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भक्तों का भक्ति वाला इलाज

खरी-खरी            May 04, 2016


sanjay-singhसंजय कुमार सिंह। न्यायामूर्ति मार्कंडेय काटजू ने एक पोस्ट में लिखा कि नीतिश कुमार को अगला प्रधानमंत्री और अरविन्द केजरीवाल को उप-प्रधानमंत्री बनना चाहिए और बस भक्त शुरू हो गए। काटजू साब ने लिखा है कि लोकतंत्र में किसी को भी निन्दा करने का हक है। पर भाषा संयत होनी चाहिए जिनकी भाषा संयत नहीं होती उन्हें मैंने ब्लॉक कर दिया। अब काटजू साब गाली देने वालों को ब्लॉक करके छोड़ दें तो ये ऑनलाइन सेना कैसे सुधरेगी? मेरा भी मानना है कि गाली देने वालों और बहुत तुर्रम खां बनने वालों को औकात बताना मुश्किल नहीं है। काटजू साब के लिए तो और नहीं। पर ऐसे लोग फंसते हैं तो जान बख्शने के लिए जो सब करने को तैयार हो जाते हैं उसे भी झेलना भारी मुसीबत है। इसलिए मेरा भी मानना है कि ऐसे लोगों को बख्श ही देना चाहिए। क्योंकि कोई भी भला आदमी ऐसे लोगों के फंसने पर उनका समर्पण तो निश्चित रूप से नहीं झेल पाएगा। गालियां तो फिर भी झेल ले। एक मित्र ने पूछा, आपका अनुभव क्या है, तुरंत माफीनामा लिख देते हैं। इस पर मेरा यही कहना है कि माफीनामा तो बहुत मामूली चीज है। किसी भी कीमत पर छोड़ देने की भीख ऐसे मांगते हैं कि न छोड़ना भी मुसीबत बन जाए। फिलहाल मुद्दा वह नहीं है। इस बात पर मुझे एक कहानी याद आ गई। कहानी पुरानी है। मित्र संजय सिन्हा ने फेसबुक पर ही लिखा भी है पर प्रासंगिक है। कहानी यूं है कि एक मास्टर साब ने स्कूल में कुछ शैतान बच्चों को पीट दिया। बच्चे नाराज हो गए। शाम को मास्टर साब साइकिल से उनके मोहल्ले में गए तो बच्चों ने दूर से उनकी साइकिल में लकड़ी फंसाकर उन्हें गिरा दिया। बच्चे इसपर खूब खुश हुए और ताली बजाने लगे। मास्टर साब को बुरा तो लगा पर उन्होंने बच्चों से इसका कारण पूछा और प्यार से बात करते हुए कहा कि अच्छा किया। मैंने तुम्हे स्कूल में मारा वहां मैं मास्टर था। तुम लोग यहां खेल रहे हो, मैं रास्ते में आ गया। मैंने गलती की तुम लोगों ने मुझे गिरा दिया अच्छा किया। बात आई-गई हो गई। मास्टर साब गुजरते रहे बच्चे गिराते रहे और चलता रहा। बच्चों की हिम्मत बढ़ती गई। एक दिन एक खास पार्टी के नेता जो मौके पर ही फैसला करने में यकीन करते थे, मास्टर साब की तरह गुजर रहे थे। बच्चों ने उसी अनुभव से नेता जी को गिरा दिया। नेताजी ने आव देखा ना ताव, सभी बच्चों को पकड़कर ठीक से सूत दिया। बच्चों के अभिभावकों को पता चला – नेताजी तो उन्हीं के देवता थे। कुछ बोल नहीं सकते थे। सो बच्चों को ही डांट पड़ी। बच्चों ने बताया कि हम लोग तो मास्टर साब को कई बार गिरा चुके हैं। वो तो बोलते हैं कि ठीक किया। तुम्हारे खेलने में जो बाधा बने उसे गिरा दो। ये भगवान अंकल ने क्यों मारा? बच्चों के अभिभावक तो सेना के सदस्य थे, समझ गए। और मामला थाना पुलिस गए बिना सुलझ गया। वरना हत्या हो जाती और उन्हें जेल में बैठाकर टैक्स के पैसे से खिलाना पड़ता। आम लोगों को भी भक्तों का ऐसा ही उपाय करना चाहिए। उन्हें सबक सिखाने का काम उन्हीं के जैसा कोई करेगा। निश्चित रूप से सबक सिखाएगा अच्छा सिखाएगा औऱ वही समझेंगे। वरना जेल से आकर कहेंगे कि ससुराल गया था। या जब तक जेल नहीं जाएंगे सीना फुलाकर घूमते रहेंगे। फेसबुक वॉल से।


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