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सरकार नहीं आस्था पास हुई सिंहस्थ में,भविष्य में लिए जायें सबक

खरी-खरी            May 20, 2016


hemant-palहेमंत पाल। उज्जैन में शताब्दी का दूसरा सिंहस्थ अपने अंतिम चरण की और है। हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का ये 'स्नान पर्व' सदियों से देश के जिन चार पवित्र शहरों में सदियों से आयोजित होता आ रहा है, उज्जैन उनमें से एक है। ये एक धार्मिक आयोजन है जिसका महत्व पवित्र नदी में स्नान, देव दर्शन और संत समागम तक सीमित है। अंग्रेजों के शासनकाल में भी ये आयोजन होते रहे। इतिहास गवाह है कि अंग्रेजी शासकों ने भी हिन्दुओं के इस धार्मिक आयोजन को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन, इस बार सिंहस्थ कई तरह के विघ्न आए। प्राकृतिक आपदाओं ने व्यवस्था बिगाड़ी। इंतजामों में खामी नजर आई! साधू-संतों में नाराजी के भाव उभरे, श्रद्धालुओं को परेशानी का सामना करना पड़ा! उम्मीद के मुताबिक श्रद्धालु भी नहीं आए। सरकार और मेला प्रशासन ने भी सिंहस्थ की जिस सफलता की उम्मीद की थी, वो पूरी नहीं हुई। सवाल उठता है सरकार की मेहनत, करोड़ों के खर्च और आयोजन में लगी कर्मचारियों और अधिकारियों की इतनी बड़ी फौज होने के बावजूद कहाँ और कौनसी ऐसी खामी रह गई जिसने इस सिंहस्थ पर सवालिया निशान लगा दिया? उज्जैन में सिंहस्थ को शुरू हुए चार सप्ताह पूरे होने वाले हैं और सिंहस्थ अपने आखिरी पड़ाव की ओर है। लेकिन, यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या देखकर लग नहीं लगा कि इस बार ये दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम बन सका। सरकार और प्रशासन ने शुरुआती चार दिन में ही 25 लाख से ज्यादा लोगों के पहुंचने के दावे किए थे। पहले शाही स्नान में ही 50 लाख लोगों के आने का अनुमान लगाया गया था। लेकिन, 15 लाख लोगों से ज्यादा श्रद्धालु नहीं पहुँचे। यही स्थिति दूसरे और तीसरे शाही स्नान में भी देखने को मिली। सरकार ने सिंहस्थ से पहले ही इस धर्म समागम में करीब 5 करोड़ लोगों के आने का सिर्फ अनुमान ही नहीं लगाया, बल्कि दावा किया था। उसी अनुमान के मुताबिक व्यवस्थाएं की गईं, जिन पर तीन हजार करोड़ रुपए की मोटी रकम खर्च की गई। सिंहस्थ में सरकार और प्रशासन ने जो इंतजाम किए गए थे, वे आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या के अनुमान पर ही किए गए थे, लेकिन, ये आकलन सही नहीं निकला। ट्रेनें भी खाली गई, बसों में भी श्रद्धालुओं की संख्या कम रही। रेलवे ने सिंहस्थ को देखते हुए काफी तैयारियां की थी।लेकिन, रेलवे को उम्मीद से काफी कम यात्री मिले। इंदौर की तरफ से जाने वाली ज्यादातर ट्रेनें खाली जा रही हैं। रेलवे आधिकारियों के अनुसार इंदौर की तरफ से कोई भीड़ ही नहीं जा रही। कहा गया कि सूखा और खेती में हुए नुकसान की वजह से बार सिंहस्थ में ग्रामीण इलाकों से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बहुत कम रही। मध्य वर्ग भी सिंहस्थ में नहीं पहुंचा। आंधी-तूफान और बेमौसम बरसात और लोगों के मारे जाने की घटना से भी सिंहस्थ आने वालों की संख्या में कमी आई है। ये तो वो कारण हैं जो हालात के मद्देनजर निकाले गए। वास्तव में कुछ ऐसे छुपे कारण भी हैं, जिनकी वजह से बार के सिंहस्थ से श्रद्धालु कट गए। यहाँ तक कि इस बार सरकारी एजेंसियों के अलावा व्यापारिक संस्थानों को भी घाटा उठाना पड़ा। जबकि, अमूमन ऐसा होता नहीं है। रेलवे को भी अनुमान था एक करोड़ से ज्यादा लोग रेलवे से सफर करेंगे। जबकि, इंदौर उज्जैन जाने वाले यात्रियों यात्री की संख्या ही लाख तक नहीं पहुंची।यही हालत बसों की भी है। इंदौर में अतिरिक्त बस स्टैंड बनाकर, हर मिनिट बसें चलाए जाने का इंतजाम किया गया था। लेकिन, अधिकांश बसें खाली रवाना हुई। किराया भी कम किया गया था, पर बस ऑपरेटरों ने सरकार की नहीं सुनी और किराया बढ़ा दिया। सिंहस्थ में व्याप्त मौलिक सुविधाओं की कमी और अव्यवस्थाओं के कारण साधु-संतों के तल्ख तेवरों ने भी सरकार की मुसीबतें कई बार बढ़ाई। एक ओर जहां अखाड़े हालात न सुधरने पर उज्जैन छोड़ने की चेतावनी दे चुके थे। वहीं, परी अखाड़ा की प्रमुख त्रिकाल भवंता ने विशेष सुविधाओं की मांग करते हुए जिंदा समाधि लेने की कोशिश ने भी प्रशासन को परेशान कर दिया।शासन और प्रशासन के लाख दावों के बावजूद मेला क्षेत्र में व्यवस्थाएं पूरी तरह ठीक नहीं हुई। कई अखाड़ों की शिकायत रही कि मेला क्षेत्र में उन्हें वे सुविधाएँ मिली, जिसके लिए आश्वस्थ किया गया था। यहाँ तक कि बिजली और पानी की व्यवस्था भी सही तरीके से नहीं हुई। आशय यह कि जिस आयोजन के लिए पूरी सरकार ने जी-जान से मेहनत की, उसकी कार्ययोजना में ये सब कैसे छूट गया? उज्जैन में आए आँधी, तूफ़ान और बरसात से सबसे ज्यादा तबाही सिंहस्थ के मेला क्षेत्र में हुई। साधू-संतों के कई पंडाल और पेड़ धराशायी हो गए। 7 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। 100 से ज्यादा लोग घायल भी हुए। ये प्राकृतिक आपदा थी, जिस पर किसी का जोर नहीं है।लेकिन, जब सिंहस्थ जैसे बड़े आयोजन की कार्ययोजना बनती है, जिसमें लाखों लोगों के आने का अनुमान हो, तो इस तरह के अप्रत्याशित हादसों पर भी विचार किया जाता है! आपदा प्रबंधन किसी भी मैनेजमेंट का जरुरी हिस्सा होता है। लेकिन, उज्जैन के सिंहस्थ में इसकी अनदेखी क्यों की गई? आयोजन की कार्ययोजना बनाते समय ही विचार किया जाता है कि यदि कहीं आग लग गई, आंधी-तूफ़ान आ गया, जलजला आ गया तो उसपर किस तरह काबू पाया जाएगा? क्या ये उपाय पहले से नहीं किए जाने थे? पर नहीं किए गए। किए जाते तो पहली बार हुई बरसात से अफरा-तफरी के हालात निर्मित नहीं होते। जब मौसम विभाग ने समय पूर्व चेतावनी दे दी थी, तो उसकी अनदेखी क्यों की गई। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं ने उज्जैन कुछ व्यस्थाओं की तारीफ भी की। इसलिए कि आने वाले लोगों की संख्या अनुमान से कम रही। यदि सरकार के दावों के मुताबिक 5 करोड़ लोग सिंहस्थ में आते तो ये सारे इंतजाम धराशायी हो सकते थे। इस बार सरकार को अपनी तैयारियों के मुकाबले श्रद्धालुओं की कमी इसलिए ज्यादा अखरी, क्योंकि उसने सिंहस्थ बहाने प्रदेश में पर्यटन बढ़ने और कारोबारी अवसरों के विस्तार के सपने देख लिए थे। सरकार को लगा कि सिंहस्थ केवल आस्था का ही महापर्व नहीं है, इसके जरिए पर्यटन और कारोबार के अवसरों को बढ़ाया जा सकता है। उम्मीद लगाई गई थी कि आस्था के इस पर्व की बदौलत प्रदेश की अर्थव्यवस्था में 10 हज़ार करोड़ रुपए का इजाफा होगा। क्योंकि, इस धार्मिक आयोजन पर राज्य सरकार ने साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च भी किए हैं। देश-विदेश में ब्रांडिंग और विज्ञापन पर ही सैंकड़ों करोड़ रुपए खर्च कर दिए हों, वो छोटा आयोजन तो हो नहीं सकता। लेकिन, प्रदेश और उज्जैन की अर्थव्यवस्था पर सिंहस्थ के तात्कालिक और दूरगामी प्रभाव के अनुमान पूरी तरह सही नहीं निकले। पिछले सिंहस्थ के मुकाबले इस सिंहस्थ का बजट भी 80% बढ़ाया गया था। उज्जैन और आसपास के शहरों में जो निर्माण कार्य किए जाना थे, वो सिंहस्थ पूरा होने के बाद तक पूरे नहीं हुए। सरकार के अतिआत्मविश्वास और दावे ने उज्जैन में होटल का किराया बहुत अधिक बढ़ा दिया था। लेकिन, अपेक्षित श्रद्धालु नहीं आने से होटल कारोबार को नुकसान हुआ। कई होटलों ने अपने किराए कम भी किए। ये सिर्फ होटल व्यवसाय तक की बात नहीं है। उज्जैन तक के रास्तों पर सैकड़ों नए ढाबे और रेस्टोरेंट बन गए थे, उन्हें भी नुकसान हुआ। कई रेस्टोरेंट तो अधूरे ही छोड़ दिए गए! सरकार ने मेला परिसर में अस्थायी दुकान निर्माण के लिए जगह का आवंटन किया था, ताकि कारोबारी इस एक माह लंबे आयोजन में अवसरों का लाभ उठा सकें। स्केचिंग, नकली रत्न-आभूषणों, पारम्परिक कपडे, भोजनालय, रिफ्रेशमेंट सेंटर जैसे तमाम कारोबार में उछाल की उम्मीदें लगाई गई थी। लेकिन, ये सारे व्यवसायी अब नाउम्मीद हुए। उज्जैन में 12 साल में यही एक ऐसा अवसर होता है, जिसका हर व्यवसायी को इंतजार होता है। लेकिन, इस बार श्रद्धालुओं की कमी और बेतरतीब इंतजामों ने सारे व्यापार की कमर तोड़ दी। जो श्रद्धालु उज्जैन आए भी तो किसी तरह क्षिप्रा में नहाकर भागने की जल्दी में रहे। ये वो सच्चाई है, जो भविष्य की सरकारी कार्ययोजनाओं के सबक भी हैं। जहाँ तक पर्यटन बढ़ने की बात है तो जब लोग उज्जैन ही नहीं आए तो फिर अन्य पर्यटन स्थलों पर जाने का तो सवाल ही नहीं उठता। ऐसे आस्था से ओतप्रोत पर्व में सरकार के अपने आयोजनों ने भी आने वाली भीड़ को प्रभावित किया। 'वैचारिक महाकुंभ' जैसे कार्यक्रमों के लिए भी सिंहस्थ सही जगह नहीं थी। अतिविशिष्ट लोगों के आने से कानून व्यवस्था की सख्ती ने लोगों का गुस्सा भी बढ़ाया। सदियों से सिंहस्थ को लेकर जो धार्मिक धारणा और आस्था रही है, उसे बदलने की सरकार की कोशिशों ने भी विवादों को बढ़ावा दिया। साधू-संतों ने भी कुछ मुद्दों पर नाराजी व्यक्त की। ये सारे वो सबक हैं, जिनके बारे में सरकार को सोचना होगा। यह कहना अतिशंयोक्ति नहीं होगी सिंहस्थ में सरकार फेल आस्था पास हुई है।


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