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कोहीनूर:हिन्दुस्तानियों को लूज़र से विनर बनने के मौक़े का नाम

खरी-खरी            Apr 20, 2016


ravish-kumar-ndtvरवीश कुमार। हीरा कहां हैं? कहां है हीरा? शायद कोहिनूर की टीस होगी तभी हमारे हिन्दी सिनेमा वाले हीरे को लेकर ऐसे संवाद रचते रहे हैं। डॉन की तिजोरी में रखा हीरा हो या बैंक की तिजोरी में। हीरा मतलब तरह तरह के अजूबे वाला सुरक्षा चक्र। हीरे की चोरी करते वक्त हमारे तमाम नायक कंप्यूटर साइंस में ग्रैजुएट लगते हैं। ऐसा लगता है कि अलगोरिथम की खोज इन्हीं लोगों ने की थी। वे एक एक नंबर पर धीरे धीरे उंगली रखते जाते हैं। लास्ट नंबर पर थोड़ी देर के लिए ऐसे रूकते हैं जैसे एटीएम का पिन नंबर याद कर रहे हों। आखिरी नंबर पर उंगली रखते ही दरवाज़ा खुल जाता है और हीरा हाथ में आ जाता है। जबसे सोने के आयात से प्रतिबंध हटा था हमारे फिल्म वाले इक्कीसवीं सदी में हीरे की चोरी पर शिफ्ट हो गए। लोगों को हीरे का जनरल नालेज भी बढ़े इसके लिए तमाम तिजोरियों में हीरा हमेशा शीशे के बक्से में रखा गया या फिर बक्से के ऊपर किसी स्टैंड में जड़ दिया गया ताकि हर दर्शक को दिख जाए कि वो रहा हीरा। कोहिनूर इन तमाम दृश्यों के ज़रिये हमारी किसी राष्ट्रीय गंथ्री यानी कांप्लेक्स का हिस्सा रहा है या नहीं, दावा नहीं कर सकता मगर हीरा सदा के लिए चोरी का ही आइटम रहा है। तभी तो तमाम फिल्मों में हमारे नायक हीरा लाने का कितना जोखिम उठाते रहे हैं। कभी भी वे फिल्म के शुरू में हीरा नहीं चुराते हैं। पहले पूरी फिल्म में प्रैक्टिस करते हैं फिर जाकर लास्ट सीन में चुराते हैं। हीरा और क्लामेक्स का जन्म जन्म का नाता है। धूम-2 में तो अपना ह्रतिक रोशन प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्ति बन गया। उनके साथ हीरे के सेफ में खड़ा हो गया। मुझे तो लगता है कि आजकल हीरा चोरी का जो सेट बनता है वो किसी बड़ी बिल्डिंग में लिफ्ट वाला एरिया होता है जहां कई दरवाज़े एक साथ खुलते और बंद होते रहते हैं। उसी को धोखे से फिल्म वाले दिखाते हैं कि देखो कितनी सुरक्षा है हीरे की। कितने दरवाज़े हैं। प्रिंस में तो विवेक ओबराय पता नहीं कौन सा कपड़ा पहनता है जो 440 वोल्ट के करंट को झेल जाता है। आंखें में सुष्मिता सेन परेश रावल, अर्जुन रामपाल और अक्षय कुमार को कितनी ट्रेनिंग देती है। परेश रावल तो बीजेपी के सांसद भी हैं। उन्हें आगे आना चाहिए और कहना चाहिए कि मैंने एक फिल्म में हीरे की चोरी की है। वो भी आंखें बंद कर के, सरकार आज्ञा दे तो वो कोहिनूर ला सकते हैं। हैप्पी न्यू ईयर में शाहरूख़ ख़ान दुनिया के लोगों को दो भागों में बांट देते हैं। कहते हैं दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं। एक विनर और एक लूज़र। ये अमीर और ग़रीब के सनातन बंटवारे के मार्केट में नया आइटम था जिसने पूरे विमर्श को ही बदल दिया। मगर हीरा चोरी करने सारे लोग लंदन नहीं जाते हैं। मेरे ख़्याल से पहले दुबई में पैक्टिस करना चाहते होंगे कि यहां से हम चुरा सकते हैं या नहीं। बाद में हम कोहिनूर सोचेंगे। किंग ख़ान कहते हैं कि ज़िंदगी हर लूज़र को एक मौक़ा देती है ताकि वो विनर बन सके। कसम से उनके इस संवाद ने मुझे पहले क़ायल किया फिर घायल कर दिया था। कोहिनूर आएगा। ज़िंदगी हमें एक मौका देगी उसे लाने का। इस उम्मीद के साथ मैं सिनेमा घर से अपने घर लौट आया। औरंगज़ेब के नाम से हम रोड तक बर्दाश्त नहीं कर सकते लेकिन बाबर के हाथ से स्पर्श हुए कोहिनूर के लिए इतने बेताब हो सकते हैं समझ नहीं आया। यही क्या कम है मूर्खों ने अभी राष्ट्रवाद के नाम पर उन लोगों को देशद्रोही नहीं घोषित किया है जिन्होंने आंखों का नूर कोहिनूर अंग्रेज़ों को तोहफ़े में दे दिया। कोहिनूर हम हिन्दुस्तानियों को लूज़र से विनर बनने के मौक़े का नाम है। इसे लाने के नाम पर गांव गांव गली गली इतिहास के कूड़ाकार अजब गजब के कुतर्क फैलाते रहते हैं। जैसे ही पता चला कि नवंबर 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंदन जाने वाले हैं हिन्दी चैनलों ने कोहिनूर हीरो को लेकर हंगामा खड़ा कर दिया। कोहिनूर को लेकर लोक स्वपन रचा गया कि यही है वो हीरा। ग़ौर से देखो, आंखें फाड़कर देखो। मोदी जी लेकर आने वाले हैं। चैनलों ने एक चालाकी की। जब भी लिखा, प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ ही लिखा कि मोदी क्विन से कोहिनूर की मांग कर सकते हैं? क्या मोदी क्विन के साथ लंच के दौरान कोहिनूर हीरे की मांग करगें ? यू ट्यूब पर मौजूद इन चैनलों की क्लिपिंग से पता चलता है कि अच्छा खासा प्रोपेगैंडा खड़ा किया गया। उनकी बातों से ऐसा लगा जैसे पीएम मोदी लंच के दौरान यह कहने वाले हों कि मैडम वो जो हीरा रखा है आपके बगल में, अगर मिल जाता तो…मैं नहीं, हमारे मुल्क के चैनल वाले मांग रहे हैं…अगर…नहीं तो कोई बात नहीं….। ‘ऐसा पता चला है’ के आधार पर ख़ूब ख़बरें चली। किससे पता चला है किसी ने नहीं बताया। ऐसा पता चला है जैसे जंगल जंगल बात चली है पता चला है। मुझे तो ऐसा ही साउंड करता है। उधर से उत्तर प्रदेश से आज़म ख़ान बयान देने लगे कि प्रधानमंत्री कोहिनूर तो लाये ही साथ में लंदन से टीपू सुल्तान की वो अंगूठी भी लेते आए जिस पर राम लिखा है। कुछ तो ख़्याल रखा होता आज़म साहब स्टेटस का भी। जौहरी की दुकान में नहीं गए थे हमारे पीएम कि हीरे के साथ एक अंगूठी भी मांग लेेते। हीरे की मांग हुई या नहीं किसी को पता नहीं। भारतीय राष्ट्रवाद के कुछ रिक्त स्थान है जिसे हमारी राजनीति इस उम्मीद में कुंठित करती रहती है कि कभी हमीं भरेंगे। जब तक नहीं भरेंगे हमारा राष्ट्रवाद पूरा नहीं होगा। संसद से लेकर सड़क पर कोहिनूर भी उस रिक्त स्थान की तरह पेश किया जाता रहा है जिसे लंदन से लाकर भरा जाना था। मगर हाय। सरकार ने ये क्या कर दिया। कोई लूट कर नहीं ले गया तो यही कह देते कि चोरी कर ले गया था। ये भी बोलने की कोई बात थी कि हमने तोहफे में दिया है। कोहिनूर को लेकर सारा एक्साइटमेंट ही खत्म कर दिया मोदी सरकार ने। मोदी जी जब लंदन यात्रा पर थे तब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने एनडीटीवी से कहा कि हम कोहिनूर नहीं देंगे। ऐसे तो हमारे म्यूज़ियम ही ख़ाली हो जाएंगे। सेम टू सेम बात भारत के सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में कही है कि ऐसा करेंगे तो हमारे म्यूज़ियम ख़ाली हो जाएंगे। जाओ ओ दुनिया वालों, हमने म्यूज़ियम की ख़ातिर मुल्क का सपना क़ुर्बान कर दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट को अभी भी लास्ट होप है इसलिए कोर्ट ने केस को ख़ारिज नहीं किया ताकि भविष्य में कोई दावा करे तो मुश्किल न पेश आए कि आपकी कोर्ट ने इसे रिजेक्ट किया हुआ है। यानी सुप्रीम कोर्ट ने उस सपने को ज़िंदा रखा है। वर्ना कोहिनूर चोरी नहीं हुआ है, यह सत्य किसी सदमे से कम नहीं है। कोहिनूर को लेकर तमाम झूठ और मिथक की चमक फीकी कर दी थी सरकार के वकील ने। जब तक ये अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है तब तक हमारे स्टार यार कलाकार फिल्मी सीन में हीरा चोरी का अभ्यास जारी रख सकते हैं। बल्कि वे चाहें तो थोड़े समय के लिए अब प्लाट बदल लें। वे हीरा चोरी न करें। तोहफें में दिया करें ताकि कोहिनूर हमारी राष्ट्रीय ग्रंथी यानी कांप्लेक्स से आज़ाद हो सके। लगे कि तोहफे में हम हीरा भी दे सकते हैं। वो हीरा जो हीरा है सदा के लिए। महारानी विक्टोरिया के लिए। हीरा की तमन्ना है कि पन्ना मुझे मिल जाए। चाहे मेरी जान जाए, चाहे मेरा दिल जाए। यही गाइये ताकि कुछ तो राहत पहुंचे।


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