कुमार सौवीर
एक साल पहले मोहनलालगंज में बरामद हुई रक्तरंजित नंगी महिला की लाश की जांच की प्रक्रिया मोड़ने के अब सीधे उप्र शासन के आला अफसर और प्रमुख सचिव ( गृह) पर छींटें पड़ रहे हैं। धीरे-धीरे खुलासा हो रहा है कि इस नृशंस हत्याकाण्ड की जांच की गति को ट्विस्ट करने के लिए प्रमख सचिव ने पूरा तानाबाना बुना था। प्रमुख सचिव ने कहने को तो इस मामले को एक वरिष्ठ आईपीएस और पुलिस की महानिदेशक स्तर की एक महिला को मौके पर पहुंचने का आदेश दिया, लेकिन एक ऐसा भी निर्देश दिया कि सुतापा सान्याल वहां जाकर करेंगी क्या।
जाहिर है कि यह कवायद केवल एक नाटक भर था। क्योंकि सुतापा सान्याल ने न तो जांच की और न ही वहां मौजूद लोगों का बयान लिया, जिससे पता चल सके कि निरीक्षण किसी ठोस दिशा में बढ़ रहा है। शाम को प्रमुख सचिव (गृह) ने सुतापा सान्याल को पत्रकारों को प्रेस ब्रीफिंग का आदेश दिया और जो बोलने का संदर्भ दिया गया, वह जिला पुलिस की जांच के से मिले तथ्य मात्र ही थे। यानी सुतापा सान्याल वहां के एक नमूना, छतरी या बिलकुल घिग्घू की तरह ही पेश की गयीं।
मन में भरा आत्मक्लेश और अपराध बोध जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो आखिरकार पुलिस महानिदेशक ( मानवाधिकार एवं महिला सुरक्षा ) ने कुबूल कर ही लिया कि मोहनलालगंज में नंगी पायी गयी मेरी बिटिया की लाश के मामले में शासन के आला अफसरों ने उन्हें जानबूझकर फंसा दिया था। शासन में बैठे इस आला अफसर ने जान-बूझ कर इस मामले पर सुतापा सान्याल को मात्र घटना स्थल के निरीक्षण के लिए आदेशित किया था।
यह तब हुआ जब इस काण्ड की जांच लखनऊ पुलिस कर रही थी जबकि सुतापा सान्याल उस वक्त अपर पुलिस महानिदेशक ( आर्थिक अपराध संगठन ) के पद पर कार्यरत थीं। यह महकमा बेहद संवेदनशील होता है और इसके मुखिया के तौर पर उसके पास इतना कार्याधिक्य होता है कि उससे अलग सोच तक पाना उसके लिए मुमकिन तक नहीं होता है। लेकिन इसके बावजूद सुतापा सान्याल को इस मामले में जबरिया लगा दिया गया।
वह भी पूरी जांच के लिए नहीं, बल्कि चंद घंटों के लिए। वह भी केवल अभिनय करने के लिए ही, ताकि जनता को दिख जाए कि सरकार और प्रशासन बहुत गम्भीरता से इस मामले को डील कर रही है और जल्दी ही कुछ न कुछ ठोस ही निकल कर सामने आयेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि इस जांच-नामक नौटंकी के चलते इस हौलनाक हादसे के असली अपराधियों को तो साफ-साफ बचा लिया गया, जबकि एक चौकीदार को फंसा दिया गया, जिसका इस मामले में कोई लेना-देना तक नहीं था। सिवाय इसके कि वह केवल इस मामले में उक्त युवती को उन दरिंदों को घटनास्थल के आसपास छोड़कर लौट गया था।
खैर, असल बात अब सुन लीजिए। सुतापा सान्याल ने अपने इस खुलासे में साफ ऐलान कर दिया है कि उस जघन्य हादसे में उन्हें केवल अभिनय करने के लिए जिस उच्च-अधिकारी ने बाध्य किया था, उसका नाम है... गृह सचिव का प्रमुख सचिव देवाशीष पाण्डा। यानी उप्र सरकार में गृह विभाग का सर्वोच्च अधिकारी। सुतापा सान्याल की इस स्वीकारोक्ति के बाद अब देवाशीष पाण्डा सीधे-सीधे इस मामले को लेकर कठघरे में खड़े दिख रहे हैं।
कुछ भी हो, अब तो देवाशीष पाण्डा को ही यह बताना है कि आखिरकार उन्होंने इस मामले को नाटकीय मोड़ देने के लिए सुतापा सान्याल को क्यों घटनास्थल पर भेजा, जहां उन्हें न कोई जांच करनी थी और न ही कोई कार्रवाई। यह भी बताना होगा कि जब सुतापा सान्याल ने कोई जांच ही नहीं की तो उन्हें किस आधार पर प्रेस कांफ्रेंस को सम्बोधित करने के लिए मजबूर किया। यह भी कि जब सुतापा सान्याल को इस मामले में कोई जानकारी ही नहीं थी तो तो फिर किस अधिकारी का प्रेस-नोट इमला के तौर पर मीडिया के सामने बोलने पर बाध्य किया आपने सुतापा सान्याल से।
जब मुख्यमंत्री भवन स्थित मीडिया सेंटर में गृह सचिव और अपर पुलिस महानिदेशक(कानून-व्यवस्था) द्वारा नियमित सायंकाल प्रेस ब्रीफिंग की जाती है, तो फिर उस जगह किस आधार पर सुतापा सान्याल को मीडिया को सम्बोधित करने के लिए आपने क्यों आदेशित किया, जबकि सुतापा सान्याल का यह काम था ही नहीं।
अब दो-टूक बात। सीधा-सीधा जवाब दे दीजिए प्रमुख सचिव गृह विभाग देवाशीष पाण्डा जी। आपने ऐसा यह सारा नाटकीय वातावरण आखिरकार क्यों तैयार किया। इसमें आपका क्या लाभ था। और अगर आपका कोई निजी स्वार्थ नहीं था इस पूरे अभिनय में तो आपने किन-किस लोगों को बचाने के लिए यह पूरा नाटक किया।
हम खामोश हैं। और यकीन मानिये कि हम लगातार प्रतीक्षा कर रहे हैं कि आप अब इस मामले में सच का अनावरण करेंगे जरूर। उड़ीसा में प्राचीन कहावत है कि उडि़या ब्राह्मण कभी भी झूठ नहीं बोलता है। और जब भी बोलता है तो सच ही बोलता है। सच के अलावा कुछ भी भी नहीं बोलता है। क्या यह सच बात है देवाशीष पाण्डा जी।
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