अनुरागी इसलिए कहता है -- गुंडों की कौन जात ? हिन्दू या मुसलमान, सुन्नी या शिया गुंडों का कौन धरम? इन्हें तो बस खून बहाना आता है ये मनुष्य नहीं पिशाच हैं और इनको खत्म करना जरूरी है। संवेदना -प्रवण रचनाकार अपने समय और परिस्थितियों को अपने सांस्कृतिक संस्कारों के प्रकाश के साथ जीता है।उसका मन अतीत में विचरता हुआ अपने वर्तमान से सुखद भविष्य की कल्पनाओं को रचता है और उसका भविष्य निज का नहीं होता वह तो घर परिवार,राज्य और देश की सीमाओं से बाहर हो वसुधैव कुटुंबकम की कल्पना करता है।यह अलग बात है की वह जिस भविष्य की रचना करता है वर्तमान में आते आते वह ईर्ष्या-द्वेष और आतंक की भैट चढ़ जाता है।दरअसल पापा ने तीन युगयी समय को देखा और जीया है ।उन्होंने गुलाम भारत में जन्म लिया और बचपन में ही गुलामी की पीड़ा को सहा भी और स्वतंत्रता की कोशिश और फिर आजादी का समय और उस नेक मूल्य को जीया।भविष्य वर्तमान बना और उन्होंने उसे भी समभाव से देखा और जीया।
19 सितंबर की अल सुबह कश्मीर के उड़ी के हमले की खबर देखी-सुनी है तभी से पापा कि वही चिन्ता आक्रोश वाली तस्वीर नजर आ रही है।बैचेनी से इधर-उधर घूमते फिर उनकी छोटी सी सरौंती से सुपाड़ी कुछ इस तरह कटती जाती लगता कि वे अपनी दो इंच सरौंती से नापाक आतंकियों को ही समाप्त कर रहे हों। उनका आक्रोश उस समय का आक्रोश प्रतीत होने लगता जब बाल अवस्था में अपनी गुलेल से अंग्रेज थानेदार को घायल किया हो या देश के विभाजन को अपनी आँखों से देखा हो और फिर समूची चेतना पर उभरे घाव ,इन सब घटनाओं से एक बार फिर उभर आएं हो। अखबार पर नजर और कागज कलम ले मानो सीमा पर पहुँच जाते।जो भी आता उससे सिर्फ और सिर्फ यही सब बातें करते।कभी आतंकियों को सजा देने की तो कभी उन्हें सुधारने की। वे कहते -"एक टोटल नेगेटिविटी सारी दुनिया में व्याप्त है और पॉजीटिव सोच की कोई गुंजायश ही दिखाई नहीं दे रही है। सारी दुनिया के सिरफिरों ने अपनी एक जमात बना ली है।ये सामूहिक रुप से विक्षिप्त हैं और हर समय लडाई पर आमादा हैं। वे बुदबुदाते और कहते इन वहशी पागलों का दुनिया के मसलो से जी ऊबता है,तो दीन के उठा लेते हैं।जमीन के मसले कम पड़ जाए तो आसमान के खोज लाते हैं और ऐसे लोग हर जगह मौजूद हैं। इन्हें कहीं खोजने नहीं जाना पड़ता छोटे बड़े रुप में इन्हें हमारे आस-पास भी देखा जा सकता है,जिन्हें दुसरों को दुख पहुंचाने में आत्मसुख की अनुभूती होती है। यह तो इतने पागल हैं कि शांति के लिए भी खून बहाने से पीछे नहीं हटते।इन्हें बस बहाना चाहिए लड़ने का।" पापा के द्वारा कहे ये शब्द आज यथार्थ में घटते नजर आते हैं।कश्मीर की घटना के बाद पापा और पापा की कविता अनायास याद हो आई है।दोस्तो,खड़े हो जाओ और तन कर खड़े रहो क्योंकि आज अहर्निश जन-गण-मन गूँज रहा है। और जब राष्ट्र-गीत की धुन जागती है उस समय कहीं भी कोई सोता नहीं है जो जहाँ होता है,खड़ा हो जाता है। इकाई का अहं कुछ बड़ा हो जाता है। इकाई राष्ट्र बन जाती है हर भुजा फड़कती है छाती तन आती है। दोस्तों,खड़े हो जाओ और तब तक खड़े रहो जब तक सीमाओं पर बिगुल गूँजता है क्योंकि यह ऐसा बिगुल है चाहे जब नहीं बजता यह तो तब बजता है जब कोई भेड़िया पागल हो जाता है घर में घुस आता है और हमारे संगमरमरी शिल्प रच रहे हाथ थम हथियार उठाने को मजबूर हो जाते हैं राँगोली रच रही चम्पई भुजाओं में कृपाण आ जाती है कायर भी ऐसे वक्त शूर हो जाते हैं। ऐसा बिगुल उस समय बजता है जब धरती की माँग के सिन्दूर पर आँच आती है केशर के बागों में बिजली नाच जाती है।
दोस्तों खड़े हो जाओ और तब तक खड़े रहो जब तक मानसरोवर के हंस मुक्त नहीं हो जाते। हिमालय के मन की दाह शान्त नहीं हो पाती हम इस अपमान का बदला नहीं ले पाते।
देखो, बैडं बज रहा है और होम होती जा रही हैं कतारें। उठो,और शहीदों को सैनिक सलामियाँ दो। उनकी जगह पूरी करो, नूतन जवानियाँ दो। क्योंकि वीर सीमा पर इसलिए काम आए हैं तुम सब घर-आँगन में राँगोली सजा सको।
बाँसुरी बजा सको। तुम्हारे लाड़ले बेटे परवान चढ़ सकें लिख सकें,पढ़ सकें इसलिए कि माँ के ये बेटे आज इस लाम पर काम आ गए हैं। ध्रुव के नज़दीक अटल धाम पा गए हैं।
दोस्तों,खड़े हो जाओ और तन कर खड़े रहो क्योंकि आज सीमा पर बिगुल गूँज रहा है।
पापा की इस तरह की कविताओं में उनकी आत्मिक वेदना के साथ आक्रोश झलकता है।उनकी कविताओं को सुन कर लगता था मानो वे मात्र राष्ट्रनुरागी हैं।अहिंसक समाज की,युध्द-हीन संसार के नये मनुष्य का सपना देखने वाला सह्रदय कवि की मनोदशा इन विकृत परिस्थितियों में गा उठती है -रेशम के मकरंदी कोश अभी भींगे हैं, अरून- बरन-कलियों ने किरन-परस पाया है। चन्दा को गया हुआ धरती का हरकारा प्यार का संदेशा ले धरती पर आया है। ऐसे में आवारो, प्यार की तलैया में , कीच मत उछारो। बन्द करो उद् जन की शैतानी बन्द करो! बन्द करो एटम की शैतानी बन्द करो!
उनकी संवेदनाए इंसानों के साथ पशु-पक्षियों के साथ भी होती है।जब इस तरह के हथियारों का उपयोग होता है तब वह बारुद पहचान कर नहीं मारती। तब बेकसूर इंसानों के साथ बेजुबान पशू-पक्षी भी मारे जाते है ।वे कहते हैं,- मैना की मुनियाँ ने अभी चोंच खोली है, धौरी की बछिया ने पहला तृण चाबा है; झबरी के पिल्लों की आँख अभी ऊघरी है। हिरनी के छौनों ने अभी चौक लाँघा है। ऐसे में हत्यारों, गर्भिणी चिरैया को मत गुलेल मारो! बन्द करो............ प्राणी -मात्र की पीड़ा -यात्रा के पथ गीत हैं उनकी रचनाऐं।जिस किसी के पास एक संवेदनशील मनुष्य का दिल होगा वह इन्हें पूरी आस्था के साथ दुहराएगा। पर मैं पापा के नये मनुष्य के सपने की बात करना चाहती हूँ , वे कहते हैं--"आलमी आदमी एक सपना है,जो इंसानियत के शुरुआती दौर से ही पाला हुआ है और जब-जब भी कोई अवतार, नबी,पैगम्बर या बुध्द धरती पर आया है,उसने सपने में रंग भरे हैं और इसे साकार करने की कोशिश की है। यह वैश्विक मनुष्य या आलमी आदमी--मनुष्य की चेतना की नैसर्गिक खिलावट का भीतरी एहसास है।मनुष्य स्वयं को महान अस्तित्व के जीवंत हिस्से के रुप में अनुभव करता है और 'सर्वं खल्विदं ब्रह्मा 'की परम पावनता पा लेता है।" वे अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहते हैं-यही तो वह सपना है जो लोक-यात्रा के दौरान ओशो श्री रजनीश, मनुष्य को सौंप गए हैं-'I leave you my dream' कहकर ,जिस 'नये मनुष्य'की अवधारणा ओशो ने की है,वह नया मनुष्य किसी देश,जाति,धर्म या सम्प्रदाय से बँधा नहीं होगा,वह मुक्त होगा और वैश्विक होगा।यह 'Global man' ही पापा और ओशो का सपना है। इन दोनों की एक सी भाषा है-- प्रेम और ध्यान इस वैश्विक मनुष्य के बोध-शब्द हैं।वे इन्हें दो पंख कहते हैं, जिनके सहारे मनुष्य परमात्मा तक उड़ान भर सकता है और प्रेम के बारे में कहा गया है......
प्रेम न बाड़ी ऊपजे,प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजा जो चहें,शीश देय ले जाय।।
पर इस माहौल में क्या वह सपना देखा जा सकता है?आज उनके युध्द हीन संसार की कल्पना कैसे की जा सकती है जबकि सारी दुनिया अपने अपने बजट का बड़ा भाग हथियारों के लिए रख रहा हो? अब समय आ गया है ,अगर उन्हें हमारी भाषा समझ नहीं आ रही है तो फिर उन्हें उन्हीं की भाषा में समझाया जाये और एक बड़े युध्द के लिए हम सब तैयार रहें इन नापाक इरादों को खत्म करने के लिए।और पापा के ही शब्दों में--हम प्रजातंत्र के कोटि-कोटि खम्भों वाले युग-राजभवन से बोल रहे हैं-सारा विश्व सुने। हर खम्भा है फौलाद अशोकी लाटों का हर कलावती मेहराब ज्योति की टहनी है जिनको दुनिया से बात शान्ति की कहनी है जो भी इन शान्ति कपोतों पर बारुदी बाज उड़ाएगा उसके नापाक इरादों की पल-भर में धूल उड़ा देंगे यह सारा विश्व सुने।
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