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मजाक की हद कहाँ है? लता सचिन की ही तरह सभी की इज्जत है!

खरी-खरी            Jun 05, 2016


hemant-palहेमंत पाल। सप्ताहभर पहले तक तन्मय भट्ट को कितने लोग जानते थे? शायद उतने नहीं, जितना आज जानते हैं। आज वे ख़बरों की सुर्ख़ियों में हैं। लता मंगेशकर और सचिन तेंदुलकर पर उन्होंने फेसबुक वॉल पर एक ऐसा वीडियो 'सचिन वर्सेस लता-सिविल वॉर' पोस्ट किया जिससे बवाल हो गया! देखा जाए तो इस बहाने उनका मकसद पूरा हो गया। तन्मय के इस कॉमिक वीडियो पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। लोगों के अलावा बॉलीवुड से जुड़े लोगों ने भी इस वीडियो पर असहमति जताई। स्टैंडअप कॉमेडियन के तौर पर तन्मय की कॉमिक टाइमिंग की प्रशंसा की जाती है। हंसाने की उनकी कोशिश ने नाराज कर दिया। उन्होंने दो ऐसे लोगों का मजाक बना दिया, जो प्रशंसकों के दिल में बसते हैं। कॉमेडियन का लक्ष्य नकल उतारना, व्यंग्यात्मक टिप्पणियां करना, हंसाने के मकसद से काल्पनिक दृश्य प्रस्तुत करना होता है। जैसे कार्टून में व्यक्ति-विशेष पर कटाक्ष होता है, वही काम कॉमेडियन करता है। लेकिन, तन्मय का ‘सचिन वर्सेस लता सिविल वार’ वीडियो हास्य जगाने में नाकाम रहा। वे परिहास और उपहास में फर्क करने का बोध विकसित नहीं कर सके। रातों रात चर्चित होने की कोशिश में उन्होंने जान-बूझकर इस फर्क को मिटा दिया। दरअसल, हास्य का आधार प्रीति पर होता है न कि द्वेष पर। यदि किसी की प्रकृति, प्रवृत्ति, स्वभाव, आचार आदि की विकृति पर कटाक्ष भी करना हो तो वह कटु उक्ति के रूप में नहीं, प्रिय उक्ति के रूप में होना चाहिए। उसका उद्देश्य कदापि नीचा दिखाने की भावना नहीं होना चाहिए। प्रिय उक्ति भी उपदेश की भाषा में नहीं, रंजनता की शब्दावली में ही हो। तन्मय की ही तरह पिछले दिनों एक टीवी कॉमेडी शो में ‘पलक’ नाम की महिला का किरदार निभाने वाले कॉमेडियन कीकू शारदा को भी महंगा पड़ गया था। बाबा राम रहीम का मजाक उड़ाने पर हरियाणा पुलिस उन्हें मुंबई से गिरफ्तार करके हरियाणा ले गई। जहाँ कैथल की एक कोर्ट ने उनके खिलाफ कार्रवाई की। गायिका के तौर पर लता मंगेशकर और बतौर क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर की प्रसिद्धि से सब वाकिफ हैं। दोनों देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से विभूषित हैं। तन्मय का ये वीडियो उनकी प्रतिष्ठा के साथ उपहास जैसा है। लेकिन, किसी उपहास पर पुलिस कार्रवाई की मांग का औचित्य समझ से परे है? ये वीडियो हास्य के नाम पर सामाजिक निंदा और अपमान का विषय तो है, पर कानूनी कार्रवाई का तो शायद नहीं। पुलिस ने सोशल मीडिया से इस वीडियो को हटाने को भी कहा, पर कोई कार्रवाई नहीं की। इस घटना ने इस बहस को फिर छेड़ दिया कि मजाक की हद कहाँ है? हास्य कब अपमानजनक हो जाता है? अभिव्यक्ति की आजादी का दायरा कहाँ तक स्वीकार्य है? ये सारे सवाल इंटरनेट पर विवादित हुए इस वीडियो से फिर उठे हैं। तन्मय भट्ट के प्रति आक्रोश जताने वालों में बॉलीवुड कलाकार और नेता तक शामिल हैं। शिवसेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और मुंबई भाजपा के कुछ नेताओं ने तन्मय को गिरफ्तार करने तक की मांग की है। मनसे ने तो पिटाई की धमकी भी दे डाली। सवाल उठता है कि क्या शिवसेना और मनसे की पहचान कभी शालीन और मर्यादा का ध्यान रखने वाली राजनीतिक पार्टी के रूप में रही है? वास्तव में इनकी प्रतिक्रिया मौके को भुनाने की चतुराई भी हो सकती है। इस प्रसंग के कानूनी दांव-पेंच चाहे जो हों लेकिन, इस वीडियो के बहाने सोशल मीडिया पर होने वाली पोस्ट पर चर्चा जरूर होना चाहिए। क्योंकि, सोशल मीडिया पर नेताओं और राजनीतिक पार्टियों की छवि बिगाड़ने का खेल चलता रहता है। भले ही ये चंद खुराफाती लोगों का काम होता है, पर लगता संगठित अभियान जैसा है। किसी पर कीचड़ उछालने की भी एक मर्यादा होना जरुरी है। अगर सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों में जिम्मेदारी और मर्यादा का अहसास बढ़े तो इस विवाद के गर्भ से एक सार्थक नतीजा निकल सकता है। क्योंकि, सोशल मीडिया का मंच किसी की निंदा, अपमान और उपहास के लिए नहीं होता। लता मंगेशकर और सचिन तेंडुलकर की ही तरह सभी की इज्जत है।


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