डॉ.वेद प्रताप वैदिक।
जिस राज्य-सभा के चुनाव अभी-अभी संपन्न हुए हैं, क्या सचमुच उसे हम राज्यों की सभा कह सकते हैं? क्या हमारी संसद का यह दूसरा सदन भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है? आजकल हम जिसे राज्यसभा के नाम से जानते हैं, क्या वह विद्वानों, वरिष्ठों और विशेषज्ञों का सदन रह गया है? क्या हमारी राज्यसभा भारत की संघात्मक व्यवस्था की प्रतीक है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर है- नहीं।
आज राज्यसभा वास्तव में नेता-सभा बन गई है। हमारी राज्यसभा नेताओं के लिए, नेताओं द्वारा, नेताओं की सभा है। नेताओं के लिए वह इस तरह है कि जो भी नेता चुनाव में हार जाएं या चुनाव लड़ने लायक न हों या जिन्हें मुख्य धारा से बाहर करना हो, यह सदन उनके लिए स्वर्ग बन गया है। जो नेता किसी नगरपालिका का भी प्रतिनिधित्व करने लायक न हो, वह पूरे के पूरे राज्य का प्रतिनिधित्व करता है। और तब तो किसी भी सदस्य के लिए वह बंदिश भी खत्म हो गई है कि आप जिस राज्य से चुनकर आना चाहते हैं, आप उसी के निवासी होने चाहिए। आप पैदा हुए हैं पंजाब में और प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, असम का! आप पैदा हुए हैं, कश्मीर में और प्रतिनिधित्व करते हैं, महाराष्ट्र का। यह राज्यसभा हुई या पर-राज्यसभा?
यह नेताओं द्वारा इस तरह है कि राज्यसभा के सदस्यों को जनता नहीं चुनती। वे तो विधायकों द्वारा चुने जाते हैं। जनता से उनका कुछ लेना-देना नहीं है। और विधायक भी पाला बदलते हैं, रिश्वत खाते हैं, उलट-पुलट वोटिंग करते हैं या फिर अपने सरगना के इशारे पर आंख मींच कर ठप्पा लगा देते हैं। मुट्ठीभर नेताओं के हाथ के इन खिलौनों को हम राज्य के करोड़ों लोगों का प्रतिनिधि कहते हैं। अपने हाथों से हम अपनी आंख में धूल झोंक देते हैं।
यह नेताओं की सभा इसलिए है कि इसे अमेरिकन सीनेट की तरह जनता सीधे नहीं चुनती और ब्रिटेन के हाउस आफ लार्डस की तरह यह वरिष्ठों का सदन नहीं है। इसमें पार्टियां उन्हीं कार्यकर्ताओं को चुनवाती है, जो चाटुकारिता में प्रवीण होते हैं, या जो पैसे-बटोरवाने में कुशल होते हैं, या जो इस सदन में नहीं बिठाए जाएंगे तो वे फिर पार्टी में उछलकूद मचाएंगे। राष्ट्रपति द्वारा नामजद सदस्यों के चयन की भी कोई पारदर्शी प्रक्रिया नहीं है। कलाकारों, समाजसेवियों और विद्वानों के नाम पर ऐसे-ऐसे लोगों को लाकर बिठा दिया जाता है, जो सदन का मुंह भी कभी-कदाक देखते हैं और अपना मुंह तो खोलते ही नहीं। यदि हम सचमुच राज्यसभा को राज्यों की सभा, संघात्मकता की प्रतीक और वरिष्ठों का सदन बनाना चाहते हैं तो इसके पूरे ढांचे को ही बदलना होगा।
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