स्वाबलंबन और पर्यावरण रक्षा की राह दिखाता ब्रह्मनिष्ठालय

वीथिका            Jul 16, 2015


अनिल सिंह छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के वनग्राम सोगड़ा स्थित औघड़ संत अवधूत भगवान् राम जी तपोस्थली ब्रह्मनिष्ठालय से स्थानीय वनवासियों को स्वावलंबन एवं पर्यावरण रक्षण हेतु एक राह दिखाई गयी। यह राह जशपुर में चाय की खेती एवं उसके प्रसंस्करण के रूप में फलीभूत हो रही है। कभी किसी ने सोचा भी नहीं था की जशपुर चाय के लिए उपयुक्त वातावरण वाला स्थान होगा। यहाँ के सीधे-सादे वनवासी परंपरागत खेती पर निर्भर हैं। विगत वर्षों में खेती चक्र बिगड़ने और उत्पादन में कमी से इस क्षेत्र के पलायन बढ़ गया था। सोगड़ा स्थित अघोर पीठ के वर्तमान संत औघड़ गुरुपद संभव रामजी ने यहाँ चाय की खेती की कल्पना की एवं एक वर्ष बाद ही चाय उत्पादन आरम्भ हो गया। यहाँ की ग्रीन टी की क्वालिटी का जोड़ भारत में कहीं नहीं है। स्थानीय वनवासियों को रोजगार एवं इस खेती के लिए जानकारी सोग्दा आश्रम प्रदान कर रहा है। वन-विभाग ने भी आश्रम से प्रेरणा व जानकारी प्राप्त कर 8 एकड़ में चाय की खेती शुरू करवाई है। इस खेती की चाय पत्ती अब तोड़े जाने के लिए तैयार है। आश्रम से जानकारी लेने पर पता चला की लगभग डेढ़ लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से खर्च इस खेती पर आता है एवं एक वर्ष बाद 100 वर्षों तक इस खेती से चाय पत्ती प्राप्त की जा सकती है। इस खेती में कृषक अपने श्रम को लगा कर अधिक लाफ प्राप्त कर सकता है। स्थानीय कृषकों के लिए यह वरदान आश्रम की तरफ से प्राप्त हुआ है। लेकिन इस वर्ष यहाँ बारिश कम हुई कारण जानने पर पता चला की आस-पास वनों में कटाई चरम पर है। पहाड़ों को वृक्ष विहीन कर दिया जा रहा है। प्रशासन इस दिशा में ध्यान नहीं दे रहा है,अब स्थानीय लोगों के माध्यम से जन-जागरण का अभियान छेड़ा जा रहा है ताकि वृक्षों की कटाई को रोका जा सके। इन विपरीत परिस्थितियों के हिते हुए भी यह आश्रम मानवता की सेवा के लिए संकल्पित है। आश्रम में चाय प्रंस्करण के लिए यूनिट भी विद्यमान है। लेख​क धर्मपथ के संपादक हैं


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