प्रभु मिश्र।
प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण को लेकर बवाल मचा हुआ है। हाइकोर्ट में पराजय ङोल चुकी सरकार अब सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में हैं। दरअसल, इस पूरे झंझावत जिसमें कि शिवराज सरकार उलझी है यह 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने लागू किया था। उस समय दिग्विजय सिंह के सिपहसालार सचिव डा. अमर सिंह थे। अमर सिंह ने ही पहली बार प्रदेश में जाति गत कर्मचारी राजनीति के बीज बोये और अजाक्स नाम से संगठन बनाया और खुद उसके अध्यक्ष बन गये।
पदोन्नति में आरक्षण के निर्णय ने ही दिग्विजय सिंह को भूत पूर्व बना दिया। इस अमर भूत का साया दिग्विजय सिंह पर तो पड़ा ही पूरी कांग्रेस मरणासन्न हो गई। कारण यह था कि अधिकांश कर्मचारी नाराज हो गये। लेकिन, पदोन्नति में आरक्षण शुरू हो चुका था। जिसके कई दुष्परिणाम सामने आये। प्रभावित कर्मचारी हाइकोर्ट गये ओर हाइकोर्ट ने इसे गलत माना।
सरकार हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ अब सुप्रीम कोर्ट जाने का ऐलान कर चुकी है। लेकिन,सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में पहले जो निर्णय आये हैं, उससे लगता है कि यहां भी सरकार को हाईकोर्ट जैसी पराजय का सामना करना पड़ सकता है। अब यदि सरकार इस आरक्षण को चालू रखती है, तब भी उसे घाटा है और बंद करती है, तब भी घाटा है। कुल मिलाकर बीच का रास्ता नहीं है। उत्तरप्रदेश और बिहार जैसी सरकारें जहां ओबीसी के मुख्यमंत्री है, बड़ी ही सूझबूझ से इससे मुक्ति पा चुकी हैं। लेकिन, मध्यप्रदेश में यह आसान नजर नहीं आ रहा है। क्योंकि, खुलकर भले ही कोई कुछ नहीं कहे, पर इसमें अंदरूनी तौर पर भाजपा में भी दो फाड़ हैं।
अब इस परेशानी में सबसे बड़ा दायित्व मुख्यमंत्री के सबसे करीबी अफसर इकबाल सिंह बैस का है। वे किस समझदारी से इस बवंडर से सरकार को बाहर निकालते हैं। या यू कहें कि कौन सा मंत्र मारते हैं जिससे कि 12 साल पहले दिग्विजय सिंह सरकार में डा. अमर सिंह ने जो भूत छोड़ा था, उससे शिवराज सरकार को मुक्ति मिल सके। इसके साथ ही प्रदेश में जातिवादी कर्मचारी राजनीति खत्म करने के लिए एक मंत्र की और जरूरत है। जिससे कि अजाक्स, अपाक्स और सपाक्स की मान्यता रद्द हो सके।
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