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रियो में नरसिंह यादव का इस तरह बेइज्जत होना देश की प्रतिष्ठा पर चोट

खरी-खरी            Aug 20, 2016


एस.पी. मित्तल। 19 अगस्त को सुबह-सुबह ही टीवी चैनलों पर यह खबर आ गई कि भारतीय पहलवान नरसिंह यादव को रियो ओलंपिक की प्रतियोगिता से बाहर कर दिया है। मादक पदार्थ की जांच करने वाली विश्वस्तरीय संस्थान वाडा ने माना कि यादव ने भारत में तैयारियों के दौरान ऐसी दवाइयां ली, जिससे शरीर में ताकत बढ़ती है। इतना ही नहीं वाडा ने यादव को चार वर्ष के लिए बैन भी कर दिया। भारत के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक बात हो ही नहीं सकती। अब जब यादव के वजन वाली कुश्ती की प्रतियोगिता शुरू होगी तो विश्व के दो सौ देशों के सामने यह घोषणा की जाएगी कि भारतीय पहलवान को डोपिंग की वजह से बाहर कर दिया है। इसलिए दूसरे वरियता वाले देश के पहलवान को शामिल किया जा रहा है। हालांकि मैं कुश्ती में हो रही भारतीय पहलवानी पर लिखना नहीं चाहता था, लेकिन आज ही सोशल मीडिया पर नरेन्द्र मोदी का वो भाषण सुनने को मिला जो जुलाई 2013 में पुणे में दिया था। तब मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे। पुणे में मोदी ने एक समारोह में कहा कि मुझे दु:ख होता है जब सवा सौ करोड़ वाले देश को एक दो मैडल मिलते हैं। मोदी ने कहा कि क्या हम सेना के जवानों के बीच में से खिलाडी़ तैयार नहीं कर सकते। लेकिन इसके लिए सरकार के पास सोच नहीं है। जुलाई 2013 में जब मोदी ने यह बात कही तो लोगों ने माना कि मोदी जब प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो देश में खेल और खिलाडिय़ों की दशा भी सुधार जाएगी। आज जब नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं तो वाडा ने हमारे एक पहलवान को प्रतियोगिता से ही बाहर कर दिया है। पहलवान यादव के विवाद पर मैं इसलिए भी लिख रहा हूं कि यह मामला सीधे तौर पर नरेन्द्र मोदी से जुड़ा है। सब जानते हैं कि गत माह जब भारत में डोपिंग की जांच करने वाली संस्था नाडा ने नरसिंह यादव को डोपिंग का दोषी माना था तो प्रधानमंत्री मोदी ने ही हस्तक्षेप कर नाडा के फैसले को बदलवाया और यादव को ही रियो भेजने का फैसला किया। तब भी सम्पूर्ण देश में पीएम की इस पहल का स्वागत किया गया लेकिन तब कुश्ती फैडरेशन से लेकर प्रधानमंत्री तक ने यह नहीं सोचा की यादव के डोपिंग का मामला प्रतियोगिता से पहले वाडा के समक्ष भी जाएगा। यदि इतनी सोच और समझ होती तो वाडा के सामने यादव का पक्ष मजबूती के साथ रखा जाता। इससे ज्यादा और शर्मनाक बात क्या होगी कि 18 अगस्त की रात को जब वाडा के प्रतिनिधि यादव के मुद्दे पर सुनवाई कर रहे थे, तब भारत की ओर से कोई प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था। वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए दिल्ली के वकील ने यादव का पक्ष रखने की कोशिश की, लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं आया कि यादव के भोजन में किसी ने नशीला पदार्थ मिलाया तो ऐसे व्यक्ति के खिलाफ भारत में अब तक कार्यवाही क्यों नहीं की। पहली बात तो वाडा ने इस तर्क को माना ही नहीं द्वेषतावश किसी ने भोजन में नशीला पदार्थ मिला दिया। जुलाई 2013 में नरेन्द्र मोदी तत्कालीन केन्द्र सरकार की सोच की बात करते हैं, लेकिन अगस्त 2016 में यह ध्यान ही नहीं रखा जाता कि पहलवान यादव के आरोपों की जांच कोई विश्व स्तरीय संस्था भी करेगी। जहां तक केन्द्रीय खेल मंत्री विजय कुमार गोयल का सवाल है तो उनका होना या न होना बराबर है। अब उन लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। जिन्होंने नरसिंह यादव को जबरन रियो ओलंपिक में भेज दिया। सब जानते हैं कि खिलाडिय़ों के साथ कुश्ती में जो राजनीति की पहलवानी हो रही है, उसी वजह से दुनिया के सामने भारत के पहलवान को बेईज्जत होना पड़ा। अच्छा हो कि प्रधानमंत्री भारतीय खेल संघों में आमूलचूल परिवर्तन करावें।


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