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अब संघ-सरकार की नजर होगी कपड़ा मंत्रालय पर

खरी-खरी            Jul 11, 2016


punya-prasoon-vajpaiपुण्य प्रसून बाजपेयी। 28/29 जून को दिल्ली में भैयाजी जी जोशी के साथ स्मृति इरानी की शिक्षा नीति पर लंबी बातचीत होती है। 30 जून को स्मृति ईरानी एमएमयू मुद्दे पर एटॉर्नी जनरल से बातचीत करती हैं। 1 जुलाई को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर स्मृति ईरानी हलफनामा तैयार करती है और सुप्रीम कोर्ट में इसे दाखिल भी किया जाता है और 5 जुलाई मंत्रिमंडल विस्तार से ठीक पहले पीएमओ से नागपुर फोन जाता है। पीएमओ भैयाजी जोशी जानकारी देता हैं कि एचआरडी मिनिस्टर यानी स्मृति ईरानी को बदला जा रहा है। यानी एक तरफ पीएमओ ने आखरी लम्हे में तय किया कि स्मृति इरानी को एचआरडी ​मनिस्टर से हटाया जायेगा। तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आखरी वक्त तक स्मृति ईरानी शिक्षा मंत्री है और बनी रहेगीं के आसरे शिक्षा को लेकर अपनी रणनीति बनाने में ही लगा रहा। तो सवाल तीन हैं, पहला क्या स्मृति का हटना संघ के लिये भी झटका है? दूसरा, क्या शिक्षा नीति को लेकर संघ-सरकार टकरायेगें, और तीसरा क्या एचआरडी मंत्रालय में सिर्फ चेहरा बदला है बाकि सब स्मृति के दौर का ही रहेगा? जाहिर है तीसरा सवाल सबसे बडा है, क्योंकि स्मृति ईरानी को मानवसंसाधन मंत्रालय से हटाने की सिर्फ जानकारी ही संघ को दी गई। उससे मैसेज यही गया कि सरकार के फैसले के आगे संघ की चलती नहीं और स्मृति ईरानी की तरह कोई भी मंत्री अगर ये सोच कर काम कर रहा है कि संघ उसके साथ खड़ा है तो फिर स्मुति की तर्ज पर उसका पत्ता भी कभी भी कट सकता है और संघ चाहे ताकतवर दिखे लेकिन अमित शाह के सुझाव और मोदी के फैसले के आगे उसकी चलती नहीं है। खास बात तो ये भी है कि ना सिर्फ एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा या भारतीय शिक्षा नीति बल्कि स्मृति इरानी ने संघ के कहे मुताबिक ही सारी नियुक्ति कीं। चाहे वह नेशनल बुक ट्रस्ट में बलदेव शर्मा हों या फिर आईसीएचआर में वाई सुदर्शन राव और कमोवेश देश की हर यूनिवर्सिटी में वीसी की नियुक्ति में संघ की ही चली ना कि बीजेपी की। बीएचयू, डीयू और जेएनयू तक में वीसी की नियुक्ति के पीछे संघ ही ज्यादा सक्रिय रहा। यानी जो स्मृति इरानी संघ के इशारे पर देश की शिक्षा नीति बनाती रहीं अब उनके बदले प्रकाश जावडेकर आये तो क्या नीतियो में कोई परिवर्तन आयेगा या फिर संघ खामोश रहेगा या टकराव बढेगा। इन सवालों के मद्देनजर सरकार ने संध को कहा क्या महत्वपूर्ण यह भी है। लेकिन उससे पहले समझना ये भी होगा कि स्मृति ईरानी नहीं बल्कि संघ ही शिक्षा मंत्रालय को कैसे चला रहा था ये 18 जून को दिल्ली के यूनिवर्सिटी एरिया में पटेल चेस्ट हास्पिटल के एडिटोरियम में तब नजर आया जब एएमयू के अल्संपख्यक दर्जे की मान्यता खत्म करने को लेकर आरक्षण का सवाल उठाया गया। इस सभा में सवाल एएमयू का उठा लेकिन एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को चुनौती देते हुये अंबेडकर की दलित नीति पर चर्चा हुई और आरक्षण नीति के आसरे कैसे अल्पसंख्यक दर्जे को खारिज किया जा सकता है। इस पर बखूबी चर्चा हुई और इसमें संघ, बीजेपी और सरकार के बीच तालमेल भी मानव संसाधन मंत्रालय के जरीये ही बनाया गया। यानी संघ के लिये कितना महत्वपूर्ण है मानव संसाधन मंत्रालय यह इससे भी पता चलता है कि एएमयू की चर्चा में संघ और सरकार के बीच तालमेल बैठाने के लिये नियुक्त कृष्ण गोपाल के साथ बलवीर पुंज, सासंद कमलेश पासवान और प्रो राजकुमार फलवारिया पहुंचे जिन्होंने एएमयू से आरक्षण जोडने का सवाल उठाकर किताब लिख डाली और इसे ही आधार बनाकर स्मुति इरानी हलफनामा तैयार कर दाखिल किया। अब 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। लेकिन इस सभा में साक्षी महराज, विजय सोनकर, यूपी बीजेपी के अद्यक्ष केशव मोर्या, संगठन महामंत्री राम लाल, सांसद मूपेन्द्र यादव समेत यूपी बीजेपी के 50 विधायक तो करीब इतने ही सांसद जुटे। और मेघवाल जी का भाषण तो इतना जबरदस्त रहा कि उन्हें मोदी मंत्रीमंडल में जगह मिल गई। इन सबसे इतर संघ के भीतर तो सवाल यही है कि जब स्मृति ईरानी उनके कहे मुताबिक काम कर रही थीं तो फिर उन्हे शिक्षा मंत्री के पद से हटाया क्यों गया? और सबसे महत्वपूर्ण यही है कि प्रकाश जावडेकर को कैबिनेट और डा महेन्द्र नाथ पांडे को राज्यमंत्री बनाकर कहीं ना कहीं संघ से टकराव ना हो इसे ध्यान में रख कर फैसला किया गया। क्योंकि सरकार की भीतर माना यही गया कि पुणे के प्रकाश जावडेकर अगर मराठी मानुष होकर नागपुर को समझा सकते है तो बीएचयू के डा पांडेय सरकार से तालमेल बनाने के लिये नियुक्त संघ के कृष्ण गोपाल को साध सकते हैं। लेकिन खामोश हालातों में भी संघ हो या सरकार दोनों की नजरें इसी पर टिकी है कि स्मृति ईरानी अब कपड़ा मंत्री बनकर किसे निशाने पर लेंगी। क्योंकि बनारस समेत समूचे पूर्वी यूपी में बड़ा सवाल बुनकरों का है और माना जा रहा है कि स्मृति इरानी अब बुनकरों को साध कर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को अपनी राजनीतिक समझ और ताकत दोनों दिखानी चाहती हैं। क्योंकि स्मृति के करीबियों का मानना है कि यूपी की नेता स्मृति इरानी ना बन पाये इसलिये बीजेपी अध्यक्ष ने उनके पर कतरे हैं।


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