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पाठक माई-बाप और भक्त आलोचक

खरी-खरी            Sep 10, 2016


sanjay-singhसंजय कुमार सिंह। बिहार में शराबबंदी और हरियाणा में गोमांस पर पाबंदी - दोनों लगभग एक जैसे मामले हैं। दोनों राज्यों में सरकार अपनी पसंद आम लोगों पर थोप रही है। उसके लिए कानून बनाकर उसे लागू कराने पर आमादा है। कुछेक अंतर हैं उनकी चर्चा आगे करूंगा पर हरियाणा में गोमांस का विरोध नहीं करने वाले बिहार में शराबबंदी का विरोध कर रहे हैं। इसी तरह बिहार में शराबबंदी का विरोध करने वाले हरियाणा में गोमांस पर प्रतिबंध का विरोध नहीं कर रहे हैं। हालांकि, यह उनका अपना मामला है। यहां मैं कुछ और चर्चा करने जा रहा हूं। मैंने हरियाणा में गोमांस पर प्रतिबंध के बारे में जो लिखा। इसका अंतिम वाक्य था, ".... फिलहाल मेरी तो मेरी हिम्मत नहीं है हरियाणा जाने और वहां मांस खाने की।" इसपर किसी ने पूछा, "तो क्या आपकी हिम्मत बिहार जा कर शराब पीने और वहां फैली गुंडेगर्दी पर लिखने की है?" सवाल पढ़कर चिढ़ हुई क्योंकि बुनियादी तौर पर यह सवाल गलत है। बिहार में शराब पर पाबंदी है इसलिए वहां शराब नहीं पी जा सकती। हरियाणा में मांस पर नहीं, गोमांस पर पाबंदी है। इसके बावजूद वहां मांस नहीं खाया जा सके और इसकी तुलना बिहार में शराब पीने से की जाये तो गलत है। जाहिर है, बिहार में शराब नहीं पी जा सकती क्योंकि उसपर रोक है। लेकिन हरियाणा में मांस खाने पर रोक नहीं है। पर स्थितियां ऐसी हैं कि मांस खाते हुए डर लगेगा। मैंने लिखा है कि जो स्थितियां हैं उसमें कल को मानव मल की जांच ना की जाने लगे कि उसमें गोमांस तो नहीं है। फिर भी पाठक मुद्दे को ना समझे तो चिढ़ होती है। आजकल के पाठकों में भक्त आलोचक ज्यादा और शुद्ध पाठक कम हैं। परेशानी भक्तों से होती है पाठक से नहीं। जनसत्ता के हमारे संपादक प्रभाष जोशी पाठक को माई-बाप कहते थे। लेखक के रूप में हम सब पाठकों का ख्याल रखते हैं। इतना कि एक मित्र ने गर्मी में लिखा कि कंबल ओढ़कर सो रहा था। तो अगले ही वाक्य में बताया कि एयरकंडीशन कमरे गर्मी में भी इतने ठंडे हो जाते हैं कि कंबल ओढ़ना पढ़ता है। इसलिए, बिहार में शराब पीने के सवाल को मैंने भक्त मार्का सवाल मानते हुए लिखा, "वहां तो जंगल राज है। वहां तो जाने की भी हिम्मत नहीं है। उससे हरियाणा में जो हो रहा है वो ठीक हो जाएगा?" यह जवाब भक्त पाठक के लिए था। पाठक के लिए नहीं। इसपर पाठक ने लिखा, "नहीं बिलकुल भी ठीक नहीं हो रहा है। पत्रकार की निगाह सभी जगह होनी चाहिए, इसलिए बोला था।" इसे पढ़कर मुझे झेंप हुई और लगा पाठक माई-बाप से दुर्व्यवहार हो गया। इसपर मैंने लिखा, "शराब बंदी और गोमांस पर रोक अलग-अलग चीजें हैं। मैं (बिहार में) शराब बंदी के पक्ष में हूं। अति हो रही है लेकिन जरूरी है। अगर सख्ती औऱ जबरदस्ती नहीं होगी तो वहां कोई कानून लागू नहीं है। इस कानून का भी वही हाल होगा।" मैंने आगे कहा, "मैंने यही लिखा है कि सरकार जो तय कर ले उसे पूरी तरह लागू करवाए। इस लिहाज से समानता है। पर हरियाणा में बिरयानी की जांच की तरह बिहार में हरेक तरल पदार्थ की जांच की जाने लगे तो हरियाणा जैसी स्थिति बनेगी। लेकिन, गोमांस पर प्रतिबंध धार्मिक और वोट के लिए है। बिहार में शराब पर प्रतिबंध से वोट का नुकसान है - पर वो सामाजिक जरूरत है। आप मुझे पत्रकार कह रहे हैं तो ये बता रहा हूं कि पत्रकार के पूर्वग्रह पार्टी के पक्ष में या खिलाफ में जब साफ दिख रहे हैं तो निजी पसंद और नापसंद भी होते हैं।"


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