विरल से विरलतम अपराध करार देते हुए फांसी की सजा बरकरार रखी थी।

अधीनस्थ न्यायलयों में ऐसे मामलों में शीघ्र सुनवाई के पीछे मध्यप्रदेश का एक कानून है। इसी साल मध्य प्रदेश सरकार ने 12 साल से कम उम्र की मासूम से रेप पर फांसी की सजा देने का कानून पारित किया था।

इसके बाद से रेप के आरोपियों को कटनी में पांच दिन, सागर में 46 दिन और ग्वालियर में 33 दिन में फास्ट ट्रैक कोर्ट फांसी की सजा सुना चुकी हैं।

अब प्रश्न “अपील” उससे जुडी पैरवी और पैरोकारी का है। मध्यप्रदेश के वकीलों ने ऐसे मामलों में कई बार पैरवी करने से इंकार किया है। यह इंकार अधीनस्थ न्यायलयों तक सीमित रहता है। अपील विचरण के दौरान इसे नैसर्गिक न्याय का अधिकार मानक्रर पैरवी होती है और सजा में विलम्ब विधि की उस मंशा की पूर्ति नहीं करती जिस उद्देश्य से विधि निर्मित कर ऐसे विरल से विरलतम में शीघ्र सुनवाई के प्रावधान किये गये हैं।

न्याय पाना सबका आधिकार है, पर न्यायिक के नाम पर विलम्ब तो अन्याय की तरह परिभाषित होता है। इसके कई उदहारण माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सामने हैं, खुद के फैसलों में। दुष्कृत्य वो भी इस उम्र की बच्चियों के साथ अक्षम्य है, इसमें अपील और दलील के बहाने देर नहीं होना चाहिए।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और प्रतिदिन पत्रिका के संपादक हैं।

 


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