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याद-ए-अनुरागी:बूंदता बिसारो हे सिन्धु बनो

वीथिका            Aug 02, 2016


richa-anuragi-1ऋचा अनुरागी। बरसात का मौसम है ,मेरे घर के चारों ओर बरसाती घास-फूस उग आईं हैं ,इनके साथ-साथ कुछ भाजी, पत्ते, पौधे और तरह—तरह की बेल भी दिखाई देने लगी हैं। इनसे मेरा परिचय माँ ने कराया है कि यह पुआर है तो यह पोई है,इसकी भाजी पका सकते हैं,इसका सूप बना सकते हैं तो इसके भजिए। मां की इजाद की हुई डीसेज का जबाब नहीं और उनके नाम भी कम मजेदार नही।जैसे खलबट्टा सेंडबिच,खामोंखाँ और हरकुछ। माँ कहती है आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है और मेरी डिसेज इसी आवश्यकता की देन हैं।बात बरसात की हो रही है और मुझे किचिन में नाचते गाते पापा नजर आते हैं ,डम-डम डिगा-डिगा,मौसम भिगा-भिगा ,हम सब मांगे भजिए-आलू बडा आलू बडा। माँ ढेर सारी तरह तरह के पत्ते तोड़ लाती और फिर परात में बेसन घोला जाता तब भजिया पार्टी होती जिसमें आस-पास के लोगों के साथ पापा की मित्र मंडली तो शामिल होती ही।और ऐसा पूरे बारिश के मौसम में होता। इन भजिओं के साथ माँ की हर बार सुनी कहानी भी साथ-साथ चलती जाती तुम्हारे पापा नगर सेठ की हवेली छोड़कर निकल पड़े थे शिक्षा की अलख जगाने वो भी खाली हाथ ,नरसिहपुर में कालेज खोल लिया अब तन्खा बाटने के बाद घर खर्च को पैसे ही नहीं बचते और आलम यह कि घर से कोई बगैर खाये जा नहीं सकता फिर चाहे वो कालेज के छात्र ही क्यों न हों। तुम्हारे बब्बाजी और नाना को भनक भी नहीं होनी चाहिए कि तंगी में हैं मैं बहुत सुबह अंधेरे में ही लालटेन की रोशनी में खेतों के बाहर से ढेर सी साग-भाजी तोड़ लाती,अंधेरे में इसलिए कि कोई यह ना कहे कि बडे़ घर की बहू-बेटी जंगली साग-भाजी तोड रही है और इन्हीं से नाना व्यंजन बना कर थालियाँ सजा देती। greenery-bhopal सच पापा की मेहमान नवाजी गजब की थी बचपन से हमने यही देखा कि पापा के पास कोई भी आ जाये समय के अनुसार चाय-नाश्ता ,भोजन होगा ही और पापा कभी अन्दर आकर नहीं कहते ना पूछते कि आपके पास व्यवस्था है भी कि नहीं ,बाहर से ही पहले माँ को आवाज लगते थे यार विजू कुछ चाय वाय हो जाये या दो थालियाँ और भेज देना। यह वाय का मतलब नाश्ता होता था। फिर आवाज अपनी पुत्र वधू को लगाने लगे यार मिताली कुछ हो जाये ये प्यारे भाई आऐ हैं और मीता हँसती हुई भोजन ले हाजिर हो जाती। सास ससुर और मीताली की गजब की अन्डर स्टेटिग थी। हर आने वाला उनका प्यारा भाई -बहन या बेटा-बेटी होता। नगर निगम के सफाई कर्मचारियों को भी पापा उसी प्रेम से बैठा कर खिलाते जिस प्रेम भाव से वे हमें खिलाते। उन्होंने कभी कोई भेद-भाव नही रखा। पापा की इसी मेहमान नवाजी ने माँ को पाककला विशेषज्ञ बना दिया। पापा ने बस सबसे प्यार किया और खूब प्यार किया। पापा की एक रचना याद आ रही है उनकी इसी स्नेह, प्यार और प्रेम पर,

सिन्धु बनो

भेद नहीं ईश और ईसा में काशी में काबा में चर्च में कलीसा में। भेद नहीं जूही और नरगिस के फूलों में रुप के निमंत्रण में आँखों की भूलों में ह्रदय की तरंगों में भेद नहीं भेद नहीं प्यार की उमंगों में भेद नहीं भेद नहीं। गौर-श्याम रंगों में भेद नहीं प्रभु पद आराधना के ढंगों में भेद नहीं। इंसान चमड़ी के होंगे हजार रंग कर्म कांड जड़ताएँ होंगी हजार ढंग मानव के शोणित का रंग किन्तु एक है। प्रभु की निकटता का ढंग किन्तु एक है। प्रेम ही मसीहा की आँखों का मर्म है। प्रेम ही मुहम्मद का समताप्रद धर्म है। प्रेम ही अहिंसा की सत्य निष्ठा शक्ति है। सूरा की दृष्टि और मीरा की भक्ति है। प्रेम ही कबीरा के चेतन का मंत्र है। प्रभु के मधु शासन का एकमात्र तंत्र है। हर चेतना दृष्टि स्वयं प्रेम की पताका है। हम सब भी सृष्टि के प्रवहमान बिन्दू हैं। बाहर से बूंदे हैं भीतर से सिन्धु है। बूंदता बिसारो हे सिन्धु बनो। मुस्लिम क्रिस्तान बौध्द जैन या हिन्दू बनो।

नरसिंहपुर कालेज की एक घटना पापा बहुत मजे में बताते कि एक बार कालेज के कुछ छात्रों ने माँ को फुसलाकर पेपर देख लिए जबकी पापा ने पेपर सेट कर पंलग की निबाड़ में फसाऐ थे। रात को जब पापा ने पेपर निकाले तो वे दो निबाड़ आगे मिले पापा समझ गये कि दाल में कुछ काला है बस रात में ही पापा ने पेपर बदल दिए ,दूसरे दिन परीक्षा में वे छात्र सर पकड़े एक-दूसरे को देख रहे थे। बाद में उन्हें घर बुलाकर समझाया और माँ को भी डांट पड़ी उसके बाद उन छात्रों ने पापा से वादा किया कि वे आगे कोई गलत काम नहीं करेंगे। पापा के यह छात्र भारत के जिम्मेदार नागरिक बने कोई जज तो कोई सिविल सर्विसेज में उच्चतम पदों पर तो कोई शिक्षाविद् है। उनके छात्र अक्सर पापा से मिलने आते रहते थे और अपने गुरु की दी हुई शिक्षा के बारे में हम सबको भी बताते उनकी बातों से लगता था कि एक अच्छा गुरु अपने शिष्यों का गुरूर भी हो सकता है और जीवन भर मार्गदर्शन भी कर सकता है। पापा एक अच्छे शिक्षक भी थे अनेकों बार यह हम भाई-बहनों ने भी महसूस किया।हर विषम परिस्थितियों में हँसते हुये जीवन को जीने की कला हमने पापा से ही सीखी। वे जीवन रुपी पाठशाला के बेहतरीन शिक्षाक थे।हर तरह की समस्याओं के लिए उनके पास एक कहानी और चुटकी में समाधान रहता मानो वे कोई जादूगर हो। पापा की हर बात निराली होती और हर बात में कुछ समझ सको तो एक सीख मिल जाती। सच ऐसा पिता ,गुरु ,मार्गदर्शक और बहुत प्यारा दोस्त,प्रभु की जब असीम कृपा होती है तभी मिल पाते हैं और प्रभु ने मुझ पर अपनी रहमतों की बरसात की है।


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