ममता यादव।
आपके जीवन में आने वाला हर इंसान,हर चीज,हर पल ये सारी प्रकृति आपको कुछ न कुछ सिखाती है शिक्षित करती है।मेरे भी बहुत सारे शिक्षक हैं कोई कम नहीं कोई ज्यादा नहीं सबका अपना अलग स्थान है आप भी पढ़िये,जानिये।
मेरे शिक्षक मेरे संबल हैं। जीवन में आये बहुत सारे लोग उनकी कही हुई, बताई हुई छोटी—छोटी बातों का अनुकरण करती हूं। रोज सीखती हूं। इस बात को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि जीवन अपने आप में एक शिक्षक है। मेरे पहले शिक्षक मेरे माता—पिता जिन्होंने इतने मजबूत संस्कार दिए कि दुनियां में कहीं भी रहूं खत्म नहीं होंगे। मेरे माता—पिता ने विपरीत परिस्थतियों से सब्र के साथ जूझने और उनसे पार पाने की सीख दी। मेरे माता—पिता ने मुझे घर से बाहर निकलकर रहने की आजादी दी भरोसा किया उस समय जब लड़कियों का बाहर रहना बहुत बड़ी बात होती थी।
मेरे चच्चू जिनको देखकर लगता है जिंदगी दूसरों के लिये जियो तो ही सार्थक लगती है। मेरे भाई हिम्मत देते थे हौसला देते थे छोटे—छोटे काम करने के लिये ये कहकर करेगी नहीं तो सीखेगी कैसे। बाहर निकलेगी नहीं तो सीखेगी कैसे। मेरे पिता जिन्होंने हमेशा कहा जब भी ये बात परेशान करे कि मेरे पास वो चीज क्यों नहीं है जो मेरे अमीर दोस्त के पास है तो एक पल के लिये बच्चे अपने से छोटे वालों को देख लेना तब समझ आयेगा कि हमारे पास कम से कम ये तो है।
मेरे शिक्षक स्कूल से लेकर कॉलेज तक के शिक्षक सबने इतना सिखाया कि आज जीवन में उन्हीं सीखों पर अमल करते हुये आगे बढ़ती हूं। मेरे प्राईमरी कक्षाओं के शिक्षक अगर मेरे शब्द नहीं सुधारते मुझे शुद्धलेख नहीं लिखवाते व्याकरण नहीं पढ़ाते तो आज मैं ये नहीं सुन पाती कि मैं कैसा लिख पाती हूं। मेरे सागर विश्वविद्यालय के शिक्षक अशोक सर जिन्होंने मेरे नोट्स देखकर प्रोत्साहित किया कुछ और भी लिखा करो। रशियन इतिहास पढ़ाने वाले शर्मा सर जो लगभग हर क्लास में कहते थे कि आप आईएएस आईपीएस कुछ भी बन जायें मुझे उतनी खुशी नहीं जितनी खुशी तब होगी जब आपको देखकर मुझे झुकने का मन करे। ये तभी संभव होगा जब आप एक अधिकारी ये बड़े होने के साथ अच्छे इंसान होंगे। कंप्यूटर क्लास के संजय सर जिन्होंने कहा कि बेटा कदम नहीं बढ़ाओगी तो रास्ते कैसे खुलेंगे और आज भी यही सोचती हूं कि कदम नहीं बढ़ाउंगी तो रास्ते कैसे खुलेंगे। मतलब उन्होंने रिस्क लेना सिखाया। पत्रकारिता विभाग के शिक्षक जिन्होंने पत्रकारिता के किताबी ज्ञान के साथ व्यवहारिक ज्ञान भी दिया।
पत्रकारिता की दुनियां में आई तो किस्मत से वास्तविक पत्रकारों का सानिध्य मिला। सीमा के बाहर जाकर सीखने को मिला। मल्हार मीडिया शुरू करने के आज करीब 19 महीनों बाद सोचती हूं तो मुस्कुरा देती हूं। जब वरिष्ठ पत्रकार सोमदत्त शास्त्री जी से पहली मुलाकात हुई थी शायद 2005 में। मैने कहा था किसी विभाग में कैसे जायेंगे आईकार्ड या विजीटिंग कार्ड तो है नहीं तब उन्होंने लगभग डांटते हुये कहा था अपनी पहचान कब बनाओगे कबतक कार्ड के भरोसे रहोगे। उस समय बहुत तेज गुस्सा आया था मगर आज देखती हूं तो पाती हूं आपका काम,आपका व्यवहार आपकी पहचान होता है।
एक वरिष्ठ पत्रकार उनका नाम यहां देना ठीक होगा कि नहीं मगर उनकी बात पत्रकारिता के शुरूआत में ही गांठ बांध ली। किसी और से कह रहे थे एक पत्रकार का कभी क्यों नहीं मरना चाहिए। एक पत्रकार मित्र जो कहते थे कि खबरें फैली पड़ी हैं आपको देखने समझने लिखने की जरूरत है ये अलग बात है कि उन्होंने इसे कभी फॉलो नहीं किया।
मल्हार मीडिया शुरू किया उससे पहले से डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी जी को जानती थी मगर इतना नहीं। उनको देखकर सीखा सीख रही हूं कहीं भी पहुंच जायें अपना स्वाभिमान अपनी गरिमा ताक पर न रखें। कितनी भी उंचाई पर हों सादगी,सरलता,सहजता न छोड़ें। अपने से दशकों छोटे कनिष्ठों से मित्रता और गरिमापूर्ण व्यवहार।पत्रकारिता में लेखन में उनसे कुछ नहीं बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
कई लोगों से मैंने बेबाकी,हाजिरजवाबी सीखी है।
सप्रे संग्रहालय के संस्थापक श्री विजयदत्त श्रीधर जी जो कहते हैं गलतियां वही करता है जो काम करता है और गलती नहीं करोगे तो सीखोगे कैसे।जो प्रेरित करते हैं वेब मीडिया पर लिखो।
वेबमीडिया के कुछ पत्रकार जो सिर्फ वेबसाईट चलाते हैं उन्हें देखकर सीखती हूं सीख रही हूं कि इस क्षेत्र में किस तरह कैसे काम करना चाहिए कैसे आगे बढ़ना चाहिए।
अनगिनत लोग हैं जिनसे कुछ न कुछ सीखती हूं सीख रही हूं। चाहूं तो सबके नाम दे दूं मगर कुछ पेशेगत मजबूरियां हैं और कुछ झिझक भी क्या पता उन्हें ठीक न लगे।
पत्रकारिता जगत के हर खांटी और वास्तविक पत्रकार को देखकर कुछ सीखने मिलता है। बल्कि आपकी जिंदगी में रोज ब रोज टकराने वाला हर इंसान ये पूरी कुदरत आपको शिक्षित करती रहती है। आप पर है कि आप क्या कितना सीख रहे हैं, ग्रहण कर रहे हैं,फॉलो कर रहे हैं।
ये वो शिक्षायें हैं जो बुरे से बुरे वक्त में भी आपको धैर्य नहीं खोने देतीं।साहस का साथ नहीं छोड़ने देतीं। जब सारी दुनियां आपके खिलाफ होती है आपकी छवि बिगाड़ने में लगी होती है तब पूरे आत्मविश्वास के साथ कुछ लोग आपके साथ खड़े होते हैं और कहते हैं मैं हूं तुम्हारे साथ संघर्ष करो आगे बढ़ो।आपके शिक्षक,आपके दोस्त,आपके परिवार वाले कोई भी हो सकते हैं। उंगलियों पर गिनने लायक हैं लेकिन ऐसे लोग मेरे पास हैं।
मेरे इतने सारे शिक्षक हैं कि लिखूं तो पन्ने कम पड़ जायें। मैं खुशनसीब हूं।
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