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उर्जित पटेल ने किया आलोचनाओं का स्वागत,बोले आरबीआई को खाल मोटी करनी होती है

बिजनस            Feb 17, 2017


मल्हार मीडिया ब्यूरो।
नोटबंदी को लागू करने के तौर तरीकों की कड़ी आलोचना से विचलित हुए बगैर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने आज शुक्रवार को कहा कि केंद्रीय बैंक को अपना कर्तव्य पूरा करते हुए शीघ्रता से अपनी खाल मोटी करनी होती है। साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नोटबंदी थोड़े समय की गिरावट के बाद भारत की आर्थिक वृद्धि में ‘तेजी से सुधार’ आएगा। पटेल ने गत 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपए के नोटों को वापस लिए जाने की घोषणा के केवल दो माह पहले गवर्नर का पद संभाला था। उन्होंने कहा कि नये नोटों को बाजार में डालने का काम ‘काफी तेज’ गति से किया गया है और केंद्रीय बैंक ने स्थिति को सामान्य बनाने में सफल रहा है।

सीएनबीसी-टीवी18 से बातचीत में आरबीआई गर्वनर ने कहा ‘मेरा मानना है कि इस काम में (आरबीआई के काम में) आप को जल्दी ही आपनी खाल मोटी करनी होती है, और मुझे लगता है कि हमने यही किया है। हमने अपना काम किया है और पिछले कुछ महीनों में कई बड़ी चुनौतियों का सामना किया है। हम तार्किक आलोचनाओं का स्वागत करते हैं और उसको उसी भावना से लेते हैं, क्योंकि इससे हमें बेहतर कोशिश करने में मदद मिलेगी।’ पटेल ने कहा कि हर कोई मानता है कि न केवल रिजर्व बैंक बल्कि पूरी बैंकिंग व्यवस्था ने पिछले कुछ महीनों में कई चुनौतियों के बावजूद एक ‘भागीरथ प्रयास’ किया है।

नोटबंदी के अर्थव्यवस्था पर प्रभाव के बारे में पटेल ने कहा कि इस बात पर सभी सहमत हैं कि अर्थव्यवस्था पर इसका अंग्रेजी के ‘वी’ अक्षर जैसा तेज प्रभाव होने जा रहा है। इसमें थोड़े समय के लिए वृद्धि में कमी आएगी (..फिर वृद्धि का ग्राफ तेजी से ऊपर उठेगा)।’ उन्होंने कहा कि ‘वापस लिए गए नोटों की जगह नये नोट जारी करने का काम तेजी से हुआ है। यह हामरी योजना के हिसाब से हुआ है जिसमें तय किया गया था कि खास प्रकार के नोटों को वापस लेने के बाद हमारी नोट छपायी और आपूर्ति योजना ऐसी होगी कि यह नए नोट चलन में पहुंचाने का काम जहां तक संभाव हो तेजी से पूरा हो। यह काम नोट छापने की हमारी क्षमता को देखते हुए ऊंचे स्तर का था।’

पिछले हफ्ते रिजर्व बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि के अनुमान को घटाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया था जो पहले 7.1 प्रतिशत रखा गया था। लेकिन उसने वित्त वर्ष 2017-18 में इसके फिर से 7.4 प्रतिशत पर रहने का अनुमान जताया। उन्होंने कहा कि पुरानी बेकार हो चुकी 86 प्रतिशत मुद्रा के चलन से बाहर होने के फायदे सामने आने में समय लगेगा और इन फायदों को सुनिश्चित करने के लिए बहुत से कार्य किए जाने हैं। रिजर्व बैंक के गर्वनर उर्जित पटेल ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि ऊंची वृद्धि दर तभी संभव है जब बुनियादी सुधार किए जाएं जिनमें भूमि-श्रम से जुड़े सुधार शामिल हैं। पटेल से पूछा गया था कि क्या भारत नौ प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि हासिल कर सकता है।

पटेल ने कहा, ‘अब यह कहना मुश्किल है कि हम 7.5 प्रतिशत से कितनी ऊपर की वृद्धि कर पाएंगे। लेकिन तथ्य यह है कि आज हम जहां हैं, हम उससे अधिक तेजी से वृद्धि कर चुके हैं। पर हो सकता है कि वह ज्यादा टिकाऊ स्थिति नहीं थी और यह टिकाऊ है। मेरा मानना है कि 7.5 प्रतिशत की वृद्धि दर ऐसी नहीं है जिस पर निराश हुआ जाए।’ पटेल की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने पिछले हफ्ते अपनी द्वैमासिक बैठक में नीतिगत ब्याज दर को लगातार दूसरी बार 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा पर मुद्रास्फीति के खतरे को देखते हुए अपने नीतिगत के दृष्टिकोण को ‘उदार’ से ‘तटस्थ’ कर दिया है ताकि केंद्रीय बैंक को आगे दर घटाने या बढ़ाने, दोनों तरह की गुंजाइश रहे।

उन्होंने कहा, ‘आर्थिक वृद्धि में यदि सबसे अच्छा योगदान कोई केंद्रीय बैंक दे सकता है तो यह कि वह महंगाई को कम रखे, स्थिरता लाए, वित्तीय स्थिरता हो और यही एक केंद्रीय बैंक की भूमिका होती है। यदि महंगाई ऊंची और अस्थिर हो तो बहुत ही कम देश उच्च वृद्धि दर के साथ चल पाते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि हमें उच्च वृद्धि दर पाने की दिशा में काम करना चाहिए लेकिन टिकाऊ आधार पर।’

रिजर्व बैंक के गवर्नर पटेल ने अमेरिक में डोनाल्ड ट्रंप सरकार के संरक्षणवाद की ओर बढ़ने पर चिंता व्यक्त की। पटेल ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह दुनिया के लिए चिंता का विषय है। उभरते बाजारों के लिए वित्तीय अस्थिरता की दृष्टि से चिंता का विषय है। मुझे नहीं लगता कि इससे कोई भी बचेगा। हमें इसी के साथ चलना होगा।’

विश्व की बदलती व्यवस्था के बारे में उन्होंने कहा कि इसमें से कुछ बातें ऐसी हैं जो भारत के नियंत्रण में है जैसे वृहद आर्थिक स्थिरताक के नियमों पर चलना। पटेल ने कहा, ‘मेरे हिसाब से हम इस मामले में सही जगह हैं।’ उन्होंने कहा, ‘हमारे पास ऐसा बजट है जिसमें राजकोषीय घाटा कम किया गया है। हमारे पास एक केंद्रीय बैंक है जिसको मुद्रास्फीति के एक लचीले लक्ष्य को साधन का काम दिया गया। हमारे पास 360 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी मुद्रा भंडार है और हमारे पास चालू खाता घाटा है जो लगातार नरम हो रहा है। तो हमें वृहद आर्थिक स्थिरता के लिए इन खास चीजों का विशेष ख्याल रखना है और क्यों कि यही बाते हूं बाहरी दुनिया की आरे से उठने वाले कुछ संकटों के समय हमें अपने पावों पर टिके रहने में मदद करेंगी।

ट्रंप के संरक्षणवाद पर पटेल ने कहा कि हमने अपनी अर्थव्यवस्था के द्वार 1990 के दशक में खोले थे और उन्हें नहीं लगता कि हमें किसी भी कारण से बदलना चाहिए क्योंकि हमें इस खुली अर्थव्यवस्था से फायदा हुआ है। उनका मानना है कि भारत को अपनी खुलेपन की नीति को बहुपक्षीय व्यवस्था के रास्ते से आगे बढाना सही रहे।



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