आशु की चकरिघिन्नी:यह समुद्री लुटेरे, समुद्र भी पी जाएंगे!
खरी-खरी
Apr 26, 2016
महाकाल थे, जिन्होंने जन के लिए विष पी लिया था। शिव की नगरी है, जहाँ भोलेनाथ की सेवा के नाम पर भ्रष्टाचारियों ने समुद्र ही पी जाने की ठान ली है। सिंहस्थ के नाम पर हजारों करोड़ की लूट की परत दर परत कलई खुलती जा रही है। एलईडी खरीदी, सफाई ठेका और अब पेयजल व शौचालय निर्माण में भ्रष्टाचार... सांसद चिन्तामणि मालवीय ने सिहस्थ में लगे अधिकारियों को समुद्री लुटेरे करार दिया है।
सच के बिल्कुल करीब भी है चिन्तामणि का यह कथन। धर्मालुओ की आस्था के नाम पर अपना तीर्थ करने वाले भ्रष्टाचार में डूबे अफसरों शिव के तीसरे नेत्र से डरो, अगर कोप का एक कतरा भी गिर गया तो जीवन खतरे से भर जाएगा। 2004 का सिहस्थ याद करो, इस दौरान भ्रष्टाचार लीला करने वाले आज परिदृश्य से नदारद हैं। फिर सन्त सेवा में लगी रही उस दौर की प्रदेश मुखिया हो, भजन के जरिये अपना सियासी सफर तय करने वाले उस समय के प्रभारी मन्त्री या फिर अधिकारी-कर्मचारी। इस बार खर्च का आकड़ा पिछले सिहस्थ के मुकाबले दस-बीस गुना ज्यादा है।
बदनीयती की मिकदार उससे सैकड़ों गुना ज्यादा, सो परिणाम भी तत्काल ही आने लगे हैं। व्यवस्थाओं के हजारों दावों पर साधु-सन्तो की नाराजगी भारी पड़ रही है। लाखों लोगों की आमद के बड़बोलेपन की पोल श्रद्धालुओं की गेर मौजूदगी खोल रही है। मन्त्री, अधिकारी, कर्मचारी कार्रवाई के घेरे में आने लगे हैं। समय बाकी है, महाकाल से दण्डवत कर अपने (कु)कर्मों पर इजहार ए शर्मिंदगी जता दे, दोनों कान पकड़ माफी मांग ले, महाकाल मन के भोले भी हैं, हो सकता है सजा में कुछ कमी कर दें।
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