विधुलता।
पुरखों के हजारों मकान आज जो खण्डहर में तब्दील हो चुके हैं और उनका नाम लेने वाला आज कोई नहीं। बड़े शहरों की छोटी बड़ी कॉलोनियों में ऐसे हजारों मकान मिल जायेंगे जिनके मालिक या तो दुनिया में नही या उनके बच्चे विदेशों में बस गए हैं कुछ को बच्चे बेचकर दिल्ली पुणे हैदराबाद मेट्रोज़ में जा बसे हैं कुछ पर अवैध कब्जा हो गया है।
पूरी सब्जी खीर का भोग ,गऊ ग्रास और कौव्वों का हिस्सा पितृ मोक्ष पे निकालना एक बड़ा सच है और परम्परा में शामिल भी - कौव्वे तो आजकल शहर से गायब हो गए हें शायद दिख जाए यही सोचकर ।
आज भोपाल में बारिश भी हुई तो शाम सोचा, थोड़ा वॉक कर आऊं --मेरे एरिया इ 7 में हर चौथा मकान अँधेरे में डूबा मिला किसी में जंग लगी नेम प्लेट तो कोई उजाड़ और रहस्यमय ,तो किसी में चौकीदार, जहाँ बरसों से मकान मालिक आये ही नहीं।
सोचें कितने खून पसीने से जाने कितने जतन से जाने कितने सपनीले गहनों को बेचकर उन्होंने मकान बनाये होंगे और बनने के बाद कितनी हसरतों को गूंथकर बच्चों को दिया होगा।
आज वहां उनका नाम लेने वाला कोई नहीं। सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या पर ये दृष्य और सोच थोड़ा दुखी करती है। जीते जी अपने बच्चों के लिए जमीन जायदाद इकठ्ठा करना बेमानी है। बच्चों को उड़ने दो, अपना आसमान चुनने दो अपने घरोंदे बनाने दो।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।
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