अयोध्या से कुंवर समीर शाही
तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आज़ादी दूंगा का नारा देने वाले नेता जी सुभाष चन्द्र बोष जीवन के प्रारंभ में जितने नामवर थे, उत्तरार्ध में उतने ही गुमनाम हो गये । 1945 की जिस कथित ताइहोकू विमान दुर्घटना से उनके निधन की कहानी बयां होती रही, वह भी शक के दायरे में है। ऐसे अनेक तथ्य-कथ्य मिलते हैं कि गुमनामी के साए में गुजरते उनके जीवन के उत्तरार्ध की जड़ें रामनगरी और उसके जुड़वा शहर फैजाबाद से जुड़ीं। वह जनवरी 1983 की बेहद सर्द सुबह थी, जब शहर के एक प्रतिष्ठित चिकित्सक और दो -तीन अन्य लोग सिविल लाइंस स्थित रामभवन पहुंचे। इस मकसद से कि उनके गुरुजी के लिए आवास की आवश्यकता है। भवन स्वामी गुरुबसंत सिंह से बात बन गई और दो - तीन दिनों के अंतराल पर ही ‘गुरुजी’ पूरी गोपनीयता बरतते हुए रात में रामभवन के उस हिस्से में शिफ्ट हो गए, जो उनके लिए मुकर्रर किया गया था। भवन स्वामी को आगंतुकों के इस रुख से संशय भी हुआ और वे उनकी गतिविधियों पर गौर करने लगे। स्वयं गुरुजी ही संदेह की सबसे बड़ी वजह थे। एक बुजुर्ग सेविका के अलावा वे किसी और के सामने प्रकट नहीं होते थे। किसी पर बहुत अनुग्रह हुआ तो पर्दे की ओट से अनुभव के कुछ मोती बांट देते थे। जल्दी ही यह स्पष्ट हो गया था कि रामभवन में प्रवास करने वाले गुमनाम शख्स कोई साधारण किरदार नहीं हैं, तो उनका नेता जी से समीकरण स्थापित होने में कुछ वक्त लगा। उन पर निगाह रखने वालों को उनका भले ही पता नहीं था पर यह जरूर पता था कि जिस 23 जनवरी को तारीख को उनके इर्द-गिर्द कोलकाता तक से चुनिंदा लोग आकर सत्संग-समागम करते हैं, वह नेता जी सुभाषचंद्र बोस का जन्मदिन है।
जब तक लोगों के कान खड़े होते और उनकी सच्चई को लेकर निर्णायक पहल की नौबत आती, तब तक 16 सितंबर 1985 को उनके निधन की मनहूस तारीख आ गई। उनके पास से बरामद सामान और उनके परिवार की तस्वीरें, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित नेताजी से संबद्ध आलेख, कई आला लोगों के पत्र, नेताजी की कथित मौत के मामले की जांच के लिए गठित शाहनवाज आयोग एवं खोसला आयोग की रपट आदि प्रमुख रहे। आनन-फानन में किया गया उनका अंतिम संस्कार भी आला प्रशासनिक एवं सैन्य अधिकारियों की निगरानी में हुआ और जिस कंपनी गार्डन के बगल उन्हें अंतिम विदा दी गई, उस सैन्य संरक्षित क्षेत्र में किसी साधारण शख्स के कफन-दफन की कल्पना तक बेमानी है।प्रशासन को शायद यह अनुमान था कि नेताजी से जुड़ती स्थानीय दावेदारी का इसी के साथ पटाक्षेप हो जाएगा पर इतनी सनसनीखेज बात थी, तो उसे दूर तलक जाना ही था। कड़ियां निरूपित होने लगीं। दावा किया जाने लगा कि रामभवन में रहने वाले नेता जी ही थे।
वे छह-सात वर्षों तक अयोध्या में भी रहे और इससे पूर्व बस्ती एवं नैमिषारण्य में भी उन्होंने अज्ञातवास किया। सन 2001 में केंद्र की एनडीए सरकार ने नेताजी की मौत की सच्चई जानने के लिए मुखर्जी आयोग के रूप में एक और आयोग का गठन किया और आयोग की जांच के दायरे में ताइहोकू विमान दुर्घटना की समीक्षा करने के अलावा जो सबसे बड़ा विषय था, वह अयोध्या-फैजाबाद में प्रवास करने वाले गुमनाम संत की वास्तविकता थी। हालांकि पूर्व के दो आयोग की तरह मुखर्जी आयोग भी निर्णायक निष्कर्ष नहीं प्रस्तुत कर सका पर यह जरूर स्पष्ट हुआ कि जिस ताईहोकू विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत का दावा किया जाता रहा, वह दुर्घटना ही नहीं हुई। रामभवन के उत्तराधिकारी एवं नेताजी सुभाषचंद्र बोस राष्ट्रीय विचार केंद्र के संयोजक शक्ति सिंह के अनुसार विधिक रूप से भले ही यह न तय हो कि गुमनाम संत नेताजी थे पर तथ्य स्वयं में ही सारी कहानी बयां करते हैं और यदि नेता जी होने के उनके दावे को नकारना है तो यह बताना होगा कि गुमनाम संत आखिर कौन थे। 13 जनवरी 2013 को दाखिल शक्ति सिंह की ही याचिका पर उच्च न्यायालय ने गत 29 वर्षों से कोषागार में धूल फांक रहे बाबा के सामान संग्रहालय में वैज्ञानिक विधि से सुरक्षित करने एवं रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में समिति गठित कर रामभवन में प्रवास करने वाले संत की सच्चई पर से पर्दा हटाने का राज्य सरकार को निर्देश भी दे रखा है।
16 सितंबर, 1985 के दिन. फैजाबाद के सिविल लाइन्स में स्थित रामभवन में निवास करने वाले एक व्यक्ति की मृत्यु हुई जिन्हें गुमनामी बाबा के नाम से जाना जाता था। बताया जाता है कि गुमनामी बाबा सन् 1975 में फैजाबाद पधारे थे। उनके निवासकाल में उन्हें पास-पड़ोस के किसी भी व्यक्ति ने नहीं देखा था, यहाँ तक कि उनके मकान मालिक तक ने भी नहीं। वे स्वयं को गुप्त रखा करते थे और यदि किसी से बात करने की नौबत आ जाती थी तो परदे के पीछे से बात किया करते था। यही कारण है कि लोगों ने उन्हें गुमनामी बाबा नाम दे दिया।
गुमनामी बाबा के साथ उनकी एक सेविका सरस्वती देवी देवी रहती थीं जिन्हें वे जगदम्बे के नाम से बुलाया करते थे। सरस्वती देवी के बारे में कहा जाता है कि वे नेपाल के राजघराने से ताल्लुक रखती थीं।
गुमनामी बाबा की मृत्यु का समाचार फैजाबाद में आग की तरह फैल गया। लोग उन्हें एक नजर देखना चाहते थे किन्तु बाबा की मृत्यु के दो दिन बाद अत्यन्त गोपनीयता के साथ उनका अन्तिम संस्कार उनके शरीर को तिरंगे में लपेट सरयू के गुप्तार घाट में कर दिया गया।
किन्तु जब गुमनामी बाबा के कमरे के सामान को देखकर लोग आश्चर्य में रह गये। उन सामानों की वजह से लोगों को लगने लगा कि गुमनामी बाबा कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे बल्कि वे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हो सकते हैं। स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि 23 जनवरी तथा दुर्गा पूजा के दिनों में गुमनामी बाबा से मिलने बहुत लोग आया करते थे, जो गुमनामी बाबा को भगवनजी सम्बोधित किया करते थे। उल्लेखनीय है कि 23 जनवरी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी का जन्म दिवस है।
सरकारी खज़ाने में जमा गुमनामी बाबा का सामान
सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता/परिवार की निजी तस्वीरें
कलकत्ता में हर वर्ष 23 जनवरी को मनाए जाने वाले नेताजी जन्मोत्सव की तस्वीरें
लीला रॉय की मृत्यु पर हुई शोक सभाओं की तस्वीरें
नेताजी की तरह के दर्जनों गोल चश्मे
555 सिगरेट और विदेशी शराब का बड़ा ज़खीरा
रोलेक्स की जेब घड़ी
आज़ाद हिन्द फ़ौज की एक यूनिफॉर्म
1974 में कलकत्ता के दैनिक 'आनंद बाज़ार पत्रिका' में 24 किस्तों में छपी खबर 'ताइहोकू विमान दुर्घटना एक बनी हुई कहानी' की कटिंग्स
जर्मन, जापानी और अंग्रेजी साहित्य की ढेरों किताबें
भारत-चीन युद्ध सम्बन्धी किताबें जिनके पन्नों पर टिप्पणियां लिखी गईं थीं
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की जांच पर बने शाहनवाज़ और खोसला आयोग की रिपोर्टें
सैंकड़ों टेलीग्राम, पत्र आदि जिन्हें भगवनजी के नाम पर संबोधित किया गया था
हाथ से बने हुए नक़्शे जिनमे उस जगह को इंकित किया गया था जहाँ कहा जाता है नेताजी का विमान क्रैश हुआ था
आज़ाद हिन्द फ़ौज की गुप्तचर शाखा के प्रमुख पवित्र मोहन रॉय के लिखे गए बधाई सन्देश
क्या गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस थे? यदि वे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस थे तो गुमनामी जीवन व्यतीत करने के लिए क्यों विवश हुए?
हो सकता है कि उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से सम्बन्धित उन फाइलों में छुपे हुए हों जिन्हें आज तक सरकार ने गुप्त रखा हुआ है!
मुखर्जी आयोग ने भी किया था इशारा
सुभाष चंद्र बोस की मौत की जांच के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर गठित मुखर्जी आयोग ने विमान हादसे में नेताजी के मौत को खारिज कर दिया था। आयोग ने उनकी गुमशुदगी से जुड़े पांच सिद्धांत सामने रखे थे।
आयोग का पहला सिद्घांत था कि अगस्त 1945 में जापान के तायहीको फारमोसा में दुर्घटना में नेताजी की मौत हुई। दूसरा यह कि अगस्त, 1945 में रेडफ्रोट में उनकी हत्या की गई। तीसरा यह कि साधु का जीवन जीते हुए 1977 में उनकी मृत्यु हुई। चौथा कि वह मध्य प्रदेश शिव पुकलम में मरे। पांचवां यह कि नेताजी की मौत गुमनामी बाबा के रूप में फैजाबाद में हुई।
मुखर्जी आयोग ने जिस गुमनामी बाबा की ओर इशारा किया था वे फैजाबाद के राम भवन में रहते थे। 18 सितंबर, 1985 को उनकी मौत हुई। बताया जाता है कि नेताजी के रिश्तेदार अक्सर उनसे मिलने आते थे। मुखर्जी आयोग ने गुमनामी बाबा से जुड़े सामानों की भी जांच की थी। २३ जनवरी को सुभाष चन्द्र बोश विचार केंद्र के संयोजक शक्ति सिंह ने चौक से नगरपालिका तक नेता जी सम्मान यात्रा निकाल जिसमे हजारो लोगो ने उन्हें अपनी श्रधांजलि अर्पित की !
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