संजय कुमार सिंह।
पतंजलि का एक राष्ट्रवादी विज्ञापन आता है - पतंजलि अपनाइए देश को आर्थिक आजादी दिलाइए। इसमें दावा किया जाता है कि विदेशी कंपनियां अपना मुनाफा विदेश ले जाती हैं, देश में कोई लोकोपकारी काम नहीं करती हैं पतंजलि का उद्देश्य सिर्फ चैरिटी है। विदेशी कंपनियां हमारे देश के लिए बहुत ही खतरनाक हैं।
इस विज्ञापन का भाव विदेशी कंपनियों के खिलाफ तो है ही बिना नाम लिए देशी कंपनियों को भी छोटा या तुच्छ बताने की कोशिश की गई है जबकि पतंजलि अभी समाज सेवा में टाटा जैसी कंपनियों का पासंग भी नहीं हो सकता है। टाटा तो एक है, ऐसी कितनी ही कंपनियां हैं जो वर्षों से अपने स्तर पर समाज सेवा के काम कर रही हैं।
टोयोटा ने देश भर में (बनारस समेत) सार्वजनिक शौंचालय बनवाए हैं, मर्सिडीज सड़क सुरक्षा की दिशा में काम कर रही है। मेरा मकसद इन कंपनियों का प्रचार करना नहीं, पतंजलि के विज्ञापन का टुच्चापन सामने लाना है। निश्चित रूप से यह विज्ञापन अनुचित और अनैतिक तो है ही, सिर्फ मैं, मैं करने वाला भी है। निश्चित रूप से इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। एक ऐसी कंपनी जो पहले भी भ्रमित करने वाले और गलत विज्ञापन चला चुकी है, ऐसा विज्ञापन कैसे चला सकती है?

अगर पतंजलि को ऐसे विज्ञापन करने की इजाजत है तो मेक इन इंडिया और एफडीआई का क्या मतलब? अगर कोई विदेशी कंपनी भारतीय कंपनी या उत्पाद की खामी बताने वाला विज्ञापन चलाए तो क्या वह ठीक होगा। बाबा रामदेव सिर्फ अपनी या अपनी कंपनी की बात करें तो मैं विवाद में नहीं पड़ूंगा लेकिन भारत अगर उत्पादों और कारोबार के लिहाज से इतना ही योग्य और अग्रणी होता तो चीनी उत्पाद भारतीय बाजार में क्यों भर गए? इसमें कोई शक नहीं है कि कई चीजों को कानून बनाकर जबरन रोका गया है। भारतीय उद्योग प्रतिबंध के दम पर फलने-फूलने के इंतजार में हैं। इसके बावजूद ऐसे विज्ञापन क्या किसी विदेशी कंपनी को भारत में निवेश करने के लिए प्रेरित करेंगे।
2000 सीसी के ऊपर की डीजल गाड़ियों के पंजीकरण पर प्रतिबंध को टोयोटा ने पहले ही मौत का फरमान कहा है पर अतिथि देवो भव वाले देश में अतिथि को फंसाकर उसके पैसे कथित रूप से निवेश करवाकर इस तरह अपमानित करें यह कहां का राष्ट्रवाद है।
फेसबुक वॉल से।
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