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आप तो मुखिया हैं मामाजी फिर महिदपुर जाना क्यों जरूरी नहीं लगा?

खरी-खरी            Apr 18, 2016


ममता यादव। उज्जैन में सिंहस्थ में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का लगभग हर रोज आना—जाना है। इसी से चन्द कदम दूरी पर है महिदपुर गावं। इस गांव मातमी सन्नाटा छाया हुआ है। कारण शुक्रवार को उज्जैन आ रहे इस गांव के एक ही परिवार के 11 लोगों की मौत एक साथ हो गई। आम इंसान का मन क्रंदन कर उठता है जब बेगानों की भी एक साथ जब इतनी अर्थियां उठें एक ही घर से। क्या सिर्फ खुद को मामा—मामा कह देने से आपकी जिम्मेदारियां पूरी हो जाती हैं। या फिर मानवीय संवेदनाओं के लिये जगह और समय दोनों कम पड़ गये हैं मुख्यमंत्री के पास? आप तो मुखिया हैं प्रदेश के सीएम साहब जनता आपकी ओर उम्मीद से नहीं देखेगी तो किसकी तरफ? महिदपुर में शनिवार को एक साथ एक ही परिवार के 11 लोगों को अंतिम विदाई देने पूरा शहर उमड़ पड़ा। एक साथ 11 लोगों की अर्थियां जहां से भी गुजरी, वहां हर आंख में आंसू थे। पूरे गांव को एक उम्मीद थी, विश्वास था दुख की इस घड़ी में मुख्यमंत्री दुखी परिवार का दुख बांटने जरूर आयेंगे। लेकिन प्रशासनिक मशीनरी का एक भी व्यक्ति नहीं पहुंचा। ये अलग बात है कि प्रदेश के गृहमंत्री और स्वयं आप भी भोपाल में किसी भी परिवार में हुई सामान्य मौत पर संवेदनायें व्यकत करने जरूर जाते हैं। चाहे फिर फर्जी एसिड अटैक की कहानी रचने वाली महिला ही क्यों न हो। मख्यमंत्री सप​त्नीक उज्जेन आये महाकाल के दर्शन किय और जनता को अपने दर्शन भी दिये। लेकिन बमुश्किल 10 किमी की दूरी पर स्थित महिदपुर की तरफ जाना जरूरी नहीं समझा। घटना—दुर्घटना होने पर उदारता से मुआवजे का एलान करना भी सरकार का शगल है सो उज्जेन के व्यस्त कार्यक्रम में ही वहीं से एलान भी हो गया। दर्दनाक हादसे में खत्म होने वालों में आधा दर्जन महिलाएं भी थी। हर मन्च से किसी महिला को बहन कह दिया जाना भर काफी नहीं है और न ही इन बहनों के बच्चों को भानजा-भानजी कहकर ही रिश्ते बन या निभ पाएगे। हसते हुए शहरभर में घूमते रहना, उन लोगों को ग्यारह अर्थियों के दुख से ज्यादा साल रहा है, जिन्होंने इस हादसे में जाने वालों के दर्द को महसूस किया था। मुखिया तो नहीं गये सो नहीं गये उनके साथ प्रभारी मन्त्री, विधायक, सान्सदों को भी महिदपुर में झांकने की फुर्सत नहीं मिली।


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