पुरुस्कार वापसी:साहित्यिक और सामाजिक के बजाय राजनीतिक मामला बन गया

खरी-खरी, वीथिका            Oct 25, 2015


asgar-vajahatअसगर वजाहत साहित्यकारों को अपना प्रतिरोध अपने तरीके से दर्ज कराने का अधिकार है और जिन मुद्दों पर वे प्रतिरोध जता रहे हैं उन मुद्दों पर मैं उनके साथ हूं। लेकिन जिस तरह से यह दर्शाया जा रहा है कि जो लोग साहित्य अवार्ड लौटा रहे हैं वही सिर्फ खिलाफ हैं ऐसा नहीं है। यह भाव चिंता की बात है क्योंकि जिन लेखकों को काफ़ी लंबे समय से अवार्ड नहीं मिला है या जिन्होंने नहीं लौटाया है, वे सब इन मुद्दों पर लेखकों के साथ आए हैं। जैसे मान लीजिए कि सांप्रदायिकता, हिंसा, मानवाधिकारों या देश के बहुलतावाद को सुरक्षित रखने का मुद्दा है तो इन सब पर बहुत से लेखक एकजुट हैं भले ही उन्होंने पुरस्कार नहीं लौटाया हो। लेकिन जो स्थिति बना दी गई है वो यह है कि जिन्होंने पुरस्कार नहीं लौटाया है वो शायद उतने सजग या क्रांतिकारी नहीं है। प्रतिरोध जताने के बाद लेखक आगे क्या करते हैं यह बात महत्वपूर्ण है और यह स्पष्ट होना चाहिए। वे समाज को संवेदनशील बनाने में आगे सक्रिय योगदान देंगे या नहीं, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है। हो सकता है आगे चलकर इस पर कोई स्पष्टता हो लेकिन फ़िलहाल यह प्रतीकात्मक ही बन पाया है। इन मुद्दों पर साहित्य अकादमी से सक्रिय भूमिका की उम्मीद करने का कोई आधार नहीं क्योंकि ऐसा पहले कभी हुआ नहीं है। लोग जवाहरलाल नेहरू का उदाहरण देते हैं तो भूल जाते हैं कि वो पहले एक प्रधानमंत्री थे फिर साहित्य अकादमी के अध्यक्ष। साहित्य अकादमी अगर लेखकों से सम्मान वापस लेने की अपील करता है तो यह सही नहीं है। क्योंकि लोकतंत्र में लेखकों को अपना प्रतिरोध जताने का पूरा अधिकार है और साहित्य अकादमी को उसे मानना चाहिए। इससे पहले भी कई बार साहित्यकारों ने हिंसा को लेकर विरोध प्रकट किया है लेकिन उसका तरीक़ा अलग था, वह सम्मान वापस करने वाला नहीं था। जो लोग पुरस्कार लौटाने का विरोध कर रहे हैं वो लोग मानते ही नहीं है कि किसी को यह अधिकार हो सकता है कि कोई सम्मान लौटा कर विरोध करे। ऐसे लोग कहते हैं कि साहित्यकारों को लिखकर अपना विरोध प्रकट करना चाहिए। मैं पूछता हूं कि यह हम तय करेंगे कि आप करेंगे कि हमें कैसे विरोध करना है। यह पूरा प्रसंग राजनीतिक रंग ले चुका है, सामाजिक और सांस्कृतिक मामला थोड़ा कम बन पाया है। इसलिए ऐसा लगता है कि यह देश की दो राजनीतिक धाराओं के बीच का विवाद बनकर रह गया है। बीबीसी हिंदी से साभार


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