डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
शाहरुख खान बेहतरीन अभिनेता हैं। वे ऐसी शख्सियत हैं, जिनका मुंबई में कोई गॉडफादर नहीं था, लेकिन फिर भी उन्होंने मुंबई में आकर सुपर स्टार का दर्जा हासिल किया। वे ऐसे कलाकार हैं, जो सिनेमाघर के पर्दे पर सिर्फ अपनी आंखों से अपनी पूरी बात कह सकते हैं। फिफ्टी प्लस होने के बाद भी वे चुस्त-दुरुस्त हैं। सिक्स पैक्स रखते हैं। उनके प्रेम-प्रसंगों की चर्चा भी आमतौर पर नहीं होती। वे पत्नीव्रता टाइप व्यक्ति हैं। फैमिली मैन। उनका बिजनेस सेन्स गजब का है। वे बॉलीवुड के सबसे मालदार कलाकार है। फिल्मों के अलावा उन्होंने अन्य धंधों में भी पैसा लगा रखा है। फिल्मों में अभिनय के साथ ही वे फिल्म निर्माण और दूसरे कामों से पैसा कमाते हैं।
इस सबके बावजूद शाहरुख खान बेहद बड़बोले हैं। कई बार वे शादी ब्याह में नाचने-गाने चले जाते हैं और उसके भी पैसे ले लेते हैं। आईपीएल में उनके निवेश को लेकर भी कई बार अलग-अलग तरह की बातें सुनने को मिलती हैं। अपने सहकलाकारों का मजाक उड़ाने में भी वे कभी पीछे नहीं रहते। अपने से वरिष्ठ कलाकारों का भी वे अपमान कर चुके हैं। सत्ता के केन्द्र के आसपास घूमने में उन्हें मजा आता हैं। राहुल गांधी हो या राजीव शुक्ला, अरूण जेटली हो या सत्तारूढ़ दल के दूसरे महत्वपूर्ण नेता। शाहरुख को उनकी नजदीकी हमेशा पसंद आती है। बॉलीवुड में वे अपना ग्रुप बनाकर चलते हैं और ग्रुप भी ऐसा, जिसे गिरोह कहा जा सकता है। बॉलीवुड में उन्होंने अनेक लोगों को सीढ़ी बनाया और अपना काम निकाला। कुछ साल से उन्हें यह भ्रम हो गया है कि वे अब भी सुपरस्टार हैं। वास्तव में वे सुपरस्टार अब नहीं रहे। अब वे केवल बिजनेसमैन है, जो जानते हैं कि अवसरों, व्यक्तियों और घटनाक्रमों को कैसे भुनाया जाए।
शाहरुख खान, सलमान खान की तरह बॉडी बिल्डर नहीं हैं। आमिर खान की तरह वे परफेक्शनिस्ट भी नहीं हैं। बॉलीवुड के असली और पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना की तरह शाहरुख खान भी औसत नजर आने वाले कलाकार हैं। अपनी अदाओं से उन्होंने बॉलीवुड की नई ऊंचाइयों को छुुआ।
लगता है कि आजकल शाहरुख खान को यह भ्रम हो गया है कि वे फिल्म दर्शकों के लिए नीति नियंता हैं। वे जो भी करेंगे, उसे सिर-आंखों पर बिठाया ही जाएगा। चतुर बिजनेसमैन और स्ट्रेटेजिस्ट की तरह वे अपनी फिल्मों और उनके आसपास का ताना-बाना बुनते हैं। फिल्म की कहानी उनके हिसाब की होती हैं। निर्देशक, संगीतकार, हीरोइन, बजट, लोकेशन्स, पोस्ट प्रोडक्शन आदि सभी कुछ उनकी मर्जी का होता है। फिल्म कितने स्क्रीन पर रिलीज की जाएगी, वे तय करते हैं। फिल्म कब रिलीज की जाएगी, यह भी वे अपने हाथ में रखते हैं। गरज यह कि फिल्म से जुड़ी हर बात उनके इशारे पर तय होती है।
इससे भी बढ़कर आजकल वे अपनी फिल्म को किसी जलजले की तरह पेश करने लगे हैं। उनकी फिल्मों का प्रचार का बजट भी उनकी फिल्मों की तरह मेगा होता है। फिल्म के प्रचार से जुड़ी एक-एक बात उनके नियंत्रण में रहती है। फिल्म की पब्लिसिटी के लिए वे कोई हथकंडा नहीं छोड़ते। बड़े-बड़े बजट के विज्ञापन देकर वे मास मीडिया को अपने पक्ष में कर लेते हैं। सोशल मीडिया पर भी उनका खर्च लंबा-चौड़ा होता हैं। फिल्म लगने के महीनेभर पहले से ही सोशल मीडिया पर उनकी फिल्म के जय-जयकारे चालू हो जाते हैं। फिल्म से जुड़ी खबरें वे एक-एक करके प्रचारित करते हैं। फिल्म रिलीज होने से पहले ही वे फिल्म के सुपरहिट होने का ढोल पीट डालते हैं। हाल ही में उन्होंने अपनी फिल्म फैन के बॉक्स ऑफिस को लेकर भी नई-नई वेबसाइट्स मैनेज की। क्योंकि कोशिश यह थी कि शाहरुख खान का नाम आते ही सिनेमा घरों में लंबी लाइनें लग जाएं। वे जो भी फिल्म बनाएं, उसे देखना लोग अपना धर्म समझे। जो उनकी फिल्म न देखें, वह असहिष्णु माना जाने लगे। फिल्म में वे जो कुछ भी करें, जैसा भी करें, लोग एक ही बात कहें- वाह शाहरुख खान, वाह!
फैन को लेकर मास मीडिया में उन्होंने जो भी डील की हो, नाकाम रही। इस इकन्नी फिल्म को बड़े-बड़े अखबारों और चैनलों ने पांच में से चार और साढ़े चार स्टार बांट दिए। यह काम शायद मैनेजमेंट के इशारे पर हुआ होगा। वरना पूरी समीक्षा में फिल्म की आलोचना ही आलोचना नहीं होती। यह क्या व्यवस्था है कि समीक्षक फिल्म को तो चार-साढ़े चार स्टार बांट देता है, लेकिन समीक्षा में लिखता है कि फिल्म की कहानी में दम नहीं है, फिल्म का संगीत ठीक नहीं है, फिल्म दर्शक को बांध नहीं पाती है, फिल्म की गति ठीक नहीं है, फिल्म अपने उद्देश्य में कामयाब नहीं नजर आती है।
इतना ही नहीं, दर्शकों की समीक्षा के नाम पर भी बड़े-बड़े अखबारों ने केवल फिल्म की तारीफ ही तारीफ प्रकाशित की गई। शायद फिल्मी दुनिया के लोग अब भी यहीं मानते हैं कि किसी तरह प्रचार के बूते फिल्म रिलीज होते ही दर्शकों को सिनेमा घर तक ले आओ और पहले वीकेंड में ही फिल्म के बहाने अच्छी कमाई कर लो। वे भूल गए कि सोशल मीडिया के कारण दर्शकों को ठगने के उनके अभियान सफल नहीं हो सकते।
आम फिल्म समीक्षकों से अलग मैं एक दर्शक के रूप में फिल्म देखता हूं और टिकट लेकर देखता हूं। फिल्म निर्माता और निर्देशक की मेहनत और निवेश का मैं सम्मान करता हूं, लेकिन दर्शक के खून-पसीने की कमाई का भी ध्यान रखता हूं। आमतौर पर फिल्मों के बारे में मेर राय अन्य फिल्म समीक्षाओं से अलग ही होती है। मैं एक ही बात ध्यान में रखता हूं कि क्या यह फिल्म दर्शकों के पैसे का पूरा मूल्य चुकाएगी या नहीं। जो फिल्म अच्छी लगती है, उसे अच्छी लिखता हूं और जो बुरी लगती है, उसके बारे में भी खुलकर राय दे देता हूं।
फैन के बारे में मैंने लिखा था- ‘खोदा पहाड़, निकला (साइको) फैन’। मेरे इस तथाकथित रिव्यू को सोशल मीडिया पर जबरदस्त रिस्पांस मिला। बड़ी संख्या में लोगों ने उसे लाइक किया, कमेंट किए और शेयर भी किया। हाल यह था कि फिल्म के रिलीज होने वाले दिन, 15 अप्रैल की शाम तक मेरा लिखा हुआ देश के सोशल मीडिया पर टॉप ट्रेंड में शामिल हो गया। इसके पहले भी मेरे लिखे लेख सोशल मीडियौ पर टॉप ट्रेंड में आए, लेकिन जितनी जल्दी इसे रिस्पांस मिला, वह अद्भुत था। बाद में मुझे अनेक लोगों ने बधाइयां दी और कहा कि आपने हमारी कमाई के पैसे और समय बचा दिए। यह बात मैं कोई आत्मश्लाघा में नहीं लिख रहा हूं। केवल असलियत बयान कर रहा हूं।
पिछले कुछ वर्षों से शाहरुख खान को अपने आगे और पीछे कुछ दिखता नहीं। जो कुछ भी है- शाहरुख खान, शाहरुख खान और केवल शाहरुख खान। माय नेम इज खान फिल्म की कहानी जो भी हो, उसके नाम में भी एक तरह का अहंकार झलकता था। सलमान खान या आमिर खान ने अपनी किसी फिल्म का नाम इस तरह नहीं रखा। दिलवाले में भी उन्होंने अपनी पुरानी फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने की कोशिश की और फिल्म की हीरोइन का रोल बेहद कम रखा। खुद पर भरोसा नहीं था, इसलिए वरुण धवन को समानांतर रोल दे दिया। फैन में उन्होंने खुद की दोहरी भूमिका रखी। कहानी का एक पात्र सुपरस्टार के पीछे इस तरह पागल है, जैसे शाहरुख खान के पीछे सचमुच इस तरह के पागल घूमते हो। कहानी की मूर्खता यह थी कि वह पात्र आर्यन की ही तरह पैसे होते हुए भी रेल में बिना टिकट आता है। आजकल के दर्शकों को इस तरह की आत्म प्रशंसा शायद अच्छी नहीं लगती। गुड्डी फिल्म में भी जया भादुरी, हीरो धर्मेन्द्र पर फिदा रहती है। पर इस तरह पागल नहीं।
दर्शकों ने आत्मरति में मुग्ध एक सुपरस्टार (?) की बहुचर्चित-बहुप्रचारित फिल्म को जो झटका दिया, वह बॉलीवुड के लोगों की आंखें खोलने की लिए काफी होना चाहिए। फैन भले ही इस साल अब तक की सबसे बड़ी फिल्म होने का दावा करें, दर्शकों ने उसे बुरी तरह लताड़ दिया हैं। फिल्म ने पहले दिन तो 19 करोड़ 20 लाख का धंधा कर लिया, लेकिन एक हफ्ते बाद आठवें दिन उसका कारोबार केवल 1 करोड़ 70 लाख तक आ गया। दस दिन में यह फिल्म 80 करोड़ भी भारतीय सिनेमाघरों से नहीं कमा सकी। जबकि जंगल बुक जैसी फिल्म ने भारत में इससे करीब दोगुना बिजनेस किया। यह हाल तब था जब फिल्म प्रदर्शन के पहले ही तमाम तरह की जोड़-तोड़ की जा चुकी थी। रामगोपाल वर्मा ने अपने ट्विट्स के माध्यम से शाहरुख खान को अक्ल दी है कि वे गलत सलाहकारों से दूर रहें, वरना उनका हाल भी कमल हसन जैसा हो जाएगा। कमल हसन दक्षिण में रजनीकांत से काफी आगे थे, लेकिन अब रजनीकांत ही नंबर वन हैं।
फैन अगर सौ करोड़ी क्लब में शामिल भी हो जाए (जिसकी संभावनाएं बहुत कम हैं), तब भी उसे सुुपरहिट नहीं माना जा सकता। फिल्म निर्माण और प्रचार का खर्च ही 105 करोड़ रुपए रहा (ओवरसीज मार्केट की बात यहां नहीं हो रही)। सुपरहिट फिल्म तो आशिकी-2 जैसी होती है, जो 9 करोड़ में बनती है और 100 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस करती है।
बॉक्स ऑफिस के पैमाने कुछ इस तरह होते है-
हिट- अगर वह फिल्म लागत और प्रचार का दोगुना कमा ले।
सुपरहिट- जो फिल्म अपनी लागत का ढाई गुना कमा ले।
औसत- जो फिल्म खर्चा निकाल ले।
प्लस- जो फिल्म किसी तरह अपना खर्चा निकाल ले और टीवी, वीडियो, ऑडियो, ओवरसीज राइट्स के बूते पर थोड़ी बहुत कमाई कर ले।
फ्लॉप- जो फिल्म अपनी लागत की अठन्नी भी न निकाल पाए। यानि खर्चे से आधी कमाई भी न कर पाए।
इसके अलावा भी कुछ फिल्में होती है, जो किसी तरह सिनेमाघरों में दिखा दी जाती है, जिनके प्रदर्शन का कारोबार से कोई लेना-देना नहीं है।
फिल्म ट्रेड के विशेषज्ञ कोमल नाहटा के अनुसार फिलहाल बॉलीवुड के स्टार की वेल्यु इस तरह है --
कोमल नाहटा के अनुसार बॉलीवुड में अभी कोई अभिनेत्री सुपरस्टार नहीं मानी जा सकती। ऐसी सुपर स्टार जो केवल अपने बूते पर पूरी फिल्म खींच ले जाए और दर्शक फिल्म देखने को टूट पड़ें।
इसलिए शाहरुख खान को चाहिए कि वह अपनी गलत फहमियां दूर कर लें और सही सलाहकार चुनें। इस बात को गांठ बांध ले कि अब फिल्म दर्शक उतने बुद्धू नहीं रहे। जरूरी नहीं है कि हर फिल्म हिट या सुपरहिट ही हो। कई अच्छी फिल्में भी बहुत कारोबार नहीं कर पाती, लेकिन ऐसी फिल्में भी बहुत है, जो कम कारोबार के बावजूद दर्शकों के दिल और दिमाग पर छाई रहती है, क्योंकि उन फिल्मों में या तो कोई संदेश होता है या फिर कला का बेहतरीन पक्ष। ऐसी सोद्देश्य फिल्में दर्शकों को दशकों तक याद रहती है। बिजनेस बहुत कर लिया, अब शाहरुख खान को चाहिए कि वह फिल्में या कोई दूसरा काम सोउद्देश्यपूर्ण करें।
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