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आशु की चकरघिन्नी:दुनिया के दादा का ओछापन,अमेरिका के नसीब में नहीं "राहत"

खरी-खरी            Apr 20, 2016


खान अशु। लोग हर मोड़ पर रुक कर सम्भलते क्यों हैं, इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यों हैं! बरसों पहले लिखा गया डा राहत इन्दोरी का यह शेर दुनिया के सबसे बड़े दादा कहे जाने वाले देश अमेरिका पर चरितार्थ होता नज़र आ रहा है। अपना सिर ऊचा रखने के लिए किसी को भी कलम रखने की ताकत (?) और नीयत रखने वाले इस मुल्क को दुनिया का सबसे बड़ा फट्टु देश कहा जाना गैर मुनासिब न होगा। जिनसे खतरा था, जिन्होंने नुकसान पहुंचाया, मगरूरियत भरे सिर को नीचे किया, उन्हें न रोकने की हिम्मत कर पाया, न ही जुर्रत, लेकिन अब निकले सान्प पर लाठियों पीटने में वह खुद की अक्लमंदी दिखाने की कोशिश करता रहता है। हमारे हिन्दुस्तान से उसे डर है या जलन, यह ठीक से समझ नहीं आता, लेकिन अपने मगरूर सिर की सलामती के लिए वह यहाँ की सेलिब्रिटी को जलिल करने की अहमक हरकत करने से बाज़ नहीं आता। बरसों पहले उसने रुपहले पर्दे के किन्ग कहे जाने वाले शाहरुख खान को अपनी सरहद में आने देने में ना-नुकुर की थी। बरसों बाद फिर इसे फिर दोहराया, डा राहत इन्दोरी की अमेरिका प्रवेश पर रोक लगाकर। राहत अपने फन, अपने हुनर, अपने शे'र-ओ-गजल, अपने जुदा अन्दाज़ की वजह से दुनिया में सराहे, सुने और पसन्द किए जाते हैं। सारी दुनिया का फेरा लगा चुके, मन्च जीत चुके राहत अमेरिका में बसे लोगों की पसन्द और चाहत हैं, इसीलिए उन्हें बतौर ए खास बुलावा भेजा गया था। इसके पहले भी वे कई इस देश के मन्चो से अपने फन का लोहा मनवा चुके हैं। महीने के बीस दिन मुशायरों में मसरूफ़ रहने वाले राहत का अमेरिका न जा पाना, राहत के लिए राहत का ही सबब होगा कि यह चन्द दिन वे अपने आराम के लम्हों में तब्दील कर सकते हैं। लेकिन नुकसान उन हजारों लाखों अमेरिकी चाहतमन्दो और कलाम पसंद करने वालों का हुआ है, जो राहत की राहतें पाने से महरूम रह गए। उन्हें दोबारा यह मौका कब मिलेगा, मिलेगा भी या नहीं कहा नहीं जा सकता। बहरहाल जो भी हो दुनिया के दादा देश ने अपना ओछापन दिखाकर सारी दुनिया के साहित्यकारों, कलमकारो और फनकारो से अपने नाम जलालत लिखवा ली है।


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