श्रीराम तिवारी।
फेसबुक पर नेहरू जी की तारीफ़ करना कलेक्टर अजयसिंग गंगवार जिला -बड़वानी [मध्यप्रदेश] को भारी पड़ रहा है। मध्यप्रदेश सरकार ने श्री गंगवार को कलेक्टरी से हटाकर मंत्रालय में शिफ्ट कर दिया है। सोशल मीडिया में नीतिगत टिप्पणी को लेकर राज्य सत्ता द्वारा किसी अधिकारी की बाँह मरोडने का यह पहला बाकया है! लेकिन इस प्रकरण से जाहिर हो रहा है कि अधिकांश उच्च अफसर ,डॉ ,इंजीनियर , आईएएस ,वकील,पत्रकार तथा वैज्ञानिक भी वर्तमान दौर के शासकों के धतकर्मों से नाखुश हैं। और वे महसूस कर रहे हैं कि नेहरुवाद के खिलाफ सत्ता नियोजित झूठा दुष्प्रचार एक राष्ट्रघाती षड्यंत्र है ,जिसका प्रतिकार हर हाल में होना चाहिए। जिसका श्री गणेश श्री गंगवार ने किया है।
इसी तारतम्य में मध्यप्रदेश सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से अभी-अभी एक सरकूलर भी जारी हुआ है। जिसमें प्रदेश के सभी अफसरों को हिदायत दी गई है कि वे 'सिविल सर्विस रूल्स का मुस्तैदी से पालन करें। हर खास -ओ -आम को विदित हो कि ये कथित सिविल सर्विस रूल्स अंग्रेजों ने भारत की जनता को गुलाम बनाए रखने के उद्देश्य से बनाए थे। आजादी के बाद भारत के संविधान निर्माताओं ने आँख मूँदकर अंग्रेजों के इस अवांछनीय सिविल सर्विस रूल्स के पुलंदे को यथावत जारी रखा है। इनमें वे श्रम विरोधी कानून भी शामिल हैं। जिनके खिलाफ लाला लाजपत राय ने अंग्रेजों की लाठियाँ खाईं और शहीद भगतसिंह,सुखदेव ,राजगुरु ने शहादत दी।
अंग्रेजी राज के काले कानूनों का ठीकरा आजाद भारत के संविधान में शुमार करके कुछ लोग तो भगवान भी बन बैठे। भारत की आवाम को यह जानने की सख्त जरुरत है कि इन रूल्स का लब्बोलुआब क्या है ? चूँकि अंग्रेजों का आदेश था कि गुलाम भारत के अधिकारियों को खुद होकर समझ-बूझ विवेक से काम नहीं करना है। बल्कि जो अंग्रेज सरकार याने स्वेत प्रभु कहें ,सिर्फ उसका अक्षरसः पालन करना है। यह सिलसिला आज भी जारी है। जिस किसी अहमक को मेरी बात पर यकीन ने हो वह किसी भी आईएएस या वरिष्ठ वकील से तस्दीक करतस्ल्ली कर ले।
गोकि अंग्रेज तो चले गए लेकिन गुलामी की निशानी के रूप में अपना सिविल सर्विस रूल्स छोड़ गए। इसके अलावा भी अंग्रेज बहुत कुछ छोड़ गए। वे धर्म-जात के रूप में फुट डालो राज करो की राजनीति भी छोड़ गए। अभिव्यक्ति की आजादी पर लटकती हुई नंगी तलवार छोड़ गए और अब अंग्रेजों की जगह शुद्ध भारतीय शासक सत्ता में विराजमान हैं। देशी भाई लोग अंग्रेजी राज की शिक्षा प्रणाली और उनके सिविल सर्विस रूल्स को पावन चरण पादुका समझकर बड़ी ईमानदारी और निष्ठा से पुजवा रहे हैं।
यदि कोई पढ़ा-लिखा स्वाभिमानी अधिकारी अपनी कोई स्वतंत्र राय व्यक्त करता है तो 'अंग्रेजी सिविल सर्विस रूल्स' आड़े आ जाते हैं। ताजा उदाहरण जिला कलेक्टर बडवानी अजयसिंग गंगवार का है ,उन्होंने फेस बुक पर जब नेहरू विषयक - स्वतंत्र विचार रखे तो उनको मजबूरन तत्काल वह पोस्ट हटानी पड़ी। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्रप्रसाद थे , सरदार पटेल ,पीडी टण्डन ,मौलाना आजाद, जगजीवनराम ,कृपलानी और लोहिया जैसे बड़े-बड़े नेता इस संविधान सभा के सदस्य थे। जबकि पंडित नेहरू को इससे बिलकुल अलहदा रख गया। यही वजह है कि अंग्रेजी गुलामी का स्वामिभक्ति वाला अक्स भारतीय संविधान में कांटे की तरह अभी भी खटक रहा है। इसकी एक बानगी प्रस्तुत है ,,,,,।
''कलेक्टर अजयसिंह गंगवार द्वारा मंगलवार -25 मई -2015 को फेसबुक पर की गयी पोस्ट प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गई है। नेहरू-गांधी परिवार की व्यंगात्मक रूप से प्रशंसा भरी पोस्ट में कलेक्टर अजयसिंह ने कई मामलों पर कटाक्ष किये हैं। अगले दिन जब इस पोस्ट को लेकर कलेक्टर साहब से उनकी प्रतिक्रिया पूछी गई तो उन्होंने निजी विचार कहकर बात खत्म कर दी,लेकिन देर रात विवाद बढ़ता देखकर उन्होंने उस पोस्ट को हटा लिया। '' [साभार नई दुनिया ,इंदौर दिनांक २६-५-२०१६ ,पेज-११]
मध्यप्रदेश के बडवानी जिला कलेक्ट्रर श्री गंगवार ने अपनी पोस्ट में यह लिखा था ;-
''जरा गलतियाँ तो बता दीजिये जो पंडित नेहरू को नहीं करनी चाहिए थी ,बहुत अच्छा होता । यदि उन्होंने [पंडित नेहरू ने ]आपको [भारत को ] 1947 में हिन्दू तालिबानी राष्ट्र नहीं बनने दिया ,तो यह उनकी गलती है ! उन्होंने [नेहरू ने ] आईआईटी ,इसरो,बीएआरएसी ,आईआईएसबी ,आईआईएम,भेल,गेल ,रेल, भिलाई राउरकेला स्टील प्लांट, भाखड़ा नंगल जैसे डेम्स, नेशनल थर्मल पावरपलांट ,एटामिक एनर्जी कमीशन स्थापित किये ,यह उनकी गलती थी। पं नेहरू ने आसाराम और रामदेव जैसे इंटेलक्चुवल्स की जगह होमी जहांगीर भाभा , विक्रम साराभाई ,विश्वेशरिया ,सतीश धवन ,जेआरडी टाटा और जनरल मानेक शा को देश की बेहतरी के लिए काम करने का मौका दिया ,यह नेहरू की गलती थी ! पंडित नेहरू ने गोमूत्र को बढ़ावा देने के बजाय मेडिकल कालेज खोले ,उन्होंने मंदिर बनवाने के बजाय यूनिवर्सिटीज खोलीं ,यह पंडित नेहरू का अक्षम्य अपराध है। पंडित नेहरू ने आपको अंध विश्वासी बनाने के बजाय साइंटिफिक रास्ता दिखाया ,यह भी उनकी भयंकर भूल थी ! इन तमाम गलतियों के लिए गांधी -नेहरू परिवार को देश से माफी अवश्य मांगनी चाहिए ।''
बड़वानी कलेक्टर अजय गंगवार ने भले ही व्यंगात्मक रूप से नेहरू परिवार की फेसबुक वाल पर प्रशंसा की हो पर उनकी आईएएस विरादरी ने इससे अपनी असहमति जताई । कुछ अंग्रेजीदां सीनियर आईएएस का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारी को राजनीति से दूर रहना चाहिए ! हालाँकि सामान्य प्रशासन मंत्री लालसिंह आर्य ने बहुत सटीक टिप्पणी की है ,उनका कहना है कि ''अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो सभी को है ,कलेक्टर साहब ने जो किया वह अपराध नहीं है ,उन्होंने उत्साह में लिख दिया होगा। उन्हें सिविल सर्विस रूल्स का पालन तो करना ही होगा ''!
उजड्ड भाजपा नेताओं को और संघ अनुषंगियों को अपने काबिल मंत्री लालसिंह आर्य से भद्र व्यवहार अवश्य सीखना चाहिए। श्री लालसिंह आर्य ने समझदारी भरा वयान दिया ,जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। जब कोई कांग्रेसी देश हित की बात करे तो दिल खोलकर उसका भी सम्मान होना चाहिए। कांग्रेस और भाजपा वालों को मेहरवानी करके एक दूसरे से घृणा करने के बजाय स्वस्थ प्रतिष्पर्धा करनी चाहिए। उन्हें वामपंथ के जन संघर्षों को देखकर भी कपडे नहीं फाड़ना चाहिए।
स्मरण रहे कि संघ परिवार के मार्फत आजाद भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तित्व और कृतित्व पर हमले 15 अगस्त-1947 से अब तक निरंतर जारी है। किसी कलेक्टर ने पंडित नेहरू के अवदान को सराहा , उनके कृतित्व को याद रखा ,यह तो भारतीय परम्परा की महान उपलब्धि है ,इंसानियत का श्रेष्ठतम श्रेष्ठ गुण है। जबसे केंद्र की सत्ता में मोदी सरकार आई है वस्तुओं के दाम तो बढ़े हैं किन्तु मानवीय मूल्यों में भी गिरावट आई है। नेहरूजी के व्यक्तित्व ,कृतित्व और विचारों पर सड़कछाप हमले जारी हैं। देश में अधिकांश युवा नहीं जानते कि ''हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के ,,इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भल के ,,,,जैसा गीत किसकी प्रेरणा से लिखा गया।
नेहरुवाद का और प्रगतिशीलता का वास्तविक संदेश क्या है ? देश में सत्ता परिवर्तन बुरा नहीं है ,किन्तु सत्ता परिवर्तन के बाद सत्ताधारी नेतृत्व में प्रतिस्पर्धात्मक कुंठा स्पष्ट झलक रही है। वैसे तो आर्थिक विपन्नता और साधनों के अभाव में असंतोष की अनुभूति हर साधारण मनुष्य का सहज स्वभाव है। इस प्रकार की बिडंबना से गुजरने वाले लोगों का व्यवस्था के प्रति विद्रोह स्वाभाविक है। लेकिन जो नेतत्व सत्ता में है उसे अपनी लकीर बढ़ाने का हक है लेकिन अपने पूर्वर्ती की लकीर मिटाकर अपना अधःपतन दिखलाना उन्हें शोभा नहीं देता। अपने पूर्वजों की उपलब्धि को अपनी बताने वाला कृतघ्न कहलाता है। यदि मौजूदा व्यवस्था की खामियों के लिए स्वाधीनता सेनानी या पूर्ववर्ती नेतत्व,मंत्री - जिम्मेदार हैं तो उनके द्वारा अर्जित उपलब्धियों के श्रेय से उन्हें भी वंचित नहीं किया जा सकता।
अतीत की सामूहिक भूलों या वैयक्तिक गलती के प्रति रोष स्वाभाविक है। किन्तु यदि किसी व्यक्ति, समाज या देश के वर्तमान हालात नाममात्र भी पहले से बेहतर हैं तो ही उन पर अंगुली उठनी चाहिए। दरपेश नयी समस्याओं के लिए क्या मौजूदा शासन-प्रशासन जिम्मेदार नहीं है ? क्या खुद की असफलताओं के लिए कृतघ्नता का भाव मुनासिब है ?अपने ही पूर्वजों की अकारण निंदा ,उनके प्रति अकारण ही असंतोष का भाव किसी भी व्यक्ति या समाज को सभ्य नागरिक नहीं बना सकता। अपितु नकारात्मकता की खाई में अवश्य धकेल देगा। समृद्ध राष्ट्र की सम्पूर्णता के लिए पूर्वजों,स्वाधीनता सेनानियों और अतीत की समस्त धरोहर के प्रति सम्मान भाव ही वास्तविक देशभक्ति का भाव जग सकता है।
समर शेष है ,निशा शेष है ,नहीं पाप का भागी केवल व्याध।
जो तठस्थ हैं समर भूमि में ,समय लिखेगा उनका भी इतिहास।।
[ राष्ट्रकवि -दिनकर ]
फेसबुक वॉल से
Comments