Breaking News

आपके मुक्के की आजादी वहीं खत्म हो जाती है, जहां से मेरी नाक शुरु होती है।

खरी-खरी            May 18, 2016


ved-pratap-vaidikडॉ.वेद प्रताप वैदिक। सर्वोच्च न्यायालय ने मान-हानि के मामले में कई नेताओं की याचिका रद्द कर दी। इन नेताओं को निचली अदालतों ने पेशी के लिए बुलाया है। इन नेताओं पर आरोप है कि इन्होंने कुछ लोगों पर बेसिर-पैर की तोहमतें लगाई हैं। इन्हें जेल भेजा जाए। डेढ़ सौ साल पुराने मानहानि कानून के मुताबिक इन नेताओं को दो साल की सजा हो सकती है। याचिकाओं में मांग की गई है कि मानहानि सिद्ध होने पर सिर्फ जुर्माना किया जाए। सजा न दी जाए। मानहानि को अपराध न माना जाए। ये याचिकाएं किन्होंने लगाई हैं? ऐसे लोगों ने, जो आए दिन एक-दूसरे की मान-हानि करते रहते हैं। राहुल गांधी ने, अरविंद केजरीवाल ने और सुब्रह्मण्यम स्वामी ने। ये नेतागण अपने नाम के पहले ‘माननीय’ लगवाने के लिए बेताब रहते हैं लेकिन ये एक-दूसरे के खिलाफ ऐसे-ऐसे आरोप लगाते हैं कि ये मान के लायक नहीं रह जाते। अदालत ने इन नेताओं को दो माह की छूट दी है और अपने मामले उंची अदालतों में ले जाने के लिए कहा है। जहां तक नेताओं का सवाल है, किसी की भी मानहानि कर देना उनका स्वभाव है, दांव है, पैतरा है, रणनीति है। इसे वे अपराध की श्रेणी से नहीं निकलवाएंगें तो कौन निकलवाएगा? सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से कुछ पत्रकार भी बौखलाए हुए हैं। ये वे हैं, जिन्होंने कभी किसी की मानहानि नहीं की होगी और न करना चाहते हैं लेकिन वे इस फैसले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध मानते हैं। पत्रकारों की चिंता सही है लेकिन उनसे मैं पूछता हूं कि यदि वे अपने पत्रकारिता-धर्म का पूर्णरुपेण पालन करें तो उन्हें डर कैसा, किसका? कोई बात बिना प्रमाण के न लिखें। नामूलं लिख्यते किंचित्। यह बात संस्कृत के कवि मल्लिनाथ ने सदियों पहले कही थी। यदि सप्रमाण बात के लिए भी आपको सजा दी जाएगी तो आप इतिहास-पुरुष बन जाएंगे। आप सुकरात बन जाएंगे। सजा देने के पहले हर अदालत आपको प्रमाण बताने का मौका देती है। यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आपका मूलभूत अधिकार है तो अपने सम्मान की रक्षा भी सबका मूलभूत अधिकार है। स्वतंत्रता के महान पक्षधर जॉन स्टुअर्ट मिल ने कहा है कि आपके मुक्के की आजादी वहीं खत्म हो जाती है, जहां से मेरी नाक शुरु होती है। किसी की इज्जत लूट लेना या लुटा देना उसकी हत्या से भी संगीन अपराध है। हत्या होने पर आदमी एक बार मरता है और मानहानि होने पर वह जब तक जीता है, तब तक बार-बार मरता है। इसीलिए मैं मानता हूं कि मानहानि की सजा दो साल ही नही, कम से कम दस साल तक की होनी चाहिए। यदि मानहानि पर कठोर सजा का प्रावधान हो जाए तो देश की राजनीति में काफी ज्यादा संयम, गरिमा और स्वच्छता का पदार्पण हो जाएगा। Website : www.vpvaidik.com


इस खबर को शेयर करें


Comments