मल्हार मीडिया ब्यूरो।
बैंकों के आठ लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के फंसे कर्जो (एनपीए) की समस्या से निपटने के प्रयासों में बाजार नियामक सेबी भी शामिल हो गया है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कर्ज संकट में फंसी लिस्टेड कंपनियों के पुनर्गठन की खातिर अपने अधिग्रहण के नियमों को नरम बना दिया है। इस ढील की वजह से निवेशक को ऐसी कंपनी को खरीदने पर ओपन ऑफर लाना अनिवार्य नहीं होगा। यह फैसला सेबी के निदेशक बोर्ड की बुधवार को हुई बैठक में लिया गया। इसके अलावा बोर्ड ने पी-नोट्स जारी करने पर सख्ती करने समेत कई और कदमों को भी मंजूरी दी।
बैठक के बाद सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी ने बोर्ड के फैसलों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि कर्ज में फंसी लिस्टेड (स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध) और इनसॉल्वेंसी व बैंक्रप्सी कोड के तहत स्वीकृत समाधान योजना वाली फर्मो के पुनर्गठन के लिए नियम आसान होंगे। इसका मकसद बैंकों के वसूल नहीं हो पा रहे कर्जो की समस्या से निपटने के प्रयासों में सरकार और रिजर्व बैंक की मदद करना है। नए कदमों से संकटग्रस्त सूचीबद्ध कंपनियों के पुनरोद्धार में सहूलियत होगी। इसका फायदा कंपनियों को कर्ज देने वालों और शेयरधारकों को मिलेगा।
फिलहाल कर्जदाताओं को रणनीतिक कर्ज पुनर्गठन (एसडीआर) स्कीम के तहत जिन लिस्टेड कंपनियों का पुनर्गठन किया जा रहा है, उन्हें ही तरजीही शेयर जारी करने संबंधी अपेक्षाओं और ओपन ऑफर की अनिवार्यता से छूट प्राप्त है। सेबी के पास उन बैंकों और वित्तीय संस्थानों की ओर से कई बार ऐसी मांग रखी गई जिन्होंने कर्ज के एवज में ऐसी कंपनियों के शेयर ले रखे हैं। ये कर्जदाता अब इन शेयरों को नए निवेशक को बेचना चाहते हैं। ऐसे निवेशक इन शेयरों के अधिग्रहण से बचना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें खुली पेशकश करनी होती है।
सेबी ने पार्टिसिपेटरी नोट्स (पी-नोट्स) के नियमों को कड़ा कर दिया है। विदेशी संस्थागत निवेशक यानी एफआइआइ या एफपीआइ (विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक) भारतीय शेयरों व प्रतिभूतियों पर आधारित विदेश में निवेश पत्र (इंस्ट्रूमेंट) जारी करते हैं। इन निवेश पत्रों को पार्टिसपेटरी नोट यानी पी-नोट कहा जाता है।
कड़े कदम के तहत प्रत्येक पी-नोट पर 1,000 डॉलर का शुल्क लगाया जाएगा। इसे एक अप्रैल, 2017 से हर तीन साल पर जारीकर्ता एफपीआइ एकत्र और जमा करेगा। यही नहीं, हेजिंग को छोड़कर सट्टेबाजी के मकसद से पी-नोट्स जारी करने पर पाबंदी होगी। अलबत्ता बाजार नियामक ने इन पर पूरी तरह रोक लगाने की संभावना से इन्कार किया है। नियामक के ताजा उपायों का मकसद काला धन को सफेद बनाने के लिए नियमों का दुरुपयोग रोकना है। सेबी चेयरमैन ने कहा कि नियामक पी-नोट्स पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने पर विचार नहीं कर रहा है, क्योंकि कुछ नए निवेशक इसी रास्ते से भारतीय बाजार में प्रवेश करना चाहते हैं।
यह निर्णय ऐसे वक्त किया गया है जब पी-नोट्स या ऑफशोर डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट (ओडीआइ) के जरिये होने वाले निवेश में पहले ही काफी कमी आ चुकी है। अप्रैल में यह चार महीने के निचले स्तर 1.68 लाख करोड़ रुपये पर रहा। साथ ही बाजार नियामक ने उन विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआइ) के लिए नियमों में ढील दी है, जो पी-नोट्स के बजाय सीधे भारतीय बाजार में आना चाहते हैं। 1त्यागी ने कहा कि सेबी चाहेगा कि विदेशी निवेशक सीधे आएं। इसके अलावा, सेबी विदेशी निवेशकों के आसान पंजीकरण के लिए परिचर्चा पत्र जारी करेगा।
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