गुणवत्ता के लाले

वीथिका            Jun 22, 2015


संजय जोशी 'सजग' एक जुमला बहुत चलता है सौ में से नब्बे बेईमान फिर भी देश महान ऐसे में गुणवत्ता की बात करना गले नहीं उतरती है । यहां तो गुणवत्ता इस कदर गुम हो चुकी है जैसे गधे के सर से सींग , ढूंढते रह जाओगे हर कोई ईमानदारी और गुणवत्ता पर बड़ी -बड़ी बात कर लें पर मन के अंदर बैठा शैतान कुछ न कुछ ऐसा कर ही देता है कि सब गुड़ गोबर हुए बिना नहीं रहता । खाने पीने की चीज का हश्र हम रोज देख रहे है मिलावट रूपी जिन्न हर वस्तु में समाया हुआ है जानते हुए भी चटखारे लेकर खा रहे है और चुस्की लेकर आनंद की अनुभूति कर रहे हैं मिलावट से इस कदर घुलमिल गए कि कुछ समझ ही नहीं आता कि गुणवत्ता क्या बला है ?असली नकली में फर्क ही समझ नहीं आता है नकली ही असली लगने लगा है। गुणवत्ता विषय पर एक टीवी चैनल पर बड़ी -बड़ी बात हो रही थी एक मित्र आ टपके और यह सब देख सुनकर तुनककर कहने लगे कि गुणवत्ता की बड़ी बड़ी बातें झाड़ी जा रही है चैनल कम से कम अपनी गुणवत्ता ही सुधार लें अच्छी और रचनात्मक , जो समाज के लिए लाभकारी हो ,पर उसका प्रतिशत बहुत कम है जिसे बड़ा कर और गुणवत्ता लाने की हिम्मत दिखा सकता है क्या ? खाली -पिली भेजा चाट रहा है । वे आगे कहने लगे गुणवत्ता की कमी तो सब जगह है अगर राजनीति और नेताओं में गुणवत्ता आ जाये तो गुणवत्ता का महत्व और माहौल बढ़ने लगे। मंत्रियो की गति और मति से अधिकारी व कंर्मचारी काम करते है तो गुणवत्ता एक खोज का विषय बन जाता है । पार्टियां भी बिना गुणवत्ता का ध्यान रखे उम्मीदवार चुन लेती है और जनता उसमें से । संत्री से लेकर मंत्री तक की गुणवत्ता एक अपवाद है । मिलावट गुणवत्ता की पहली दुश्मन है ,अधिक लाभ की प्रवृति गुणवत्ता को दीमक की तरह चाट रही है ,रिश्वत और कमीशन गुणवत्ता की जड़ो को सुखाने में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह करती है इसके कारण गुणवत्ता का शोर सुनायी नहीं देता । एक ईमानदर को ९९ दबोच लेते है और हम गुणवत्ता का केवल शाब्दिक अर्थ ही समझ पाते है और गुणवत्ता का रोना रोकर चुप हो जाते है । सभी क्षेत्रों में केवल गुणवत्ता की बात की जाती है खाने -पीने की चीजों के साथ दवाई क्षेत्र भी ऐसा है जहां केवल गुणवत्ता का ढोल पीटा जाता है जब हकीकत से सामना होता है तो अगुणवत्ता की प्रधानता पाई जाती है। अच्छी पैकिंग और विज्ञापन इनकी बिक्री को लाखों गुना कर देते है और यह सब गुणवत्ता के सर पर बोझ रखकर प्रायोजित होता है। शिक्षा ,राजनीति ,दवाई, अस्पताल, होटल्स और निर्माण यूनिट में उपयोग में आने वाली हर चीज अपनी गुणवत्ताविहीन होने का दंश झेलती है । जब खाने -पीने की वस्तुऍ गुणवत्ता मापदंड पर खरी नहीं उतरती है तो बाकी चीजों का तो भगवान ही मालिक है। सभी जगह गुणवत्ता के लाले पड़े है और जवाबदारों के मुँह पर धन के ताले पड़े है। उदाहरण स्वरूप व्यापम जैसे घोटाले सुनकर देखकर गुणवत्ता की बात बेमानी लगती है जनता के स्वास्थ्य से रोज कर रहे है खिलवाड़, गुणवत्ता के किवाड़ बंद कर दिए हैगुणवत्ता क्या होती है ?तुम क्या जानों देश की जनता । सब कुछ कर रहे हो गुणवत्ताहीन अपने पेट को अर्पण आप बीमार और मुनाफाखोर फलते फूलते रहेंगे और हम सिर्फ और सिर्फ गुणवत्ता के लाले पर अपना समय जाया करते रहेंगे ।


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