शौर्य स्मारक भोपाल में क्यों? ग्वालियर में क्यों नहीं?

खरी-खरी, वीथिका            Aug 15, 2015


श्रीप्रकाश दीक्षित हम हर साल स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं और यह मौका है शहीदों को याद करने का जिन्होने आजादी की जंग में प्राणों की आहुति दे दी थी। पिछले कर्इ सालों से इस दिन मेरा ध्यान मध्यप्रदेश सरकार द्वारा भोपाल में बनाए जा रहे शौर्य स्मारक की तरफ चला जाता है। शौर्य स्मारक के लिए भोपाल का चयन करने के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के फैसले पर कर्इ सवाल उठते हैं। jhansi-ki-ranitatya-tope chandrashekhar-azad अभूतपूर्व शौर्य दिखाते हुए झांसी की रानी लक्ष्मीबार्इ अंग्रेजों से लडते ग्वालियर में शहीद हुर्इं थीं। और तो और जांबाज मराठा लड़ाके तात्या टोपे को अंग्रेजों ने मध्यप्रदेश के शिवपुरी में फांसी दी थी। इतना ही नहीं भगतसिंह से भी अधिक कद्दावर क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद भी हमारे प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाभरा मे ही जन्मे थे। मध्यप्रदेश में स्मारक यदि कहीं बनना था तो वह ग्वालियर में लक्ष्मीबाई के समाधिस्थल पर बनना था। ग्वालियर से सटे भिंड और मुरैना से बड़ी तादाद में लोग भारतीय सेना में भर्ती होते हैं और जाहिर है, शहीद भी यहीं के जाँबाज ज्यादा होते रहे हैं। इन सब तथ्यों की अनदेखी कर नवाबों के शहर भोपाल को चुना जाना सवाल खडे करता है भोपाल के चयन की पृष्ठभूमि जानने के लिए मैंने सूचना के अधिकार के तहत आवास एवं पर्यावरण विभाग की स्मारक संबंधी फाइलें खंगाली क्योंकि स्वराज संस्थान संचालनालय के बजाय इसे ही स्मारक बनाने का काम सौंपा गया है। स्मारक का औचित्य दर्शाने वाला कोर्इ नोट अथवा प्रेसी फार्इलों मे नहीं मिली! स्मारक के औचित्य का पता लगाने के लिए न तो कोई विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी और न ही मंत्रियों की कोई सब कमेटी का ही गठन किया गया था। शायद मुख्यमंत्री चौहान ने तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल दीपक कपूर के प्रभाव में आकर भोपाल में शौर्य स्मारक के निर्माण का फैसला अकेले ही किया था! जनरल कपूर स्मारक के भूमि पूजन में मौजूद थे। उनकी ससुराल भोपाल में है और इस नाते उनका यहां आना—जाना लगा रहता था। संभवत: उन्होंने स्मारक के लिए सेना अथवा रक्षा मंत्रालय की तरफ से आर्थिक योगदान की बात मुख्यमंत्री से कही होगी। फार्इलें दर्शाती हैं कि स्मारक के लिए भारत सरकार से राशि प्राप्त होनी थी जो कभी नहीं मिली! जनरल कपूर के 31मार्च,2010 को रिटायर होने से पहले भोपाल के एक बडे अखबार ने लिख मारा कि उन्हें मध्यप्रदेश का राज्यपाल बनाया जा सकता है! हो सकता है कि इस खबर ने भी शिवराजसिंह चौहान को भोपाल मे स्मारक का निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया हो ?यह बात अलग है कि अखबार की ज्यादातर एक्सक्लूसिव खबरों की तरह यह खबर भी कोरी गप ही निकली ! स्मारक का भूमिपूजन 23 फरवरी,2010 को हुआ और पांच साल बीत जाने के बाद भी यह अधूरा पडा है। इसकी लागत अब 30 करोड रूपये बतार्इ जा रही है लेकिन इसमें बेशकीमती सरकारी जमीन का मूल्य शामिल नहीं है..? अरेरा हिल्स मे कुख्यात व्यापम भवन के समीप जिस जमीन पर स्मारक बनाया जा रहा है वह अरबों की है।


इस खबर को शेयर करें


Comments