संजय द्विवेदी।
उड़ी हमले के 11 दिन बाद पाक अधिकृत कश्मीर में भारतीय सेना की कार्रवाई सही मायने में हिंदुस्तानी आवाम के जख्मों पर राहत का मलहम सरीखी ही है। लगातार जख्मी किए जा रहे देश को अरसे बाद मुस्कराने का मौका मिला है। भारत एक युद्धकामी देश नहीं है। किंतु उसके पड़ोसी देश की हरकतों ने भारतीय मानस को इतना चोटिल किया है कि पाकिस्तान का नाम भी अब उसके नाम के सुंदर अर्थ के बजाए एक विपरीत अर्थ देता है। ‘पाक’ के साथ ‘नापाक’ शब्द अक्सर अखबारों की सुर्खियों में रहता है। कैसे एक देश अपने कुटिल कर्मों से अपने वास्तविक नाम का अर्थ भी खो बैठता है, पाकिस्तान इसका उदाहरण है।
भारत-पाकिस्तान एक भूगोल, एक इतिहास, एक विरासत और अपनी आजादी के लिए एक साथ जंग लड़ने वाले देश हैं। लेकिन इतिहास किस तरह साझी विरासतों को भी बांटता है कि आज दोनों तरफ आग उगलते दरिया मौजूद हैं। नफरतें, कड़वाहटें और संवादहीनता हमारे समय का सच बन गयी हैं। भारत के लिए अच्छी राय रखना पाकिस्तान में मुश्किल है, तो पाकिस्तान के लिए अच्छे विचार हमारे देश में बुरी बात है। हमने अपनी साझी विरासतों के बजाए साझी नफरतों के सहारे ही ये बीते सात दशक काटे हैं। ये नफरतों के जंगल आज दोनों ओर लहलहा रहे हैं। इन्हें काटने वाले हाथ दिखते नहीं हैं।
पाकिस्तान दरअसल एक मुल्क नहीं, भारत विरोधी विचारों से लबरेज मनोदशा वाले लोगों का समूह है। भारत न हो, तो शायद पाकिस्तान को अपना वजूद बचाना मुश्किल हो जाए। भारत का भय और भारत का प्रेत उसकी राजनीति का प्राणवायु है। जेहादी आतंकवाद ने उसके इस भय को और गहरा किया है। पाकिस्तान एक ऐसा देश बन चुका है, जिसके हाथ अपने मासूम बच्चों को कंधा देते हुए नहीं कांपते। वह आत्मघाती युवाओं की फौज तैयार कर अपने नापाक सपनों को जिलाए रखना चाहता है।
जाहिर तौर पर इस पाकिस्तान से जीता नहीं जा सकता। वह एक ऐसा पाकिस्तान बन गया है, जिसने खुद की बरबादी पर दुखी होना छोड़ दिया है, वह भारत के दुखों से खुश होता है। उसे अपने देश में लगी आग नहीं दिखती, वह इस बात पर प्रसन्न है कि कश्मीर भी जल रहा है। उसके अपने लोग कैसी जिंदगी जी रहे हैं, इसकी परवाह किए बिना आईएसआई भारत में आतंकी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च कर रही है। पाकिस्तान दरअसल एक प्रतिहिंसा में जलता हुआ मुल्क है, जिसे अपनी बेहतरी नहीं भारत की बर्बादी के सपने सुख देते हैं। इस मानसिक अवस्था से उसे निकालना संभव कहां है?
भारत के पास सीमित हैं विकल्पः
भारत के पास पाकिस्तान से लड़ने का विकल्प है पर यह विकल्प भी वह कई बार आजमा चुका है। युद्ध के बजाए पाक को हजार जगह से घाव देना ज्यादा उचित है। कभी यही वाक्य जिया उल हक ने भारत के लिए कहा था कि ‘भारत को हजार जगह घाव दो।’ आज भारत के पास यही एक विकल्प है कि वह ‘सठे साठ्यं समाचरेत्’ का पालन करे। दुष्ट के साथ सद् व्यवहार से आप कुछ हासिल नहीं कर सकते। पाकिस्तान का संकट दरअसल उसके निर्माण से जुड़ा हुआ है। वह एक लक्ष्यहीन और ध्येयहीन राष्ट्र है। उसका ध्येय सिर्फ भारत धृणा है। सिर्फ नफरत है। नफरतों के आधार पर देश बन तो जाते हैं, पर चलाए नहीं जा सकते।
इसका उदाहरण बंगलादेश है, जिसने पाकिस्तान से मुक्ति ली और आज अपनी किस्मत खुद लिख रहा है। 1947 में भारत और पाकिस्तान ने एक साथ सफर प्रारंभ किया, दोनों देशों की यात्रा का आकलन हमें सत्य के करीब ले जाएगा। पाकिस्तान इतनी विदेशी मदद के बाद भी कहां है और भारत अपने विशाल आकार-प्रकार और भारी आबादी के बाद भी कहां पहुंचा है? भारत ने अपना अलग रास्ता चुना। लोकतंत्र को स्वीकारा और मन से लागू किया। पाकिस्तान आज भी एक नकली लोकतंत्र के तले जी रहा है, जहां फौज राजनैतिक नेतृत्व को नियंत्रित करती हुयी दिखती है।
कश्मीर का क्या करोगेः
पाकिस्तान की दुखती रग है कश्मीर। क्योंकि कश्मीर द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को बेमानी साबित करता है। ज्यादा मुस्लिम आबादी का क्षेत्र होकर भी भारत के साथ उसका होना पाकिस्तान को सहन नहीं हो रहा है। जबकि सच तो यह है कि द्विराष्ट्रवाद का खोखलापन तो बांगलादेश के निर्माण के साथ ही साबित हो चुका है। भारत को जख्म देकर पाकिस्तान खुद भी पूरी दुनिया में बदनाम हो चुका है। आज समूची दुनिया पाकिस्तान के असली चेहरे को समझ चुकी है। अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी अगर भारत के पक्ष में है तो पाकिस्तान को यह बात समझ में आ जानी चाहिए कि आंखों का भी पानी होता है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सिर्फ धर्म के आधार पर समर्थन नहीं बटोरा जा सकता है। जिहादी आतंकवाद से त्रस्त दुनिया सिर्फ हिंदुओं या ईसाईयों की नहीं है, बल्कि बड़ी संख्या में इस्लामी देश भी इसके शिकार है। एक तटस्थ विश्लेषक की तरह सोचे तो रोजाना किसका खून धरती पर गिर रहा है। सोचेगें तो सच सामने आएगा। इस आतंक की शिकार सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी ही है। जेहादी आतंकवाद मुसलमानों को ही निगल रहा है। पूरी दुनिया का इस्लाम के प्रति नजरिया बदल रहा है। लोग इस्लाम को आतंक से जुड़ा मानने लगे हैं। इस तस्वीर को बदलना दरअसल मुस्लिम समुदाय, मुस्लिम देशों और मुस्लिम विद्वानों की जिम्मेदारी है। हमारा मजहब शांति का मजहब है, यह कहकर नहीं बल्कि करके दिखाना होगा। आतंकवाद के किसी भी स्वरूप का खंडन करना, उसके विरूद्ध विश्व जनमत को खड़ा करना ही विकल्प है।
पाकिस्तान का एक देश के नाते अनेक क्षेत्रीय अस्मिताओं और राष्ट्रीयताओं से मुकाबला है। बलूचिस्तान और सिंध उनमें से चर्चित हैं। ‘धर्म’ भी पाक को जोड़ने वाली शक्ति साबित नहीं हो पा रहा है, क्योंकि क्षेत्रीय अस्मिता की राजनीति को पाकिस्तान ठीक से संबोधित नहीं कर पाया। पाक अधिकृत कश्मीर के हालात और भी खराब हैं। भारत के साथ कश्मीर का जो हिस्सा है, उससे तो पीओके की तुलना ही नहीं का जा सकती। पाकिस्तान से अपना मुल्क नहीं संभल रहा है और वह कश्मीर के सपने देख रहा है। जबकि सच तो यह है कि कश्मीर को पाकिस्तान कभी लड़कर हासिल नहीं कर सकता। इस जंग में पाकिस्तान की हार तय है। वह अपने हाथ जला सकता है। खुद की तबाही के इंतजाम कर सकता है। सिर्फ अपनी आंतरिक राजनीति को संभालने के लिए वह जरूर कश्मीर का इस्तेमाल कर सकता है।
आज विश्व मानवता के सामने शांति और सुख से रहने के सवाल अहम हैं। देशों की जंग में आम आवाम ही हारता है। इसलिए भारतीय उपमहाद्वीप को युद्ध से रोकना हर जिम्मेदार पाकिस्तानी और हिंदुस्तानी की जिम्मेदारी है। जंग से तबाही, मौतों और आर्तनाद के सिवा हमें क्या मिलेगा, यह हम भी जानते हैं। पाकिस्तान को एक रहना है, तो उसे अपने भस्मासुरों पर लगाम लगानी ही पड़ेगी अन्यथा अपने आंतरिक और बाह्य संकटों के चलते उसके टुकड़े-टुकड़े होने में अब ज्यादा देर नहीं है।
Comments