भक्तिभाव खतरे के निशान के ऊपर !
खरी-खरी
Oct 05, 2016
राकेश अचल।
देश की आजादी के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है की राजनीतिक कार्यकर्ताओं का भक्तिभाव खतरे के निशान को पार करता दिखाई दे रहा है। एक ओर पाकिस्तान के खिलाफ "सर्जिकल स्ट्राइक" के सियासी फायदे को जायज ठहराया जा रहा है और दूसरी और देश हित की चिंता किये बिना सरकार से "सर्जिकल स्ट्राइक" के सबूत मांगे जा रहे हैं। सत्तापक्ष और विपक्ष के भक्तों का ये भक्तिभाव देश में लोकतंत्र के साथ सीमाओं के लिए भी खतरनाक है।
बीते सात दशकों में इस देश में सियासत में व्यक्तिपूजा के अनेक उदाहरण सामने आये ,लेकिन दो साल पहले बनी केंद्र की नयी सरकार में शामिल छोटी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने इसके दुष्परिणामों की चिंता किये बिना व्यक्तिपूजा का ही रास्ता अख्तियार किया। व्यक्तिपूजा में कार्यकर्ता भक्त के रूप में तब्दील हो जाता है,फिर चाहे वो कांग्रेस का कार्यकर्ता हो,सपा का हो,बसपा का हो या भाजपा का हो। कार्यकर्ता जब भक्त बन जाता है तब उसकी अंतर्दृष्टि नष्ट हो जाती है,उसे हरा ही हरा नजर आता है। दूसरे रंग वो पहचान ही नहीं पाता।
बिडम्बना ये है की सियासत के मौजूद भक्तिकाल में कोई भी राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ता को भक्त के रूप में ढलने से नहीं रोक पाया है। नतीजा ये है कि अब हालात सुर-असुर संग्राम जैसे हो गए हैं। जबकि सब जानते हैं कि न कोई सुर है और न कोई असुर। सब आम आदमी हैं और हाड-मांस के बने हैं। भक्तों की भाषा इतनी कर्कश हो गयी है कि अब पढ़ने और सुनने में भी तकलीफ होती है। कार्यकर्ताओं के इस भक्तिभाव ने सियासत को हास्यास्पद बना दिया है।दुर्भाग्य ये है कि भारत के भाग्यविधाता ये सब चुपचाप देख रहे हैं।
पाकिस्तान की ओर से उडी में सेना के शिविर पर कायराना हमले के बाद भारत कि ओर से की गयी कार्रवाई के फौरन बाद भारत में संसद का विशेष अधिवेशन बुलाये जाने कि जरूरत थी, ताकि देश कि हकीकत से रूबरू कराया जा सके, लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया। मजे की बात ये है कि चारों तरफ से कटघरे में खड़े पाकिस्तान ने ये कर दिखाया, संसद बुला कर भारत कि निंदा ही नहीं की उसे भभकियां भी दीं।
प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पाकिस्तान की संसद में जो कुछ कहा वैसा ही अगर हमारे प्रधानमंत्री जी ने संसद का विशेष अधिवेशन बुलाकर कह दिया होता तो मुमकिन है कि देश सियासत के कड़वे भक्तिकाल से बच जाता। शत्रु देश का प्रधानमंत्री अपने अवाम से कह रहा है कि -सुरक्षा के लिए हम सब एक हैं और तैयार हैं। हम जंग के खिलाफ हैं और कश्मीर समेत सभी मसले अमन से हल करना चाहते हैं। जबकि हम संसद का सामना करने से कतरा रहे हैं और अब जब स्थित बेकाबू हो रही है तब हमारे प्रधान अपने भक्तों को उन्माद से बचने की ताकीद कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री के फैसलों की आलोचना हालाँकि अब देश में अघोषित रूप से अपराध बन गया है किन्तु हकीकत ये है कि भारत का हर कदम सही होते हुए भी देर से उठाया जा रहा है। "सर्जिकल स्ट्राइक" का प्रचार करने कि गलती अगर सरकार ने कि तो विपक्ष ने "स्ट्राइक" के सबूत मांगने की गंभीर गलती कर डाली। संसद की अवहेलना करने कि गलती प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कि तो विपक्ष भी चुपचाप रहकर अपनी बात सरकार तक नहीं पहुंचा सका। अब सबकी फजीहत हो रही है।
आज जरूरत इस बात कि है कि शत्रु देश के खिलाफ किसी भी कार्रावाई को लेकर केवल भक्तों को भरोसे में न लेकर पूरे देश को,देश कि संसद को भरोसे में लिए जाये और गैर-जरूरी बयानबाजी तत्काल बंद की जाये। सियासत में गलतियों कि सजा केवल गाल बजाकर ही नहीं दी जाती,और भी दूसरे रास्ते हैं ,लेकिन कोई इन विकल्पों का इस्तेमाल करे तब ना ?
मौजूदा सियासी भक्तिभाव से उपजे वातावरण से हमारी सेना का मनोबल भी टूटता है,उसकी निष्ठा पर भी आंच आती है ,लेकिन किसी को इसकी फ़िक्र नहीं है। जो इसे रोकना चाहते हैं वे सब भक्तों के निशाने पर हैं। अभी भी समय है कि देश कि सियासत को भक्तिभाव से बचाकर उस रास्ते पर लाया जाये जो आत्मसम्मान का रास्ता है ,जिससे हम अपनी मंजिल तक पहुँच सकते हैं। मुझे लगता है कि सब अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझेंगे और देश के स्वाभिमान के लिए पूरी ताकत से खड़े दिखाई देंगे।
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