डॉ.वेद प्रताप वैदिक।
मुंबई उच्च न्यायालय ने कमाल कर दिया है। ऐसा फैसला अब तक शायद किसी भारतीय अदालत ने नहीं दिया है, जिसमें नेताओं के साथ-साथ नौकरशाह और फौजी अफसर भी फंस गए हों। मुंबई के कोलाबा में बनी आदर्श सोसायटी की 31 मंजिला इमारत को ‘तुरंत’ गिराने का आदेश जारी करना कोई मामूली बात नहीं है। खासकर तब जबकि इस कीमती इमारत में ऐसे लोगों के फ्लैट हैं, जो मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक और सांसद रहे हैं। इन नेताओं ने अपने रिश्तेदारों के नाम पर बेनामी फ्लेट भी खरीद रखे हैं। नेताओं को भ्रष्टाचार की कला-दीक्षा देने वाले उनके गुरुजन कई नौकरशाहों ने भी करोड़ों रु. के लगभग दो दर्जन फ्लेट दबोच रखे हैं।
इस लूट-खसोट में कई फौजी अफसर और राजनयिक भी शामिल हैं। फ्लैटों की इस लूट-खसोट के आरोप में 13 लोगों पर मुकदमे चले हैं। उनमें से कुछ गिरफ्तार भी किए गए। फ्लैट खाली पड़े हैं। उनकी बिजली-पानी बंद हैं।
अब आप पूछेंगे कि कहीं भी फ्लैट खरीदने में किसी का क्या अपराध हो सकता है? बाकायदा पैसे भरे और फ्लैट खरीदे। नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हुआ। इन लोगों ने अपराध नहीं, पाप किया है। हमारे शहीदों का अपमान किया है। अमानत में खयानत की है। ये फ्लैट बनाए गए थे- करगिल युद्ध के शहीदों की याद में। उनके परिवार वालों के लिए। इसीलिए कोलाबा जैसी जगह पर यह कीमती भूखंड सरकार ने दे दिया था लेकिन आदर्श सोसायटी के अधिकारियों ने नेताओं, नौकरशाहों और धंधेबाज प्रापर्टी डीलरों के साथ ऐसी सांठ-गांठ की कि ज्यादातर फ्लेटों पर गलत लोगों का कब्जा हो गया। इस अनैतिक और अवैधानिक कुकर्म के विरुद्ध सिमप्रीतसिंह नामक एक सज्जन ने मुकदमा ठोका, जिसके अंतर्गत ही यह फैसला आया है। इस मामले ने पांच-छह साल पहले जब तूल पकड़ा तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को इस्तीफा देना पड़ा और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस इमारत को पूरी तरह से गिरा देने का आदेश जारी किया। रमेश का यह फैसला तो इतना बहादुरी का था कि उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। कांग्रेसी सरकार के मंत्री होने के बावजूद उन्होंने अपनी ही पार्टी के भ्रष्टाचारियों को चित कर दिया।
अब सारे भ्रष्टाचारी सर्वोच्च न्यायालय में अपनी किस्मत आजमाएंगे। इस संबंध में मेरी अपनी राय यह है कि सर्वोच्च न्यायालय यदि इस इमारत को बनाए रखने का फैसला करे तो वह यह कर सकती है कि जो अवैध कब्जेवाले लोग हैं, उनकी मिल्कियत रद्द कर दे। उन्हें कोई मुआवजा न दिया जाए। उन्हें पांच-पांच साल की सजा भी दी जाए और कारगिल के शहीदों के परिवारों को बहुत कम कीमत पर वे फ्लैट बांट दिए जाएं। लेकिन जैसी कि जयराम रमेश की राय थी कि यह इमारत पर्यावरण और सुरक्षा, दोनों दृष्टियों से घोर आपत्तिजनक है तो इसको गिराना ही ठीक होगा। ऐसे में शहीदों के परिवारजनों के लिए मुआवजे का पूरा इंतजाम होना चाहिए। यदि यह इमारत गिरा दी गई तो भावी भ्रष्टाचारियों की हड्डियों में कंपकंपी दौड़ जाएगी।
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