जबान संभाल के...!

खरी-खरी, वीथिका            Sep 26, 2015


डॉ.लक्ष्मीनारायण पांडे मै ये सबसे कहना चाहता हूं,कबसे कहना चाहता हूं,खुद से भी कहना चाहता हूं, जबान संभाल के! जिसे देखिए जुबान लपलपा रही है,लड़खड़ा रही है,दांतों की परवाह किये जबान अनाप-शनाप,बक रही है,अक्सर ऐसा बक रही है जबान, जैसे अन्धे का बेटा अन्धा होता है की खालिस तर्ज पर,,महाभारत करने कराने निकली हो,बदचलन और बदजबान हो गयी है। पड़ोसी नहीं, समूहों ,समाजों ,धर्मों ,सम्प्रदायों ,राष्ट्रों राष्ट्राध्यक्षों सबकी बजह बेवजह बात बात पर,अश्लील भावमुद्राओं के साथ मां बहन की करके,ये बदजबान, ठहाके लगाती हैं कानों से दिलो दिमाग तक झनझनाकर उकसाती है उत्तेजना से भरती है। बिना सोचे, जाने, समझे प्रतिकार को ,प्रतिरोध को,प्रतिशोध को आमन्त्रित करती है मैं इसलिए फिर कह रहा हूं जबान संभाल के,प्रतिकार के लिए ,प्रतिशोध के लिए बेलगाम जबान संसद से सडक तक /गांव से शहर तक ,भीतर से बाहर तक , मस्जिद से मन्दिर तक, अपनी बदी से नेकी के दरवाजे बन्द कर रही है। गंवार से पढ़े—लिखे, नेता से अभिनेता , कलाकारों से कलमकारों तक आदमी से औरत तक ,बच्चे से बूढे तक ,जबान पर अंगारे लिए घूम रहे हैं , एक-एक शब्द पर सारा मुल्क चीखों से भर जाता है। एक-एक वाक्य पर देश आगजनी और बारूद से सहम उठता है, एक-एक कथन सडकों को रक्त रंजित करने पर्याप्त है, इस बदजबानी ने लोगों ,समूहों ,समाजो ,धर्मों के बीच, ,अविश्वास के स्थायी पुल बना डाले हैं। अब किसी की बात पर कोई भी विश्वास नहीं करता,हमेशा शक—सुबहा ,दुराब छिपाव में खो रहा है जीने का रस ठूंठ हो रहा है जीवन । तोलकर बोलो बुजुर्ग कहते थे इसलिए जुबान संभाल के,अरे ठरकियो शब्द का दुरुपयोग बन्द करो,शब्दों को अपशब्द होने से रोको,पतंजलि ने शताब्दियों पूर्व चेताया था शब्दों का दुरूपयोग मत करना,वही वोलना जो शुद्ध हो, सिद्ध हो, सार्थक को,जो मित हो ,मधुर हो हितकर हो,और तुमने जिसे जिया हो,अन्यथा अर्थ प्रयोग प्रयोजन और परिणाम से अविचारित शब्द, वाग् वज्र बनकर प्रयोक्ता को मार डालता है,महाभाष्य की ये चेतावनी हमने न देखी, न सुनी ,न मानी,हमारी बढ़ती बदजुबानी वाग्वज्र होने के लिए तैयार है। अब हम नहीं शब्द लड़ेंगे,मारेंगे, काटेंगे खून बहाएंगे इतिहास तो यही बताएगा। लोग लड़े, जातियाँ लडीं ,धर्म लड़ेे तलवारों तोपों बारूदों लाशों सबकी बात होगी,पर ये हमारी बदजबानी का परिणाम होगा। ये इतिहास को खबर नहीं होगी,आखिर शब्द ही तो इतिहास लिखते हैं, इतिहास बनते हैं इसीलिए प्लीज प्लीज... जबान संभाल के!(कसम से)


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