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इसको पढ़ियेगा....सरकारी और राजनितिक चश्मे से हट कर

खरी-खरी            May 08, 2016


मल्हार मीडिया डेस्क। एचटी के सीनियर जर्नलिस्ट रितेश मिश्रा ने एक ग्रुप में अपनी अभिव्यक्ति पोस्ट की....सच मानियेगा सिंहस्थ को लेकर जो कुछ पत्रकार लिखना चाहता है वो मेनेजमेंट के रवैये में लिख नही पाता है....सोशलमीडिया पर पोस्ट (उज्जैन कुम्भ) उज्जैन कुम्भ में सरकार service provider नहीं organiser हो गयी। कुम्भ को एक तरह का state fair बना दिया । दोनों के बीच एक महीन रेखा होती है जो हर सरकार को समझना चाहिए। देखिए, जब सरकारें नहीं थीं तब भी कुम्भ था और सरकारें नहीं रहेंगी तब भी कुम्भ रहेगा। गलत आकलन किये कि करोड़ों लोग आएंगे। गलत आकलन से गलत व्यवस्थाएं की गयी। और लोग आये नहीं। मैं इलाहाबाद से हूँ और इससे दस गुना बड़ा मेला हर साल माघ के माह में देखता आया हूँ। मैंने इतनी हाय तौबा कभी नहीं देखी। आप समझिये कि माघ माह के तीन अलग अलग दिन ऐसे हैं जब लगभग 1 करोड़ से ज़्यादा लोग नदी में नहाते हैं, लेकिन मैंने नहीं देखा कि दिल्ली के बस स्टॉप पे प्रयाग कुम्भ का कभी प्रचार किया गया हो। धार्मिक संगम राज्य के प्रचार से नहीं होता। उसके लिए श्रद्धा काफी है। उसी श्रद्धा को देखने विदेशी भी आते हैं। एक महत्त्वपूर्ण बात और है कि गर्मी है । गर्मी में कभी धार्मिक आदमी तीर्थ पे जाने से बचता है। इलाहाबाद में ठंडी के दौरान कुम्भ होता है तो सब जाते हैं। आप ये देखिये कि उज्जैन कुम्भ तक पहुँचने के लिए सरकार ने कितनी ट्रेनें देश के अलग अलग भागों से चलवाई ? उत्तर प्रदेश के मेरे बहुत सारे जानने वाले सिर्फ ट्रेन या साधन की वजह से नहीं आये ? सरकार को समझना चाहिए कि सिर्फ प्रचार से धार्मिक संगम सफल नहीं होते समय , जगह, श्रद्धा और इंतेज़ाम सब मिलके इसको सफल बनाते हैं देश के एक सम्मानित हिंदी कवी ने मुझे फ़ोन करके पूछा " मेरा मन कर रहा है आने का , आ जाऊं क्या?" मैंने कहा आइये । तो उन्होंने कहा " हाँ लेकिन लग रहा है कोई सरकारी कार्यक्रम है। श्रद्धा में सरकार की बू आती है तो डर लगने लगता है " Ritesh mishra Senior correspondent HT


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