अदालतों का भृष्टाचार...स्वच्छ भारत में अमरबेल...कैसे पीछा छूटे ?

खरी-खरी, वीथिका            Oct 24, 2015


dr.ram-shrivastavडा० राम श्रीवास्तव क्या आप जानते हैं अदालती व्यवस्था के मामलों में दुनिया में सबसे भृष्ट देश 'पेरेग्वे' माना जाता है? वहां पर 87 फ़ीसदी न्यायालय और न्यायाधीश भृष्ट हैं। विश्व का क़ानून और न्याय सही तरह से करने के मामले में सबसे स्वच्छ देश 'डेनमार्क' है । पर वहाँ पर भी ईमानदारी शत प्रतिशत नहीं है।डेनमार्क में भी अदालतों का भ्रष्टाचार सात प्रतिशत तक है। बेईमान अदालतों और भृष्ट न्यायाधीशों की मेरिट लिस्ट में "भारत" का नम्बर आठवाँ निर्धारित किया गया है । हमारा शत्रु देश कहे जाने वाले भृष्ट देश, "पाकिस्तान" में भी हमारे देश से कम भ्रष्टाचार अदालतों में है। भृष्ट अदालतों वाले देशों की प्रावीण्य सूची में पाकिस्तान हमारे देश से बीस पायदान नीचे है। उसका नम्बर 28 वाँ है । विश्व बैंक द्वारा अधिकृत इस सर्वेक्षण में जहाँ भारत की अदालतें और न्यायाधीश 78 प्रतिशत भृष्ट हैं वहीं पाकिस्तान में न्यायायिक व्यवस्था सिर्फ़ 56 प्रतिशत भृष्ट है। यह आँकड़े कितने सच हैं कितने झूठ हैं यह तो विश्व बैंक और उसके शोधकर्ता ही जानते होंगे पर इनकी प्रामणिकता के विपरीत कुछ कहने के पूर्व हमें यह भी देखना होगा कि पश्चिम के देश भी अदालती भृष्टाचार से अछूतों नहीं है । दुनिया के सबसे सम्पन्न कहे जाने वाले देश अमेरिका मे भी अदालतें और उनके न्यायाधीश 55 प्रतिशत भृष्ट पाये गए है, जबकि अंग्रेज़ों के देश में भी अदालतों में व्याप्त भृष्टाचार 38 प्रतिशत मौजूद है । यह सब जानकारी और निष्कर्ष क्रेम्ब्रिज व्दारा प्रकाशित 429 पृष्ठों की किताब "अदालतों में विश्वव्यापी भृष्टाचार " के नाम से अभी प्रकाशित हुई है , यद्यपि इन निष्कर्षों में 2007 तक के आँकड़े सम्मिलित किए गए हैं ,पर एकीकृत रूप से पूरी दुनिया की न्याय व्यवस्था और भृष्ट न्यायाधीशों की करतूतों का यह एक साहसी दस्तावेज़ है । ईमानदारी के चश्में से देखने पर हमें यह सोचने को मजबूर करता है कि हमारे देश के जज इतने भृष्ट क्यों हैं । इन्हें ईमानदार कैसे बनाया जा सकता है । सरकार ने इस दिशा में पहल करने की कोशिश की थी ,कि उच्च तथा उच्चतम न्यायालयों में जजों की नियुक्तियाँ पारदर्शी तरीकों से की जाए और उसमें सरकार की भूमिका भी हो पर इस प्रयास को सुप्रीम कोर्ट ने लगता है इसलिए एकदम ख़ारिज कर दिया ... क्योंकि कोर्ट की नज़र में सरकार और उसके नुमाइन्दे पूरी तरह से उतने ईमानदार नहीं है जितनी कम भृष्ट न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली उनकी अपनी प्रणाली है । असली में हमारे देश में अदालतों और सरकारी तन्त्र में परस्पर सम्बन्ध साँप छछून्दर जैसा है और वकीलों की भूमिका भी तथाकथित भृष्ट जजों को बीन बजाकर अपने इशारों पर नचाने से भी कम नहीं है। पर अब समय आ गया है कि हम सबको "अदालतों की अवमानना " के भूत से डरे बग़ैर अपने विचार खुलकर रखना चाहिए । इस प्रकार के विचार मन्थन से कुछ हो या न हो पर हमें यह तो पता लग सकेगा कि वे कौनसे कारण है कि अदालती भृष्टाचार की मेरिट लिस्ट में भारत पाकिस्तान से भी गया गुज़रा है। पाकिस्तान हमसे 20 पायदान नीचे है हमारे यहां से कम भृष्ट माननीय जज महोदय पाकिस्तान में हैं । क्या माननीय सर्वोच्च न्यायालय को यह जानकर थोड़ी बहुत शर्म नहीं आना चाहिए ?


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