मध्य प्रदेश के सबसे विवादित राज्यपाल की कल है विदाई! अब आगे क्या?
खरी-खरी
Sep 06, 2016
ममता यादव।
मध्यप्रदेश के राजयपाल रामनरेश यादव ऐसे अकेले और पहले राज्यपाल रहे हैं जो सबसे ज्यादा विवादित और चर्चित रहे हैं। जिनका व्यापमं जैसे घोटाले में नाम है। जिनका खुद उनकी ही पार्टी ने सबसे ज्यादा विरोध किया और इस्तीफा मांगा। अभी तक पद पर रहते हुये वे तमाम जांचों से बचे रहे हैं मगर अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि7सितंबर के बाद क्या होगा राज्यपाल रामनरेश का?
मप्र के राज्यपाल राम नरेश यादव का कार्यकाल 7 सितंबर को भले ही पूरा हो रहा है, पर इससे पहले ही सबकी नजर सरकार के रूख पर टिक गई है। वह इसलिए भी, कि राज्य के सबसे चर्चित घोटाले में शामिल व्यापमं को लेकर वह न केवल आरोपी ठहराए गए हैं। बल्कि उनके खिलाफ हाईकोर्ट के निर्देश पर अपराध भी पंजीबद्ध किया गया है। ऐसे हालात में जांच एजेंसियों का रूख भी काबिले गौर रहेगा, क्योंकि तब राम नरेश यादव महामहिम नहीं रहेंगे।
गौरतलब है कि व्यापमं घोटाले की जांच कर रहे मध्य प्रदेश पुलिस के स्पेशल टास्क फोर्स ने पिछले साल राज्यपाल और उनके बेटे द्वारा इस मामले में रिश्वत लेने की एफआईआर दर्ज की थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल जब तक पद पर हैं तब तक उनकी जांच नहीं की जा सकती। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा था कि आईजी स्तर के अधिकारी की उपस्थिति में पुलिस राज्यपाल का बयान दर्ज कर सकती है। क्योंकि राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर के लिए वीरपाल सिंह ने अपील की थी। वीरपाल को बाद में अरेस्ट कर लिया गया था। वीरपाल सिंह ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल के बेटे शैलेश यादव के जरिए राज्यपाल ऑफिस को 3 लाख रुपये दिए गए थे। राज्यपाल ऑफिस के जरिए 10 परीक्षार्थियों को शिक्षक भर्ती की परीक्षा में नकल करा पास कराने की बात सामने आई थी। यह बात अलग है, कि राज्यपाल के बेटे शैलेश यादव से एसटीएफ पूछताछ नहीं कर पाया था क्योंकि लखनऊ में वह मृत मिले थे।
बीमारी की हालात में वह अस्पताल में भर्ती रहकर इलाज करा सकते हैं लेकिन, पुलिस विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम छापने की शर्त पर बताया, कि यदि जांच एजेंसी चाहे तो, पूछताछ के लिए इलाज के दौरान ही अभिरक्षा में ले सकती है या गिरफ्तारी कर सकती है। यह पूरी तरह सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर होगा। क्योंकि मामले में नकारात्मक रूख अपनाने से गिरफ्तारी टाली भी जा सकती है।
राम नरेश यादव बतौर राज्यपाल प्रदेश ही नहीं देश में भी चर्चित रहे हैं। किसी घोटाले में रिश्वत लेने के आरोप बाद पद पर रहते हुए एफआईआर दर्ज होने की बात को यदि छोड़ भी दिया जाए, तो विपक्षी दल कांग्रेस के निशाने पर भी रहे, जबकि वह नियुक्ति कांग्रेस कार्यकाल के दौरान ही हुई थी। हालांकि भाजपा से अपने संबंधों के बूते वह कार्यकाल पूरा करने में सफल रहे। बावजूद इसके बतौर राज्यपाल सरकार व जनता के बीच स्वयं की छवि बना पाने में असफल माने गए हैं।
सेवानिवृत्ति के बाद राज्यपाल राम नरेश यादव की डोर केंद्रीय सरकार के हाथ नजर आ रही है। क्योंकि भाजपा नीति नरेंद्र मोदी सरकार ने मामले की संदिग्धता तथा मांग को देखते हुए जांच का जिम्मा सीबीआई को सौप दिया है। सीबीआई की कमान भारतीय गृहमंत्रालय के हाथ है और इसके मुखिया राजनाथ सिंह हैं। यह बात अलग है, कि एजेंसी बतौर संस्था अभी भी प्रकरण की जांच कर रही है। लेकिन इसके बाद भी घोटाले में शामिल दोषियों के खुलासे नहीं किए गए हैं।
राज्यपाल राम नरेश यादव बीमार हैं और राजधानी के एक निजी अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। बताया जाता है, कि वह बीते कई दिनों से चिकित्सकों की देखरेख में है। संभावना जताई जाती है, कि वह सेवानिवृत्ति पर राजकीय विदाई के बाद इलाज के दृष्टिगत गृह क्षेत्र लखनऊ या दिल्ली रवाना होंगे।
राज्यपाल रामनेरश यादव के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाने वाली कांग्रेस बीमारी को देखते हुए अभी कुछ कहने या करने की स्थिति पर नजर नहीं आ रही है। बावजूद इसके कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा कहते हैं, कि भारतीय लोकतंत्र में कानून प्रत्येक नागरिक के लिए समान है, चाहे व छोटा हो या बड़ा। कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों को वह आचरण करना चाहिए, जिससे आम आदमी के मन पर कानून का भय बना रहे
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